कथाएँ चाहे काल्पनिक हो, उसके पीछे के सन्देश काल्पनिक नहीं होते. धर्म पथ पर चलने के लिए देवताओं तक को श्राप और कलंक माथे पर लिए घूमना पड़ता है…
लेकिन ये धर्म पथ पर चलने का ही पुरस्कार है कि श्राप भी आशीर्वाद में बदल जाता है…
असुर जलंधर की आसुरी शक्ति से हारे शिव ने जब धरती को बचाने विष्णु का आह्वान किया तो विष्णु ने जलंधर का रूप धर उसकी पत्नी वृंदा का पतिव्रत धर्म नष्ट किया…
अब सोचिये कैसे किसी व्यक्ति की आसुरी शक्ति उसकी पत्नी का शील भंग कर कमज़ोर हो सकती है. हमारे नारीवादी लोग इस बात को स्वीकार नहीं कर पाते कि एक पुरुष की शक्ति का स्त्रोत नारी ही है…
वह प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से अपने पुरुष की शक्ति की सहभागिनी होती है… ब्रह्माण्ड का शिव और शक्ति के दो बिम्बों पर खड़े होना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है…
जलंधर की शक्ति तो क्षीण हुई, लेकिन वृंदा जो देवताओं के इस षडयंत्र से अनभिज्ञ थी समझ नहीं पाई कि देवता भी जब परनारी का भोग करते हैं… तो उसके पीछे किसी असुरी शक्ति को नष्ट करने का ही उद्देश्य होता है…
आम मानव कदाचित इसे धर्म के विपरीत बात समझे लेकिन एक तांत्रिक इस यांत्रिक क्रिया का अर्थ भली भांति समझ सकता है…
वृंदा सामाजिक मर्यादा से ऊपर की बुद्धि नहीं रखती थी… तो उद्देश्य समझ नहीं पाई और विष्णु को श्राप दे बैठी…
विष्णु ने श्राप सहज स्वीकार किया, उस नारी का जिसे उसने स्पर्श किया था… उसका दिया हुआ उपहार उन्हें स्वीकार था… विष्णु पत्थर के हो गए…
देवता इस अनअपेक्षित परिणाम से चिंतित हो उठे… ब्रह्माण्ड की तीन शक्ति में से एक यदि पत्थर हो जाएगी तो ब्रह्माण्ड टिक नहीं पाएगा…
सब देवता मिलकर वृंदा के पास गए… उसे उद्देश्य और कारण समझाया… लेकिन वृंदा को समझ आता इसके पहले श्राप उसके मुंह से निकल चुका था…
हर नारी यदि बोलने से पहले ये बात समझ ले कि उसके मुख से निकलने वाला हर शब्द ब्रह्माण्ड की व्यवस्था को प्रभावित करता है तो उसे अपनी उस शक्ति का दर्शन होगा जिसे वो परमात्मा की शक्ति समझ कर पूजती है…
जिस दिन उसे अपनी इस शक्ति का अनुभव हो जाएगा उस दिन वो उस अवस्था को प्राप्त कर लेगी जहां उसे पूजा जाएगा…
वृंदा ने श्राप वापस लेने का प्रयास किया, लेकिन विष्णु जिसने उसके साथ बलात्कार नहीं किया था बल्कि उसके पति का रूप धर पत्नी के रूप में प्रेम किया था, उस प्रेम को भुला नहीं पाया…
कहते हैं मनुष्य की आत्मा चाहे सबकुछ भूल जाए लेकिन उसकी देह को सारे स्पर्श हर जन्म में याद रहते हैं…. उसे देह की सुगंध याद रहती है… विष्णु के मानस पटल पर वृंदा का एक स्पर्श इतनी गहराई में छाप छोड़ गया था कि उस एक सम्भोग के बाद उन्होंने वृंदा को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया था…
और फिर उन्होंने शालिग्राम का रूप धरा और वृंदा को वचन दिया कि यदि वृंदा के रूप में तुम खुद को कलुषित समझती हो तो मैं आशीर्वाद देता हूँ कि अगले जन्म में तुम पूजनीय तुलसी का रूप पाओगी और यही सामाजिक प्राणी हमारा विवाह करेगा…
वो दिन और आज का दिन … कार्तिक, शुक्ल पक्ष, एकादशी को विष्णु शालिग्राम के रूप में वर हैं और वृंदा तुलसी के रूप में वधु और हम उस विवाह के साक्षी हैं, जो जब ब्रह्माण्डीय रूप धर लेता है तो सामाजिक परम्पराएं भी उसे स्वीकार कर लेती है…
मेरा और स्वामी ध्यान विनय का संबंध मुझे उस शिव और शक्ति का आशीर्वाद स्वरूप ही लगता है… और मेरी इस बात की पुष्टि के लिए परमात्मा ऐसा कोई संकेत अवश्य भेज देता है जिससे मैं हर बार कह उठती हूँ… जादू…
और ऐसा ही जादू इस लेख को लिखते समय घटित हुआ… चित्र में जो आप माता की मूर्ति, साड़ी और श्रृंगार का सामान देख रहे हैं… ये उसी समय कुरियर से प्राप्त हुआ… जब शिव और शक्ति की बात लिख रही थी…
एक सहेली ने भेजा उपरोक्त भाव दर्शाते हुए ही.. … आज प्राप्त हुआ…. कार्तिक, शुक्ल पक्ष, एकादशी को स्वामी ध्यान विनय के आँगन की इस तुलसी के लिए…
देवउठनी एकादशी : 100 सालों बाद मिला अद्भुद संयोग, लेकिन नहीं हो सकेंगे शुभ कार्य
क्या इसी तरह से इन्द्र द्वारा अहल्या के शीलभंग का स्पष्टिकरण हो सकता है ?