Sri M – 8 : हिमालयवासी गुरु के साए में ‘जीवन’

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Sri M Himalaya Vasi Guru Ke Saye Me

जुलाई 2014 को उनका वीडियो देखकर मैंने पहले दर्शन पाए थे… गुरु की खोज का बीज शायद उसी दिन अंकुरित हो गया था…. और एक प्रार्थना की नई किसलय उस पर उग आई थी “काश मैं आपसे मिल पाऊँ ….”

आज ही के दिन 13 नवम्बर 2015  को मेरे शहर में उनके आगमन का पता चला… उनकी वीडियो में कही गयी बात और बब्बा (ओशो) मुझे इतने सालों से समझाते आ रहे हैं वो फलीभूत हुई… शिष्य होने की पात्रता होगी तो गुरु खुद तुम्हें ढूंढते चले आएँगे….

उनके कोमल चरणों का स्पर्श पाया, अश्रु धारा बही…. मेरे पास देने के लिए और कुछ था भी नहीं….

(दो दिन बाद ही तो स्वामी ध्यान विनय को सपने में दर्शन देकर कह गए बहुत सौभाग्य से मिली है वो उसे खोना नहीं…. ध्यान विनय ने स्वप्न में भी उनके चरण स्पर्श किए तो उसी कोमलता को अनुभव कर पाए जो मैंने 13 नवम्बर को साक्षात चरण स्पर्श करके पाया था. )

उनकी पुस्तक हिमालयवासी गुरू के साए में पर उनके ऑटोग्राफ ले रही थी… नाम पूछने लगे…. बड़ी झिझक हो रही थी उनके सामने “माँ” जीवन शैफाली कहने में लेकिन मैं चाह रही थी वो इसी नाम को लिखकर मेरा “माँ” होना सार्थक करें… बब्बा के दिए नाम पर अपने जीवित गुरु की गवाही चाह रही थी….

मैंने उनसे कहा मैं आपसे मिलना चाहती हूँ उस समय वो कुछ नहीं बोले अपने कार्यक्रम संयोजक की तरफ इशारा कर दिया. उनके संयोजक को अगले दिन, दिन भर फोन लगाती रही उन्होंने फोन नहीं उठाया…

फिर कुछ दिनों बाद स्वामी ध्यान विनय ने बताया… उन्होंने जानबूझकर संयोजक से मेरा फोन उठाने के लिए मना कर दिया था… वो नहीं चाहते थे मैं इस समय उनसे मिलूं…. शायद समय नहीं आया अभी..

उसी रात सपने में भी कह गए…. अभी से क्या करोगी संसार छोड़कर अभी बच्चे बहुत छोटे हैं तुम्हारे और बहुत काम बाकी है …. मैंने कहा मैं जानती हूँ, चाहकर भी संसार छोड़ नहीं सकती अभी, लेकिन आपका सानिध्य……

वो रोज़ सपने में आने लगे…. कभी कुछ संकेत दे जाते, कभी कुछ बातें कह जाते हैं…. जितना याद रहता है लिख लेती हूँ…. अब जाकर एमी माँ (अमृता प्रीतम) की उन कविताओं और बातों को समझ पाई हूँ जिनके लिए वो कहती है उन्होंने सांध्य भाषा में लिखी है…

सांध्य भाषा मतलब ऐसी अवस्था जब आपकी देह सोई रहती है लेकिन आप पूरी तरह से चैतन्य होते हो, इतने कि उस अवस्था में कविता भी रच सकते हो….

और उनके दिए सन्देश को मैंने लिखा  – [सवाल तो सबके मन के एक से ही होते हैं, बस उनके जवाबों की यात्रा सबकी अलग-अलग होती है.]

अस्तित्व से कई बरसों से बस सवाल पूछती रही, अपने गुरु श्री एम से मिलने के बाद मेरी जवाबों की यात्रा शुरू हुई है उनकी किताब पढ़ते हुए.

धन्यवाद जैसा कोई शब्द बहुत छोटा होता है लेकिन आज मैं अपने तीनों गुरुओं को साष्टांग दंडवत करती हूँ, जिन्होंने मेरी  शिष्य होने की संभावना को पहचाना और उस राह पर अग्रसर किया जहाँ मैं उनकी शिष्य होने की पात्रता अर्जित कर सकूं.

(श्री एम की पुस्तक के साथ किए जा रहे यात्रा वर्णन को पढ़ते हुए जिन लोगों को उपरोक्त बातें कपोल कल्पित लगती हैं, उनके लिए मैं उनकी पुस्तक में उन्हीं के द्वारा लिखी कुछ पंक्तियाँ कहना चाहूंगी –

पाठकों से मेरा निवेदन है कि आवश्यकता होने पर वे उन हिस्सों को नज़र अंदाज़ कर दें जो उन्हें सत्य से अधिक काल्पनिक लगते हों, और शेष पुस्तक को पढ़ें जिससे कि वे श्री गुरु और बाबाजी की महान शिक्षाओं से वंचित न रह जाएं.

मैं अपने गुरु के बारे में केवल वही कह सकता हूँ जो स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरु के बारे में कहा था- “उनके चरणों की धूल का एक कण हज़ारों विवेकनन्दों को पैदा कर सकती थी” विवेकानंद की जगह श्री एम रख दीजिये, आप समझ जाएंगे मेरा अभिप्राय क्या है.”

मैं भी श्री एम के कोमल चरणों का स्पर्श कर यही बात दोहराती हूँ.)

Sri M-7 : प्राणी और प्रकृति

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