एक प्रखर (अभूतपूर्व) राष्ट्रवादी मित्र ने प्रश्न किया है कि यदि राहुल गांधी द्वारा बैंक में 4000 रूपए बदलवाने को नौटंकी कहा जाए तो 90 साल की हीरा बा द्वारा स्वयं बैंक जा के नोट बदलवाने को नौटंकी क्यों न कहा जाए.
इस सवाल का बड़ा आसान सा जवाब है.
ये कोई Nuclear Physics नहीं है.
जी हां…. राहुल का बैंक आना नौटंकी है जबकि हीरा बा का बैंक आना नौटंकी नहीं है.
कोई मुझे बता सकता है कि राहुल गांधी ने इस से पहले कब बैंक में लाइन लगाई थी?
45 साल के हो गए? इन 45 सालों में कितनी बार बैंक में लाइन लगाई?
अपने 45 साल के जीवन में कितनी बार भारत देश में लाइन में खड़े हुए? (वोट डालने को छोड़ के)
एक सामान्य नागरिक की तरह कब सरकारी बस में, ट्रेन की जनरल बोगी में, बोरे की तरह ठूंस के यात्रा की?
युवराज सोने का चम्मच मुंह में ले के पैदा हुए। ज़िन्दगी SPG के सुरक्षा घेरे में बिता दी.
हर weekend (सप्ताहांत) पे छुट्टी मनाने यूरोप और लैटिन अमेरिका जाते हैं.
उधर हीरा बा का तो सम्पूर्ण जीवन इन्ही लाइनों में धक्के खाते बीत गया.
जिस महिला ने लोगों के घरों में जूठे बर्तन माँज के अपने बच्चे पाले हों….
जिसने भूख और अभाव का प्रत्यक्ष अनुभव मने कि First Hand Experience जीवन में एकाध बार नहीं किया, बल्कि आधी से ज़्यादा ज़िन्दगी जिसने इन्ही अभावों में गुज़ार दी हो….
वो औरत, जो बेटे के CM और PM बन जाने के बावजूद आज भी एक कमरे के घर में रहती हो…
और सरकारी अस्पताल में अपना इलाज कराने के लिए आज भी ऑटो रिक्शा से आती जाती हो…
वो महिला एक बार फिर यदि किसी बैंक की लाइन में लग जाए तो आश्चर्य कैसा?
राहुल जी को चाहिए कि वो ये बैंक की लाइन में घंटों खड़े रहने की नौटंकी न करें…
बल्कि वो जो दो-चार घंटे उन्होंने बैंक में बर्बाद किये, उतनी देर में तो उन्होंने दो-चार मुख्यमंत्री निबटा दिए होते….
कांग्रेस के मुख्यमंत्री बेचारे 3 – 3 दिन दिल्ली में इंतज़ार कर बैरंग लौट जाते हैं और युवराज हैं कि कभी कुत्ता टहला रहे हैं और कभी बैंक से पइसा कढ़वा रहे हैं.
वैसे बैंक से निकाले इन 4000 रुपयों का युवराज ने किया क्या होगा?