आज अभी दिल्ली में हूँ. कल इलाहाबाद से रात 10:40 पर दुरंतो से नई दिल्ली के लिए रवाना हुआ.
ट्रेन पकड़ने के लिए घर से 10 बजे निकला. उससे पहले पिताजी ने मेरी हिम्मत बढ़ाई और आगे बढ़ते रहने का हौसला दिया.
दरअसल कुछ दिनों से मन बहुत उदास था. कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था. जब मोदी सरकार ने नोटबंदी का फ़ैसला लिया तो सोशल मीडिया में उछल उछल कर इसका स्वागत करने में मैं भी सबसे आगे रहा.
ऐसा लग रहा था कि देश में बहुत बड़ा बदलाव आ रहा है, और मैं मानता हूँ कि आ भी रहा है. मन प्रफुल्लित था और मन में क्रांतिकारी विचार भी आ रहे थे.
ऐसा लग रहा था कि सबकुछ बदल रहा है. लेकिन नोटबंदी के प्रभाव जब अपने खिलाफ पड़ने लगे तो बहुत बुरा लगने लगा.
पिताजी ने नोएडा में आम्रपाली हाउसिंग में एक फ़्लैट ख़रीदा था, जिसकी क़ीमत आज 30% तक कम हो गई है.
यही हाल हमारी ख़रीदी हुई ज़मीन का भी हुआ जो हमने केवल दो महीने पहले ख़रीदी थी.
मुझे सचमुच बहुत बुरा लग रहा था. मेरे या मेरे पिताजी ने कोई काला धन कभी अर्जित नहीं किया है.
हम लोग तो नौकरी पेशा वाले हैं, हमेशा तन्ख्वाह से पैसे बचाए हैं. कुछ लोन और कुछ बचाए पैसों से हमने यह फ़्लैट और ज़मीन ख़रीदी थी, जिसके दाम में भारी कमी आ गई है.
एक तरफ जहाँ मैं परेशान था और इस नुक़सान से कोफ़्त हो रही थी, वहीं पिताजी बिलकुल मस्त थे. सब जगह घूम घूम कर य्य्य्य्येयेये छाती फुलाकर मोदी सरकार के निर्णय की तारीफ़ कर रहे थे.
कल जब रात्रि 9 बजे, वो टीवी डिबेट देखते हुए विरोधियों को भला-बुरा कह रहे थे, तब मेरे से नहीं रहा गया और मैने उनसे पूछ लिया, “क्या पापा, अपना इतना नुक़सान हो गया और आप हैं कि आपको कोई फरक ही नहीं पड़ता?”
जवाब में जो पिताजी ने कहा, उसने मेरे मन की सारी शंकाएँ और दु:ख को एक बार में ख़त्म कर दिया.
उन्होंने बस इतना कहा कि अपना तो 8-10 लाख का नुक़सान है, और ईमानदारी से काम करेगा तो इससे ज़्यादा कमा लेगा, लेकिन देश का जो करोड़ों का फायदा हो रहा है, उसको देखकर खुश हो लो.
इतनी से बात ने मेरे मन के सारे दुख और उलझन, परेशानी को ख़त्म कर दिया. आज तो मैं भी य्य्य्य्येये छाती फुलाकर घूम रहा हूँ और सरकार के फ़ैसले पर ताली पीट रहा हूँ…
– रवि राय