1985 में पासआउट होने के बाद क्लीनिक स्टेब्लिश करने के लिये उपयुक्त स्थान की खोज शुरु हुई.
काफी हद तक तलाशने के बाद मुझे सेंट्रल जेल का एरिया मुफीद लगा क्योंकि इधर आबादी भी अधिक थी और आसपास कोई भी क्वालीफाइड डाक्टर ना था तो फिर किसी से कंपटीशन की संभावना भी नगण्य थी.
फिर क्या था एक ठीकठाक सी जगह रेंट पर ले जरूरी साजोसामान सहेज कर क्लीनिक खोल ली.
पहला दिन– कोई पेशेंट नहीं.
दूसरा दिन– कोई नहीं आया.
पांचवा दिन– पूरा दिन खाली बैठा रहा.
सातवां दिन– शून्य आमदनी.
दसवां दिन– फिर वही कहानी दोहराई गई.
पंद्रहवां दिन– डिप्रेशन क्या होता है महसूस होने लगा.
सोचने लगा, ये कैसी जगह चुनी है जो बौहनी तक के लाले पड़े हुये हैं. दिन भर अखबार पढ़ता रहता. समाचार, क्या खोया पाया, सरकारी निविदायें, कानूनी नोटिस तक चाट जाता था.
उस दिन शाम के वक्त क्लीनिक के बाहर आते-जाते को निहार रहा था. शायद कोई इधर ही आ रहा हो.
तभी पांच छह महिलाओं का झुंड आता दिखा जो मेरी ओर देख कर कुछ आपस में बातें कर रहीं थीं.
मेरे पास से गुजरते समय सभी मुझे घूरती हुई निकल गईं. एक ने तो मेरी ओर देखते हुये थूक भी दिया.
मैंने उन सब की आखों में अपने लिये तिरस्कार को स्पष्ट भांप लिया था.
मैं तो इस इलाके में नया हूं, कोई अपराध भी नहीं किया तो ये अनजान महिलायें मेरे प्रति इतनी दुर्भावना क्यों लिये हैं यह जानने के लिये मैं उनके पीछे चल दिया ताकि यदि मेरे बारे में कुछ चर्चा कर रहीं हों तो सुन सकूं.
उनमें से एक, जो हावभाव से सब की लीडर लग रही थी, बोली- ‘जे नठिया (इधर की महिला गाली) डॉक्टर ने कानपुर में एक दिना में चार बच्चा अपने इलाज से मार डाले.‘
‘हां जिज्जी, सुनो तो हमऊ ने है, ताइ से वहां से मार-मार के भगाओ गयो‘ -दूसरी बोली.
‘और कोई जगह नाय मिली ससुरे को जो इहन दवाखाना रख लओ. हम तो अपने बच्चा कबहूं नाय लइये जाके पास, भले चार कोस दूर के डागदर को पैदल चल दिखाय आयें‘, एक और स्वर उभरा.
‘देखो, कुत्ता कैसो टाई कोट बांधे बैठो है, जी तो करत है मुंह नोच लें ससुरे को, जो हमारे बच्चन को काल बनके आओ है. मैं तो बच्चन पर ईकी परछाई तक ना पड़न दूं‘, उनमें से एक बोली.
मैं और कुछ अधिक अपनी शान में ना सुन सका और वापस पलट कर आ गया.
मैं समझ गया कि एक दिन में कानपुर में अपने इलाज से चार बच्चों को मार देने और वहां से मारपीट कर भगाये जाने की अफवाह उन झोलाछाप डाक्टरों ने फैलाई थी जो मेरे आने से अपनी दुकान ठप हो जाने के डर से भयभीत थे.
इस अफवाह से बड़ी मशक्कत के बाद छुटकारा पा सका.
32 साल पहले की जनता भोलीभाली थी जो झांसे में जल्द आ जाती थी. साठ साल ‘गरीबी हटाओ’ नारे ने उस के वोट तो लूटे पर उस से ज्यादा उसका शोषण दोहन किया एक पार्टी ने.
पर आज की जनता इतनी भोली-भाली नहीं है. वह किसी दुष्प्रचार में नहीं आने वाली भले ही संसद से सड़क तक चिल्लाये फिरो. अब वह जांच कर यकीन करती है.
कहां मरे इलाज से चार बच्चे?
चलो प्रूफ दिखाओ.
कितने मर गये लाइन में लगे-लगे?
प्रूफ दिखाओ.
नोट बंदी की जानकारी बीजेपी नेताओं को पहले से थी.
चल प्रूफ दिखा पहले.
मंदी छा जायेगी, अर्थव्यवस्था छिन्नभिन्न हो जायेगी.
हमने भी थोड़ी बहुत अर्थशास्त्र पढ़ा है, सिद्ध कर के बताओ.
काला धन संकटकाल में देश के काम आता है.
हम तो यही जानते हैं कि सिर्फ परिवार के काम आता है जादो जी.
अदानी अंबानी के फायदे को उठाया गया यह कदम.
अरे मूर्खों, खुल कर क्यों नहीं बोलते बतलाते कैसे होगा फायदा, सिद्ध कर समझाओ.