अवसर छोड़ कर आगे बढ़ गए तो वापस लौटने का मौका नहीं

लन्दन में सबसे बड़ा संघर्ष है, सुबह-सुबह कार की पार्किंग ढूंढना.

हस्पताल में स्टाफ के लिए भी पार्किंग फ्री नहीं है. और पार्किंग परमिट खरीद भी लो तो पार्किंग मिलती नहीं.

तो फिर आसपास के इलाके में सड़क के किनारे कहाँ पार्किंग फ्री है यह खोज कर रखना पड़ता है.

और ऐसी एक सड़क पर हस्पताल के नज़दीक सुबह-सुबह अगर एक खाली जगह मिल जाय तो लॉटरी लग जाती है…

पूरे दिन मन खुश रहता है… लगता है, किस्मत खुश है आपसे… सितारे बुलंद हैं…

मेरे हस्पताल के सामने एक स्टेनली रोड पर फ्री पार्किंग है. पर यह सड़क वन-वे है.

तो मैं अपने रास्ते से आते हुए इस सड़क पर घुसता हूँ, धीरे-धीरे आगे बढ़ता हूँ.

अगर सड़क में घुसते ही पार्किंग मिल जाये तो सोचता हूँ, यहीं पार्क कर दिया तो ज्यादा दूर पैदल चलना पड़ेगा.

पर अगर आगे बढ़ गए और पार्किंग नहीं मिली तो वन-वे होने के कारण वापस नहीं लौट सकते.

अगर पार्क कर दिया और पैदल चल कर जा रहे हैं तो रास्ते में जितनी खाली पार्किंग स्पेस दिखाई देती है, सबको देख कर अफ़सोस होता है, हार सी महसूस होती है…

काश, हड़बड़ी नहीं की होती, थोड़ा रिस्क लिया होता… पर सुबह-सुबह हड़बड़ी होती ही है… तो बंदा रिस्क नहीं ले पाता…

यह पार्किंग का खेल मुझे ज़िन्दगी के रूपक जैसा लगता है.

ज़िन्दगी ऐसी ही एक वन-वे सड़क है, और जीवन में अवसर जैसे एक पार्किंग स्पेस…. जिसने रिस्क लिया और आगे बढ़ा, वह अच्छी पार्किंग स्पेस ले जाता है.

पर अगर आप एक अवसर छोड़ कर आगे बढ़ गए तो वापस लौटने का मौका नहीं है… लौटे भी तो कोई और उस अवसर को ले जा चुका होता है…

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