नोटबंदी : जनता को क्या कष्ट, मीडिया उनको दिखाए जिनके रद्दी बने करोड़ों

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ट्रेन पर चढ़ने के इंतज़ार में लोग

मैं जब भी रेल से यात्रा करता हूँ तो वहाँ रेलवे स्टेशनों पे होने वाली घोषणा मुझे बड़ी हास्यास्पद लगती है.

यात्रीगण कृपया ध्यान दें. फलानी ट्रेन फलाने नंबर प्लेटफॉर्म पर आ रही है. यात्रियों से अनुरोध है कि वो अपना-अपना स्थान ग्रहण करें.’

ये सन्देश सुन कर मुझे बहुत हंसी आती है. अपना-अपना स्थान ग्रहण करें तो ये ऐसे बोलते हैं कि सबके लिए रेल में तख्ते ताउस बिछा रखा हो…. आइये हुज़ूर तशरीफ़ रखिये.

मने आम जनता से कितना कटी हुई है व्यवस्था हकीकत में.

जबकि कायदे से घोषणा यूँ होनी चाहिए – रेल आ रही है. एसी और स्लीपर वाले जिनका टिकट कन्फर्म है वो अपना अपना स्थान ग्रहण करें.

जिनका टिकिट वेटिंग में है वो किसी तरह स्लीपर क्लास में घुस जाएँ और संडास के अगल बगल मंडराते, टीटीई से गुहार लगाते, कन्फर्म टिकट वालों के चरणों में दांत चियार के परमिशन लेते हुए, चौथाई तशरीफ़ टिका कर किसी तरह यात्रा करें.

शेष जनरल वाले भूसे की तरह ठुसे हुए डिब्बे में किसी तरह लटक-सटक के, जान जोखिम में डाल के यात्रा करें. जनरल डिब्बे में पोल्ट्री फार्म का अहसास देती आपकी मंगलमय यात्रा की हम कामना करते हैं.

नेता परेता और पतरकार लोग से बैंक की कतार में खड़ी जनता जनार्दन का दुःख देखा नहीं जा रहा. छाती फटी जा रही…. कलेजा मुंह को आता है….

अबे कायकू गला फाड़ रिये हो…. जो लाइन में खड़े है उनके लिए कौन तुमने डनलप के गद्दे पे मसनद लगा रखी थी और दासियाँ पंखा झल रहीं, चंवर डुला रही थी???

अबे गरीब आदमी, जैसा झोपडी में, वैसा ही काम पर और वैसे ही लाइन में लगा…. उसके लिए सब दिन एक समान….

गरीब आदमी को कोई फर्क ना पड़ रिया…..

अबे उसको दिखाओ जिसका 10 – 20 या 100 – 200 करोड़ रद्दी कागज़ में तब्दील होने जा रिया है. असली कष्ट में वो हैं. छाती तो उनकी फटी जा रही.

कंगाल तो राजनीतिक दलों, एनजीओ गिरोहों के बड़े-बड़े नाम हुए हैं. उनके मुंह में माइक घुसेड़ कर पूछो… कित्ता डूबा?

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