भारत का कथित सेकुलर मीडिया, हिन्दू, भाजपा और संघ विरोध में किस हद तक गिरा हुआ है, ये मुझे 2002, गुजरात की घटना के बाद पता चला.
इंडिया टुडे ने मोदी पर एक अंक निकाला था. ये पूरा अंक इसी पर केन्द्रित था कि नरेंद्र मोदी की शह पर हिन्दू बर्बरता वहां अपने चरम पर थी.
इन आलेखों के साथ इंडिया टुडे वालों ने छोटे बच्चे-बच्चियों के साथ खेलते मोदी की एक तस्वीर लगाकर, उसे दुर्लभ क्षण बताते हुए, उसके नीचे जो लिखा था उसका सार ये था कि ये बर्बर आदमी कभी-कभार बच्चों के साथ लाड़ भी दिखा लेता है.
उसी दौरान एक चर्चित अंगरेजी अखबार, मोदी के लिये “डायल M फॉर मडर्रर मोदी” नाम से एक स्तम्भ निकालता था.
पूरी सेकुलर मीडिया, NGO, बड़ी बिंदी गैंग, कथित मानवाधिकार संगठन, मुनव्वर राना तथा उसके जैसे कई और शायर, दुनिया भर में यह कलुष प्रचार कर रहे थे कि संघ परिवार ने एक समुदाय विशेष के खिलाफ प्रलय रथ निकाला, जिसका रथी एक ‘दाढ़ीधारी हिटलर’ था.
मोदी के खिलाफ निंदा और चरित्र हनन अभियान दशकों चला. इस अभियान में तहलका, कारवां, आउटलुक जैसी पत्रिकायें, लिपस्टिक वाला छोकरा राहुल कँवल, राजदीप सरदेसाई और उसकी पत्नी तथा करण थापर ने, न जाने कितने फर्जी स्टिंग और रिपोर्टिंग कर डाली.
कुछ लोग तो मोदी को इंसानियत का हत्यारा बताते हुए उनके खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय अदालतों में चले गये.
ये चरित्र हनन अभियान केवल गुजरात की घटना तक सीमित नहीं रहा. इशरत जहां, सोहराबुद्दीन आदि की आड़ लेकर नरेंद्र मोदी को इस रूप में स्थापित कर दिया गया कि इस्लाम के चौदह सौ साल के इतिहास में मुस्लिम विरोधी मानसिकता रखने वालों में ये आदमी सबसे अव्वल है.
फिर 2014 का लोकसभा चुनाव आया. ‘भाजपा मोदी को आगे लाई तो ये हो जायेगा, वो हो जायेगा, सेकुलर भारत भाजपा को बुरी तरह हरा देगा’, वगैरह-वगैरह स्यापा हुआ पर मोदी जीत गये.
देश ने उन्हें पूर्ण बहुमत से चुना पर ये छदम सेकुलर तब बहुत परेशान नहीं थे. वो निश्चिंत थे कि चलो देश में तो जीत गये पर दुनिया के देशों में किस मुंह से जाओगे, हमने तो उधर तुम्हें भारत का हिटलर और बर्बर हत्यारा घोषित किया हुआ है. गुजरात के दरिंदे, मध्य-पूर्व के मुस्लिम देश अपनी सीमा से ही तुझे खदेड़ देंगे.
मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद जल्दी ही इन्हें झटके लगने शुरू हो गये. जिन लोगों ने कभी अमेरिका और ब्रिटेन को मोदी को वीज़ा न देने पर राजी कर लिया था. उन्हीं देशों में अब मोदी का भव्य स्वागत होता है और मोदी के नाम पर चुनाव जीते जाते हैं.
अरब वहाबी विचार प्रसार का अगुआ है, अमेरिका और ब्रिटेन से निराश इन लोगों की उम्मीदें सऊदी अरब, ईरान और बांग्लादेश पर टिकी थी.
अचानक एक दिन मोदी सऊदी अरब पहुँच गये, वहां किसी ने भी छद्म मीडिया द्वारा गढ़ी गई मोदी की छवि को याद नहीं किया बल्कि सऊदी अरब ने अपने यहाँ के सबसे बड़े नागरिक सम्मान से उन्हें नवाजा.
सेकुलरों के सीने पर सांप लोट गया, स्थिति को समझने का प्रयास भी कर पाते कि तभी मोदी ईरान पहुँच गये और जाकर उससे चाबहार पर ऐतिहासिक समझौता कर लिया.
मोदी चाहे बांग्लादेश गये या किसी और मुस्लिम मुल्क, हरेक ने उन्हें सर-आँखों पर बिठाया और उनके लिए पलक-पाँवड़े बिछा दिये.
किंकर्तव्यविमूढ़ सेकुलर जमातें इस हतप्रभ करने वाली घटनाक्रमों को समझने के प्रयास में लगी ही थी कि बलूचिस्तान नाम का नया जिन्न उनके सामने आ खड़ा हुआ.
इस जिन्न ने उन्हें अब तक का सबसे बड़ा झटका दिया. ऐसा झटका जिसकी कल्पना तक करने में उन्हें सदियों लग जाते.
भारत के सबसे बड़े शत्रु पाकिस्तान का एक हिस्सा बलूचिस्तान भारतीय मीडिया के अनुसार मुस्लिम विरोधी मोदी को अपना माई-बाप मानकर उसके जयकारे लगाने लगा.
जिस मोदी को इन्होने एक समुदाय विशेष की अस्मत-रेज़ी करने वालों का पालक बताया था, उसी मोदी को वहां से राखियाँ आने लगी.
अब भी आप पूछेंगे कि इनकी बेचैनी का सबब क्या है? मोदी की मुस्लिम विरोधी छवि गढ़ने में दशकों की गई मेहनत, हजारों पेज के मोदी विरोधी आलेख, कई-कई घंटों का फर्जी स्टिंग और प्राइम-टाइम की परिचर्चा, सब नाकामयाब हो गये हैं.
छद्म सेकुलर मीडिया का ये ‘दाढ़ीधारी हिटलर’ अब मुस्लिम विश्व का ख़ास मेहमान है और संभवत: भविष्य के बलूचिस्तान का राष्ट्रपिता भी.
और तो और, अब अपने देश की मुस्लिम बहनें भी मोदी भैया को राखी बांध कर उनसे तीन तलाक पर अपने अधिकार रक्षण का वचन मांग रहीं हैं.
अब ऐसे में हम और आप क्या कर सकते हैं? एक काम सबसे सहज और आनंददायक है-
मोदी की मुस्लिम विरोधी छवि गढ़ने में वर्षों से जुटे भारत के छद्म सेकुलर नेताओं से, दलाल मीडिया से, विदेशी चंदों पर चल रहे NGO से, मानवाधिकारवादियों से और कट्टरपंथी जमातों से मोदी की तस्वीर दिखाते हुए पूछिये, क्यों भई क्या हाल है?
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