बीन जब बजी तो अजगर निकल पड़े |
आस्तीन के सांप सब खुलकर निकल पड़े ||
पाले गये जो श्वान सरकारी गोश्त पर |
बोटी नहीं मिली तो तनकर निकल पड़े ||
करते थे जो जनाब खूब माँ पे शायरी |
भारत माँ के नाम पर हंसकर निकल पड़े ||
खोज जब हुई देशद्रोहियों की मेरे देश में |
कमबख्त हुक्मरान के भी सर निकल पड़े ||
बंगले हैं सौ जनाब के दिल्ली शहर में |
बदली जो नोट फूस के छप्पर निकल पड़े ||
करने चला इलाज जब मुर्दों का डाक्टर |
मरीजों के हाथ से भी नश्तर निकल पड़े ||
Meri bhart maaa mhan he mhan thi or hm unhe sdha mhan bnaye rkhege jay hind jay bhart
Bhot bdhiya Narendr modhi bhai sabji