सूरत के बारे में तो मैं कुछ नहीं कहना चाहूंगा क्योंकि उसे अर्जित करने में मैंने इस जन्म में कोई श्रम नहीं किया है.
पढ़ा है कि पूर्व जन्मों के कर्मों के आधार पर आपका इस जन्म का घर और माता-पिता निर्धारित होते हैं और इसी प्रकार माता-पिता के कर्मों के आधार पर उनके घर आने वाली जीवात्मा का निर्धारण होता है. यानी कुल खेल पात्रता का है.
सो अगर ऐसा कुछ आपको मुझमें दिख रहा है तो इसमें इस जन्म का कुछ नहीं है. सो ध्यान विनय इसे प्रशंसा-आलोचना दोनों रूप में नहीं स्वीकारेंगे.
अब सीरत की बात- सहज स्वीकारता हूँ कि कृष्ण लीला ने सदैव आकर्षित और प्रभावित किया है. यहाँ लीला शब्द पर ध्यान दिलाना चाहूंगा, मेरे संज्ञान में कृष्ण से पहले किसी और अवतार के जीवन चरित के लिए यह शब्द इस्तेमाल नहीं किया गया.
फिर कृष्ण 16 कलाओं से युक्त पूर्णावतार, उस पर ओशो जैसे व्याख्याकार, तो कैसे न हो कृष्ण से प्यार….
मैदान छोड़ना, झूठ बोलना, अर्जुन जैसे संशयी जीव को युद्ध में उतारना, खुद अपनी बहन को अर्जुन के साथ जाने देना, द्रोपदी को ‘कृष्णा’ बनने देना, और जो कुछ भी किया, सब पूरा-पूरा किया, और लीलापूर्वक किया.
अपना भी यही हाल है, अच्छा-बुरा, पाप-पुण्य निर्धारित करते रहेंगे लोग अपने बाद, अपन तो बस करते चले पूरा-पूरा, जहां समर्पित हुए पूरे हुए, आधा अधूरा समर्पण जैसी कोइ चीज़ नहीं होती, धोखा होता है. जिससे प्रेम किया पूरा किया, जहां हिंसक हुए पूरे हुए…..
ईश्वरत्व पर अपना कोंई दावा नहीं, क्योंकि दावा किया और बात झूठी हुई, पर हर एक का परम गंतव्य, परम लक्ष्य और नियति वही नहीं है क्या?
एक बात और, जिस राह पर आप चल पड़ी हैं, या चला दी गयी हैं, या धकेल दी गयी हैं… या आपने चुना है…. या उस मार्ग पर होना आपकी नियति है…. जो भी हो आपको अपने मुंह से एक एक शब्द बड़ी सजगता और सतर्कता से निकालना होगा….
आप इसे बंधन समझेंगी तो परेशान होंगी लेकिन इसे कृतज्ञता की तरह लेंगी तो फिर आपका बोला हुआ हर वाक्य मुंह से निकलने से पहले खुद ही सतर्क हो जाएगा…. फिर कभी मुंह से गलत बात नहीं निकलेगी….
और फिर एक दिन ऐसा भी आएगा कि यदि किसी क्षण में, मुंह से कोई गलत बात निकल भी गयी तो वो भी सच हो जाएगी……
– स्वामी ध्यान विनय