॥ महाकाली का जन्म ॥
सृष्टि से पहले काल था……
और थी उसकी प्रेयसी कालिमा!
न सूर्य, न ग्रह-मंडल,
न आकाश-गंगा
न पर्यावरण, न प्रकृति
बस काल और कालिमा!
अपने शैथिल्य से ऊब कर
काल ने निर्णय लिया
कुछ करने का
स्वयं को व्यस्त रखने का!
एक दिन
जब सो रही थी कालिमा,
काल ने पहले सूर्य को रचा
अपने शरीर की अग्नि से,
ग्रहों को रचा अपने स्वेद से,
उसकी दृष्टि फैल गई
आकाश-गंगा बन कर!
काल ठहरा नहीं
पल भर के लिए भी,
धरती को उसने
आच्छदित किया –
अपनी कामनाओं को
प्रकृति का रूप देकर!
जन्म दिया ब्रह्मा,
विष्णु और शिव को
इस तरह मानव सभ्यता का
शुभारम्भ हुआ धरती पर!
जागने पर
अंधकार की स्वामिनी कालिमा
बहुत अप्रसन्न हुई काल से
सूर्य ने अस्तित्व हीन कर दिया था
उसकी उपस्थिति को!
कालिमा आदि सहचरी थी काल की….
बहुत चिंतन के बाद
काल ने उसे सांत्वना दे
स्थिर कर दिया शिव के कंठ में
और कहा –
तू ही शक्ति होगी शिव की,
तू ही ध्वंस करेगी
मनुष्यों का पाप और दर्प,
तू ही पृथ्वी पर
प्रतिनिधि होगी महाकाल की
तू ही महाकाली होगी!
तेरे रंग में तिरोहित जाएंगे
सृष्टि के समस्त पाप
तेरे स्पर्श से
आत्माएं हो जाएंगी
पुण्य और पवित्र
काले रंग पर कभी नहीं चढ़ेगा
कोई दूसरा रंग!
इस तरह प्रादुर्भाव हुआ
महाकाली का धरती पर!
हमारे जीवन से
समस्त कलुषों के
निवारणके लिए!
आज फिर तेरी प्रतीक्षा है माँ!