मेरा जुनून, बादशाहत और पागलपन आज भी वही है, मैंने जीने का तरीका बदला है तेवर नहीं

लोकसभा चुनाव में भाजपा की बड़ी जीत के बाद गैर भाजपाई दलों के समर्थकों ने नई सरकार को सोशल मीडिया पर फिर से घेरना शुरू कर दिया तो मोदी समर्थकों को फिर मोर्चा सम्भालना पड़ा.

गैर भाजपाई यहाँ मोदी समर्थकों को ‘भक्त’ कहकर पुकारते हैं. इनमें से कुछ घोषित रूप से और कुछ मन से कांग्रेसी हैं लेकिन कई कारणों से जाहिर नहीं करते और मोदी समर्थकों को ‘भक्त’ कहने से चूकते नहीं हैं.

मैं उन लोगों को बताना चाहता हूँ कि मनमोहन सरकार की नाकामी ने जो वैक्यूम पैदा किया था, ये मोदी समर्थक उसी वेक्यूम से जन्मे हैं.

जब राष्ट्र, आर्थिक और नैतिक रूप से खुद को चरमराता हुआ देखता है तो उसे एक ‘नायक’ की तलाश होती है.

वो एक ऐसी बुलंद आवाज़ खोजता है, जिसे सुनकर उसका आत्मविश्वास फिर लौट सके.

ये ‘भक्तगण’ इस चुनाव से पहले दस साल के कुशासन की लम्बी रात भोग चुके हैं. आपकी सरकार के घूसखोर मंत्रियों ने इन्हे ‘भक्तगण’ बनाया है.

अब जबकि देश नए सिरे से अपने पैरों पर खड़ा होने लगा है तो उसे भी बेवजह विरोध के नाम पर कमजोर करने की कोशिश हो रही है.

गैर भाजपाई मित्रों से आग्रह है कि मोदी सरकार का विरोध रचनात्मक ढंग से करें. अच्छे कामों की प्रशंसा करें और नाकामी पर खिंचाई करें.

पुनश्च : गैर-भाजपाइयों के क्रिया-कलापों की वजह से दो साल पहले लिखे इस लघु-लेख की प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है. दलीय मोह में पड़े लोग, मोदी सरकार के कामों को देख-समझ नहीं पा रहे हैं और फलस्वरूप सकारात्मक आलोचना के अपने कर्तव्य और अधिकार से वंचित हैं.

विरोध के लिए विरोध करने की उनकी प्रवृत्ति जनता के मन में उनके प्रति जुगुप्सा पैदा कर रही है. इसी के चलते वर्तमान सरकार के फैसलों-नीतियों पर उनके तथाकथित विरोध को लोग संदेह से देख रहे हैं.

पुन: निवेदन है कि सकारत्मक रुख रखते हुए आलोचना के अवसर ढूंढिए, मिल जाएंगे. कोई भी काम सौ फीसदी परफेक्ट नहीं होता, हमेशा सुधार की गुंजाइश रहती है. आइए, हाथ बढ़ाएं हम भी….

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