ज़रा सी हलचल हो सयाने जाग ही जाते हैं

70 के दशक का एक किस्सा याद आता है.

गर्मी की छुट्टियों में हम गाँव आये हुए थे. खेत पर जो सिंचाई का पम्प सेट था, ताऊ जी वहाँ सोया करते थे.

रात के करीब 12 बजे, वो चुपचाप, बिना पैरों की आवाज़ किये, बिना किसी हलचल के खेत से आये.

उन्होंने खामोशी से पिता जी को उठाया. फिर बड़े भाई साहब को. हम बच्चे भी उठ गए.

कोई कुछ बोलता न था. सब आपस में कान में फुसफुसा के बात करते थे. भैया ने जा के पड़ोस वाले ताऊ जी को उठाया. दस मिनट में पूरा गांव जाग गया.

पर सावधानी इतनी कि न कोई बात करता था और न कोई दिया बाती या टॉर्च….

आमतौर पर ग्रामीण बिना टॉर्च के पैर नहीं धरते पर उस रात घुप्प अँधेरे में भी कोई टॉर्च न जलाता था.

सभी मर्द लाठी, भाला, बल्लम, गंडासा ले के तैयार हो गए. इसी तरह सावधानी पूर्वक अगल बगल के गाँवों में भी जाग पड़ गयी.

हम बच्चों को कौतूहल… आखिर माजरा क्या है.

बताया गया कि गाँव से उत्तर, लगभग 3 किमी दूर एक सीवान में रह-रह के टॉर्च की रौशनी दीख रही है.

ये डाकुओं का कोई गिरोह हो सकता था क्योंकि उन दिनों डाकू आपस में इसी तरह टॉर्च की रौशनी से ही एक दूसरे से सांकेतिक संपर्क किया करते थे.

सयाने बुज़ुर्ग उस रौशनी से चौकन्ने हुए और गाँव में जाग पड़ गयी.

चारों ओर सन्नाटा. सब सतर्क.

जोशीले युवा गाँव से बाहर निकल टोह ले रहे थे.

तभी अचानक भेद खुल गया.

माजरा यूँ था कि रात लगभग 9 बजे एक बार ज़ोर की हवा चली थी. आम का मौसम था. बागों में आम झड़े थे उस आंधी हवा में.

सो दूर गाँव के कुछ लोग रात में ही आम बीनने निकल पड़े थे और उन्ही की टॉर्च की रौशनी देख हमारे ताऊ जी आशंकित हो उठे और उन्होंने अगल बगल के दो चार गाँव जगा डाले.

सच्चाई जान फिर सब निश्चिन्त होकर सो गए.

ज़रा सी हलचल हो तो सयाने जाग जाते हैं.

लोग पूछ रहे हैं की मोदी सरकार ने बड़े नोटों के demonetization का इतना बड़ा फैसला लेने से पूर्व तैयारी क्यों न की.

तैयारी की ज़रा सी हलचल से ही चोर सब जाग जाते और सारी ब्लैक मनी निपटा देते.

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