ये अभी सिर्फ दो दिन पहले की घटना है… कानपुर लखनऊ हाइवे पर एक इंडस्ट्रियल एरिया है… आटा बंथर… चमड़े की सारी बड़ी कंपनियां यहीं बनी हुई हैं…
वहीं पास में एक बुजुर्ग मुस्लिम दंपत्ति एक छोटी सी मल्टीपरपज दुकान चलाते हैं. चाय सिगरेट, पान मसाला, समोसा पकौड़ी, अंडा ऑमलेट, मैगी, पेन पेन्सिल सब मिलता है.
शाम को मैगी खाने वालों की अच्छी खासी भीड़ होती है. उन बूढ़े बाबा अम्मा को देखकर प्रेमचंद की कहानियों के मुस्लिम पात्रों की याद आती है. जिनका इस्लाम अरबी नहीं बल्कि ठेठ देहाती देसी होता था. जो खुद को सिर्फ एक सामान्य गरीब नागरिक समझता था.
तालीम के नाम पर सिर्फ झुर्रियों में छुपा अनुभव और कपड़े के नाम पर सस्ता भारतीय परिधान. जो कभी पजामा भी हो सकता है और धोती भी.
उन्हीं की दुकान पर दोस्तों के साथ शाम के वक्त अड्डेबाजी चल रही थी. दुकान पर पुराने जमाने की छोटी वाली ब्लैक एंड व्हाईट टीवी पर मोदी जी का भाषण चल रहा था. तभी वो बूढ़े बाबा चाय छानते हुये ठेठ कनपुरिया में बोले – मोदी जईस नेता कबहूँ ना आवा… बाबू साहेब लोग गरीबन का खून चूस जितना जमा किये चरबियाये रहे थे.. सब एकै बार में छंटि गवा… एक लम्बर आदमी है… गान्ही जी के बाद एक यही भवा है…
ये सुनकर मेरे कान खड़े हो गये… जिंदगी में पहली बार किसी मुस्लिम(सिर्फ नाम भर से) के मुंह से मोदी की तारीफ सुनी थी… मेरा पक्का यकीन था कि मोदी विरोध के लिये सिर्फ अरबी नाम होना भर ही काफी है… पर ये भ्रम टूट गया…
माना लोकतंत्र है… हर नागरिक को किसी राजनीतिक पार्टी का समर्थन या विरोध करने का संवैधानिक अधिकार प्राप्त है… पर मोदी सरकार के प्रति भारतीय मुस्लिमों का जैसा रवैया चलता आया है… देखकर यही लगा कि भारतीय मुस्लिम वर्ग आँखों पर नफरत की अंधी मजहबी काली पट्टी बांधे भेंड़ों का एक झुंड बनकर रह गया है… जिसे हर वो बात गलत दिखती है जिससे मोदी का नाम जुड़ा हो… लेकिन एक अपवाद दिखा उस दिन…
जहाँ पहले कॉंग्रेसी सरकार की आलोचना 2G घोटाला, कॉमनवेल्थ, कोयला घोटाला, जीजाजी जैसे मुद्दों पर होती रही वहीं भाजपा सरकार की आलोचना कश्मीरी पत्थरबाजों पर जवाबी कार्यवाही, सर्जिकल स्ट्राईक, नोट बंदी जैसे साहसिक फैसलों के लिये हो रही…..
कुछ नहीं तो उत्तर प्रदेश के एक कोने में भड़की साम्प्रदायिक हिंसा के फलस्वरूप एक मुस्लिम युवक की मौत हो गयी या एक दलित छात्र ने आत्महत्या कर ली तो उसके लिये दिल्ली में बैठा मोदी जिम्मेदार हो गया….
उससे भी पेट नही भरा तो सूट बूट और विदेश यात्राओं पर तंज कसो…. विरोधियों के पास यही मुद्दे बचें हैं विरोध के ….
अंतर साफ़ स्पष्ट दिखता है… पर इस्लाम के ठेकेदार मोदी का फर्जी खौफ दिखाकर मुस्लिमों के मन में डर बनाये रखना चाहते हैं….. क्यों उन बूढ़े बाबा को वो दिखा जो पढ़े लिखे मुस्लिम बुद्धिजीवियों को नहीं नजर आता?
क्योंकि इस्लाम के ठेकेदार जरूरत से ज्यादा पढ़े लिखे हैं… उन्हें पता है मुस्लिमों में मोदी का डर जिन्दा रखकर ही वो अपनी राजनीति बचाये रख सकतें हैं…. उन बूढ़े बाबा को मोदी का डर इसीलिये नहीं क्योंकि उनका इस्लाम खतरे में नहीं हैं…
उनकी चिंता हलाल हराम की केलकुलेशन नही बल्कि दो वक्त की रोजी रोटी का जुगाड़ है….. वो मुस्लिम बाद में भारतीय पहले हैं… जिन्हें खुद का और देश का नफा नुकसान समझ में आता है…
मजहबी कट्टरवादी नफरत का पहाड़ खड़ा किये हैं… मोदी दशरथ मांझी की तरह चोट पर चोट करते जा रहे हैं… हौसले बुलंद हैं और नीयत ईमानदार… जब तक तोड़ेंगे नहीं तब तक छोड़ेंगे नहीं…