दो अनुभव –
पहला
आज बड़े नोटों के साथ ही बिजली का बिल जमा हो गया. चूंकि बड़े नोटों के इस्तेमाल का आज आखिरी दिन है सो खासी भीड़ थी. अब तक यहाँ अमूमन 4-5 आदमियों की कतार से ही सामना हुआ था अपना, पर आज जब कतार में खड़ा हुआ तो मुझसे आगे करीब 70-75, महिलाएं-पुरुष थे.
ठण्ड की गुनगुनी धूप, चर्चा करने को पांच-सात लोग… सबके पास, मोदी सरकार के इस निर्णय पर सुनाने को ढेरों किस्से …
इस जमावड़े में हर आयु वर्ग के लोग थे… बस नहीं थे तो एक अदद राहुल गाँधी, एक केजरीवाल, अपनी BMW और मुल्ला यम
कहने का आशय यह कि हरएक अपना कामधाम छोड़ कर, अपना आराम छोड़ कर यहाँ खड़ा था, पर मजाल कि किसी के मुंह से एक भी शिकायती लफ्ज़ निकला हो.
इससे स्पष्ट है कि उपरोक्त वर्णित नेता और इनकी पिट्ठू मीडिया ज़मीन से कितने कटे हुए हैं.
हाँ, सीताराम ये’छुरी’ और प्रकाश ‘करैत’ जैसे तीन जंतुओं के दर्शन अवश्य हुए.. वे इस एटीपी काउंटर को नोट बदलने का जुगाड़ समझ रहे थे.
एक साहब 2050 रूपए का बिल भरने हज़ार के तीन नोट टिकाने लगे, दूसरे जो मिले उनका बिल कुल 188 रूपए का था, उन्होंने भी हज़ार का ही नोट चमकाया. और तीसरे भाई साहब तो बिल भरने ही नहीं आए थे, उन्होंने तो सीधे हज़ार-हज़ार के 5 नोट एटीपी मशीन ऑपरेटर की तरफ बढाते हुए सौ-सौ के नोटों की मांग कर डाली.
पता नहीं, ऊपर से निर्देश हैं या एटीपी मशीन ऑपरेटर होशियार था, उसने 2050 वाले भाई साहब से पूछा कि दो हज़ार आज जमा करना है या पूरे तब ही करना पसंद करेंगे उनके जब 50 का नोट होगा? यही ट्रीटमेंट 188 वाले को मिला.
पांच हज़ार के छुट्टे करवाने आए सज्जन(?) लगभग सौ आदमियों की भीड़ के आगे बिलकुल हुज्जत नहीं कर सके और उलटे पाँव वापस हो लिए.
बिल जमा करने में लगे लगभग सवा घंटे के बाद मोदी जी से विनती है कि वे बेधड़क काम में जुटे रहें, जनमत उनके साथ था, और साथ है…
ये कोई चुनावी मौसम नहीं कि कहा जाए कि मोदी को देश में सिर्फ 33-34 प्रतिशत वोट ही मिले हैं और देश की 66-67 फीसदी जनता उनके खिलाफ है.
इन ढाई सालों में लोग देख भी चुके हैं, अनुभव भी कर चुके है कि सरकार दरअसल होती क्या है? होती कैसी है? करती क्या है?
नमो ने भले मना किया हो, फिर भी, एक बार फिर आवाज़ बुलंद करने का मन करता है – हर हर मोदी, घर घर मोदी.
दूसरा
salute बैंक कर्मियों की कर्मठता और उससे भी ज़्यादा उनकी सहिष्णुता को
बिजली विभाग के बाद एक अनुभव बैंक का.
दोपहर 12 बजे अपने बैंक के अफसर को फोन कर पुराने नोट जमा करने की इच्छा जताई.
उनका साफ़ कहना था कि कम से कम चार घंटे का समय हो तो ही आइए. और अगर कोई जल्दी न हो तो शाम 6 तक आइए.
जल्दी कुछ थी नहीं.
शाम साढे छः बजे बैंक में स्टाफ के अलावा लगभग 30-35 ग्राहक. सामान्यत: अपनी कुर्सी पर बैठे रहने वाले अधिकारी, कभी कैश काउंटर में, तो कभी मैनेजर के कमरे में, तो कभी ग्राहकों से मिलकर उन्हें तसल्ली देते दिखे.
आनन-फानन में तो नहीं, फिर भी शाम लगभग साढ़े सात बजे पुराने नोट जमा होकर, नए नोटों की निर्धारित सीमा में निकासी भी हो गई.
कैश काउंटर पर बैठी लड़की, जो सुबह भली-भांति तैयार होकर आई होगी, इस वक़्त तक बिखरे बालों के साथ बेहद थकी, कुछ परेशान, अस्त-व्यस्त सी दिख रही थी.
तारीफ करनी होगी कि ऐसे में काम पूरे मनोयोग से कर रही थी. पूछने पर बोली कि कुछ ही दिनों की तो बात है, फिर तो रुटीन वर्किंग हो ही जाएगी.
जमा और निकासी के बीच के अंतराल में एक बैंक अधिकारी ने मुझे सोफे पर बैठा देखा तो उठकर पास आए और कारण पूछा.
प्रत्युत्तर में मैंने उनका हाल पूछ लिया तो पता चला कि दोपहर के भोजन के लिए घर से टिफिन लेकर आए थे जो अब तक जस का तस रखा है. ब्रांच से घरवापसी के बारे में पूछा तो जवाब मिला कि ‘not before ten.’
इसी एहसास के साथ ब्रांच से वापसी हुई कि मोदी राज में सिर्फ हम ही नहीं, सरकारी अमला भी कर्मयोगी बना हुआ है.
salute बैंक कर्मियों की कर्मठता और उससे भी ज़्यादा उनकी सहिष्णुता को…
और हमेशा की तरह – हर हर मोदी, घर घर मोदी.