9 तारीख को मोदी सरकार ने एक बड़ा और ऐतिहासिक फैसला लिया जिस से कई लोग परेशानी में पड़ गए. “कई लोग” कहना तो बहुत दूर की बात है मैं खुद ही भारी परेशानी में फंस गया हूँ.
सौ से कम रुपए हैं जेब में उसके अलावा 5 हज़ार पड़े हैं और सब हज़ार हज़ार के नोट ही हैं. अब रविवार को दिल्ली जाना है, रोज़ के खर्चे भी हैं. मैं कहा से 100 के नोट जुगाड़ करूँ?
बैंक में गया तो मुझसे भी अधिक ज़रूरतमंद लोग लम्बी क़तार लगाए खड़े थे. दुकानदार कोई डर के मारे ये नोट ले नहीं रहा ना खुल्ले दे रहा है.
घर से दूर हूँ बहुत दिक्कत है. मेरी ही तरह देश की एक बड़ी आबादी इसी परेशानी से त्रस्त नज़र आ रही है. अच्छा ये तो हुआ मेरा दुखड़ा जिसे पता नहीं मैं आपको क्यों सुना रहा हूँ. अब चलिए मुद्दे की बात कर लेते हैं.
कुछ समय पहले ही पाकिस्तान के साथ युद्ध की बातें हो रही थीं. मसला बहुत उलझ भी तो गया था. भाई देश की इज्ज़त का सवाल था पूरा देश जोश में था.
कोई नवाज़ भाई की अम्मी की तारीफ कर रहा था, किसी को उसकी बेटी का एम एम एस बहुत भा रहा था. कुछ लौंडे तो क्वाटर चढ़ा कर हिना खार रब्बानी को उठा लेने के लिए निकल पड़े.
वो तो बीच में नाला आ गया जिसमे गिरने के बाद पूरी रात उसमें से निकलने की कोशिश में बीत गई, नहीं तो बेचारी हिना आज अपने दुश्मन देश भारत की बहू होती.
सभी की जुबान पर शहीदों और सैनिकों का गुणगान था. शहादत के कसीदे पढ़े जा रहे थे. हर कोई वतन पर मर मिटने की बातें कर रहा था.
ये सब क्यों था? क्योंकि सब में देशप्रेम बोल रहा था. जब जब देश पर संकट आया है हर बार लोगों ने अपने स्तर से बड़ी बड़ी बातें की हैं, जान देने की, सर्वस्व लुटाने की. जिसकी भी सरकार हो उस सरकार की बखिया भी इत्मिनान से बैठ कर उधेड़ी हैं सबने.
कानून व्यवस्था को गलियाँ दीं सरकार को बुरा भला कहा. याद होगा जब सैनिकों पर लगातार हमले हुए तो सबने प्रधानमंत्री को कोसा था, अच्छे से लानत बरसाई थी उसके बाद जब सर्जिकल स्ट्राइक कर के दुश्मन को सबक सिखाया गया तब भी कुछ हद से ज्यादा होशियार लोग बदहजमी के रोग से ग्रसित हो गए.
किसी ने कहा ये झूठ है, कोई बोला मोदी ने नहीं सेना ने किया है. जब सेना पर हमला हुआ वो मोदी की गलती थी और जब दुश्मन पर हमला किया गया तो वो सेना ने किया था. ऐसी मूर्ख जनता ये भूल गई कि अगर हमला करना सेना के हाथ में होता तो मैं और मुझ जैसे शायद आज दिल्ली की बजाए लाहौर के गलियारों में जन गन मन गा रहे होते. खैर क्षमा चाहता हूँ मैं फिर बात से भटक गया. चलिए अब मुद्दे पर आता हूँ.
तो अति समझदार भाइयों भाभियों बहनों मुझे ये बताइए कि क्या आपकी देशभक्ति बस फेसबुक तक ही है? बस फ़ौज के लिए दो लाइनें लिख देने भर तक ही आपका देशहित कर्तव्य है?
क्या आप देशभक्ति का मतलब बस पाकिस्तान के खिलाफ कुछ बातें लिखना और प्रधानमंत्री को कोसना ही समझते हैं. तो फिर माफ़ करें सर जी आपसे नहीं हो पायेगा देशहित में कुछ भी और इस तरह आप सरकार पर ऊँगली उठाने के काबिल भी नहीं हैं. क्यों उठाएंगे आप ऊँगली आपने देश के लिए किया ही क्या है.
कल से लोगों के आलाप सुन रहा हूँ कि नोटबंदी हुई तो परेशानियाँ बढ़ गईं. भाई किसकी नहीं बढ़ीं? सबकी तो बढ़ी है हर कोई तंग है मगर हम सब जानते हैं ये जो भी है सब हमारे और देश के भले के लिए ही तो है.
एक तरफ कहते फिरते हैं मोदी ने कुछ नहीं किया मोदी फेंकता है और जब मोदी जी ने ये अहम् कदम उठा लिया उस से भी आपको दिक्कत है. अरे भाई बैठे बैठे आराम फरमाते हुए देश नहीं बदलेगा, देश को बदलने के लिए हमें भी कठिनाइयाँ उठानी होंगी.
हर कोई ये कह कर हल्ला मचाए है कि आम आदमी त्रस्त है किसान त्रस्त है, पर सरकार का ये फैसला भी तो आम आदमी, किसान और गरीब वर्ग के हित में ही है. जनता से बड़ा कौन हो सकता है?
सार्वजानिक तौर पर कोई सरकार अपने देश की जनता के अहित में कदम नहीं उठा सकती. जो हो रहा है आप सब के सामने ही तो हो रहा है जहाँ गलत लगे वहां सरकार को घेरिए, सवाल करिए, रोष दिखाइए, जैसा आप हमेशा से करते आ रहे हैं.
मगर कम से कम अभी तो संयम रखिए. ज्यादा नहीं तो कुछ दिन इंतजार कर लीजिए, कुछ दिन कठिनाइयाँ सह लीजिए उसके बाद दिक्कत हुई तो इक्कठे धरना दिया जायेगा जंतर मंतर पर.
दिक्कतें तो आयेंगी मगर बिना दिक्कत सहे देश की मदद भी तो नहीं की जा सकती. ये दिक्कत आप किसी सरकार या किसी प्रधानमंत्री के लिए नहीं सह रहे हैं.
ये आप खुद के और देश के फायदे के लिए सह रहे हैं. तो दोस्तों मैं और मुझ जैसे बहुत लोग सह रहे हैं दिक्कत, आप भी भारत माता की जय कह कर सह लीजिए.
– धीरज झा
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