खबरंडियां सुबह से विधवा विलाप कर रही हैं कि धंधा चौपट हो गया.
मने लोग बाज़ार नहीं जा रहे.
हैदराबाद में मोती नहीं बिक रहे.
अमीर औरतों के 80 – 80 हज़ार वाले लहंगे नहीं बिक रहे.
लखनऊ के नवाबों के चिकन के कुरते और नफीस औरतों के हाथ की महीन कढाई के सूट दुपट्टे नहीं बिक रहे.
एक कुख्यात न्यूज़ चैनल पर एक कोई महिला, जो पूर्व में किसी बैंक की चेयर पर्सन रहीं, ने भविष्यवाणी कर दी कि इस साल GDP 5 रह जायेगी.
मने ये कि नोटबंदी से आसमान टूट पड़ेगा.
पर मेरे कू एक बात समझ आई. मेरे दोनों लड़के अगर एक महीना 3000 रूपए की जींस और 8000 वाला रीबॉक नाइके का जूता नहीं खरीदेंगे, मेरी बीबी हैदराबाद में बना सच्चे सुच्चे मोती का डेढ़ लाख रूपए का हार (जिसकी कोई रीसेल वैल्यू नहीं होती) अगर नहीं खरीदेगी तो देश कैसे गरीब हो जाएगा?
मेरे गाँव के यादव जी अपनी लड़की की शादी में 4 पीस छेना न खिला के, सिर्फ दुई ठो लड्डू खिला के पानी पिला देंगे और वो शादी 4 लाख की जगह सिर्फ 1 लाख में निपट जाए तो देश कैसे गरीब हो जाएगा?
हमारे नगर सैदपुर में कुछ लोग सुबह 6 बजे ही दूकान खोल के बैठ जाते हैं और रात 10 बजे तक खोल के रखते है (क्योंकि दूकान के पीछे ही घर भी होता है), रविवार को भी दूकान खोलते हैं.
उधर गोवा का दुकानदार सुबह 10 बजे दूकान खोलता है और डेढ़ बजे बंद… लंच ब्रेक…. फिर 4 बजे खोलता है और 7 बजे बंद.
सामान्य ज्ञान तो कहता है कि गोवा के दुकानदार तो सैदपुर के दुकानदारों की तुलना में बहुत गरीब होंगे.
प्रेस्टीट्यूट्स मने खबरंडियों को विधवा विलाप बंद कर देना चाहिए.
मेरे लड़के अगर दो महीना जींस और जूते नहीं लेंगे तो मैं अमीर हूँगा, गरीब नहीं. जींस वाला भी नहीं मरेगा.