‘दंगे हो जायेंगे!’

दंगे हो नहीं जाते, दंगा कोई प्राकृतिक आपदा नहीं है कि बिना किसी से करवाए हो जाए.

दंगे करवाए जाते हैं, लोग करते हैं और उनके उद्देश्य होते हैं, दंगे करने के लिए. सोची समझी कृति है दंगा.

इसलिए जो दंगे ‘हो जाने’ की आगाहियाँ करते हैं उन्हें यह बता दिया जाना चाहिए कि दंगे हो जाते नहीं, करवाए जाते हैं.

कौन करेगा दंगे?

अगर आप सीना ठोंक कर कह रहे हैं कि दंगे होंगे, तो आप को यह भी पता ही होगा कि दंगे करवाने-करनेवाले कौन होंगे.

जरा बताइये कौन करनेवाले हैं दंगे, ताकि पुलिस अग्रिम कारवाई कर सके.

आप एक प्रतिष्ठित और जिम्मेदार नागरिक हैं, पुलिस की मदद करना आप का फर्ज है. बताइए कौन दंगा करनेवाला है?

लगता है हम मीडिया वालों से कुछ ज्यादा ही अपेक्षा कर रहे हैं. वे बेचारे मालिक की मर्जी संभालकर नौकरी बचाए या असली पत्रकारिता करें?

घर तो नौकरी से चलता है जी, पत्रकारिता के बारे में फिर कभी सोचेंगे, ठीक ?

कोई नहीं, लेकिन हमें तो पता होना चाहिए, दंगे हो जाते नहीं, करवाए जाते हैं.

और हाँ, दंगे होने के बाद उनको लेकर मुक़दमे दायर हो जाते हैं. मुकदमे का उद्देश्य यही होता है कि सच साबित किया जाए.

याने अगर पॉलिटिकली दिक्कत न हो या फायदा हो तो दंगे किसने और क्यों करवाए यही साबित करना कोर्ट का काम होता है.

ऐसे में ‘दंगे हो जायेंगे’ सुनकर… आश्चर्य तो नहीं… खैर, जाने दीजिये…

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