मानव सभ्यता के विकास में पढ़ने लिखने का कितना महत्त्व है ये तो मैं नहीं जानती लेकिन अपनी भावनाओं और विचारों की अभिव्यक्ति ने मानव को सभ्यता के उस मुकाम पर खड़ा कर दिया है जहां उसे साधारण और असाधारण व्यक्तित्व की दो अलग अलग श्रेणी में विभाजित कर दिया गया है.
और इन दो श्रेणियों के बीच के सेतु पर इंसान चलता है वो अवस्था कहलाती है अध्ययन की, प्रेक्टिस की, प्रयास की….
और इन दो श्रेणियों के इंसान को आप बचपन में ही पहचान सकते है. तो मैंने 2014 की मेरी उदयन यात्रा के दौरान उदयन की दो टीचर्स ने मिलकर वहां के बच्चों को दो श्रेणियों में विभाजित किया – एक वो थे जिन्हें अभी सिर्फ पेन पकड़ना आता है और दूसरी श्रेणी में वो बच्चे थे जो पेन पर सवार होकर नोटबुक पर सरपट भाग रहे थे. जिनमें ये होड़ लगी हुई थी जो उन्हें सिखाया जा रहा है वो जल्द से जल्द करके बता दें.
कुछ बच्चे उम्र में बहुत छोटे हैं जैसे हमारी तारा और उसी उम्र के कुछ और 2-3 बच्चे हैं , जिनका पढ़ना लिखना उतना आवश्यक नहीं है फिलहाल, जितना रोज़ की दिनचर्या में शामिल होना ताकि उनमें शुरू से अनुशासन आए.
सुबह जब हम शिवपुरी गए थे तब एक बच्चे को मैंने सुबह साढ़े सात-आठ बजे से ही नहा धोकर स्कूल बैग कंधे पर लटकाए घूमते देखा… तारा तो वैसे ही नंग धडंग घूम रही थी.. कुछ बच्चों को अजित भाई ने डांटकर जल्दी से नहाकर स्कूल पहुँचने को कहा…..
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अजित भाई को उन लोगों से बात करते हुए सुनना भी बड़ा दिलचस्प होता है… उन्हीं की भाषा में बात करना और उन्हीं के स्तर पर बात करने में बहुत फर्क होता है…
अजित भाई के व्यवहार से कहीं ऐसा नहीं लग रहा था जो ये दर्शाए कि शिवपुरी रहवासियों को उनका आभार मानना चाहिए…. बल्कि वे ये समझते हैं कि यही वो इंसान है जो दिन रात हम लोगों की फिक्र में ये सोचता रहता है कि कैसे लोगों के लिए जल्दी से जल्दी ज़्यादा से ज़्यादा क्या क्या कर डालूँ….
वो कहते जा रहे थे, हम सुनते जा रहे थे…. शैफाली ये घर देखो इसकी हाईट इतनी है कि हम उसमें खड़े भी नहीं हो सकते… और ये घर देखो किसने सिखाया होगा इन्हें इस वैज्ञानिक तरीके से घर बनाना इसे cob हाउस कहते है, जो भारी से भारी बारिश भी सहन कर जाती है…

लेकिन इनकी मजबूरी देखो जहां की मिट्टी मकान को मजबूती दे सकती है वहां की मिट्टी छूने का उनको हक नहीं और यहाँ की जिस मिट्टी का ये लोग उपयोग करते हैं वो ऐसी है कि एक ही बारिश में पूरा मकान ढह जाता है… देख रही हो ये टूटी दीवारे, कोई बच्चा एक मुक्का भी मार दे उस पर तो भरभरा के गिर पड़े….
और फिर जहां की मिट्टी खोदते है, वहां गड्ढा बन जाता है और जिसमें भर जाता है पानी, पनपते हैं मच्छर और फिर बीमारी….
तो मैं सबसे पहले ऐसी मिट्टी यहाँ तक लेकर आऊंगा जिससे मजबूत cob हाउस बन सके…
ये देखो शैफाली, ये रानी रिकेट्स की severe मरीज, हैण्ड पंप के नीचे पूरे कपड़े पहन कर नहा रही है, अब जो बच्चा इतनी ठण्ड में पूरे कपड़े पहन कर नहाएगा वो बीमार ही रहेगा न, अब समझ में आया क्यों इन लोगों की नाक हमेशा बहती रहती है…
देखो शैफाली कैसे प्लास्टिक की बोरी बिछाकर कपड़े धोना पड़ते हैं इन्हें….. पूरी तरफ कीचड़ फैला पड़ा है कपड़े धोने का कोई और तरीका ही नहीं है …. मुझे इस हैण्ड पंप के चारों ओर पक्का फर्श, दीवारें और एक छत बनवाना है…
और हाँ सबसे पहले तो टॉयलेट्स का काम करना है ताकि इन्हें खुले में शौच न करना पड़े, बहुत काम है…. बहुत कुछ करना है…. और मेरा बेटा कहता है Ain’t you going too fast Dad….
जिन लोगों को ये लगता है कि मैं बहुत फ़ास्ट जा रहा हूँ… उन्हें यहाँ आकर देखना चाहिए … एक बार केवल एक बार, है न शैफाली…
और ये शैफाली …. वो सब भी देख रही थी जो अजित भाई दिखा रहे थे…. और ये शैफाली उस अजित भाई को भी देख रही थी………. जो न जाने किस मिट्टी के बने हैं, जो शरीर से भले थक जाए लेकिन मन से कभी नहीं थकते….
और ये शैफाली उस अजित भाई को भी देख रही थी जो सुबह से लेकर रात तक बस यही चिंता करते रहते हैं कि शिवपुरी के किसी रहवासी को कोई तकलीफ न हो….
ये शैफाली उस अजित भाई को भी देख रही थी जो बच्चों के मेडिकल चेक-अप से लेकर, उनकी दवाई का बंदोबस्त से लेकर, ठण्ड में उनकी रजाइयां बनवाने से लेकर, प्रतीक की आँख का ऑपरेशन से लेकर, उदयन की रिपोर्ट फेसबुक पर आप लोगों को देने तक की ज़िम्मेदारी अकेले उठा रहे हैं….

इन सबके बावजूद अजित भाई को देखकर मुझे बस एक ही ख़याल आता है ……………. बन्दा ये बिंदास है… क्योंकि इतने काम के साथ वो इंसान ये कभी नहीं भूलता कि उनका परिवार सिर्फ घर के परिजन नहीं, केवल उअदयं स्कूल नहीं बल्कि पूरा देश है…
और मुझे पूरा विश्वास है उनका यही जज़्बा उन्हें वसुधैव कुटुम्बकम के सिद्धांत की ओर अग्रसर किये हुए हैं, और केवल ये राष्ट्र ही नहीं पूरा देश उनका परिवार होगा… हमारा परिवार होगा और हम विश्व गुरु कहलाएंगे..