वो कहते हैं कि बैंकों की रूपये जमा और निकालने की लाइनों में टाटा, अंबानी, बिरला जैसे पूँजीपति, नौकरशाह और नेता कहाँ लगे मिल रहे हैं? एक भी मोटा सेठ और मालदार लाइनों में नहीं खड़ा. साफ़ है…. परेशान आम जनता है.
हे समझ के वैशाखनंदनों यानी गधों! दो लाख पचास हजार रूपये की अधिकतम…. अन-एकाउंटेड लिमिट (बिना कारण बताए जमा कराने की छूट) के बाद…. ये धनपशु, मालदार, अवैध जमाखोर…. कैसे और क्यों खड़े नजर आएंगे लाइनों में? जब ये आर्थिक सर्जिकल स्ट्राईक किया ही गया…. इन्हें नबंर एक की लाइन से बाहर रखने के लिए!
परेशान कौन है… इस लाइनों से बाहर रह कर, अगर देखना हो… तो मुलायम सिंह और मायावती को देखिये, लजाते-सकुचाते हुए भी दर्द मुँह से फूट ही गये लाइन से बाहर रहने पर.
दर्द दिखे…. तो जाली करेंसी के गृह जिले बंगाल के मालदा को पालती हुई….. ईमानदार नेत्री ममता बनर्जी के जिगर में देखिये, जिनके सूबे का जाली नोट कुटीर उद्योग तबाह हो गया!
लाइन का सुख क्या होता…. यह दर्द महसूस करिये, एनजीओ कंपनी गिरोह उर्फ़ आम आदमी झुंड के दिल्ली सरदार की खामोशी में.
आपको लाइन से बाहर रहने का मलाल दिखना चाहिए…. देश में काला पालती आई कांग्रेस की नासमझ हरकतों में.
लाइनों से बाहर रहने का दर्द, तमाम लावारिस बरामद होते और फूँके जाते काले नोटों में देखिये.
ये वे बदनसीब नोट हैं… जिन्हें अपने मालिकों की कालिख की वजह से… सफेद धन की लाइनों में खड़ा होने का न मौक़ा मिला और न ही ये इसके हकदार हैं.
रही बात देश के मेहनत-ईमानदारी से कमाते-खाते लोगों की, तो अपने हक के एक-एक नोट को लाइनों में लग के, वापसी लेंगे और यह शेर गुनगुनाते हुए….. इन अच्छे दिनों का आनंद लेंगे….
जब – बैंकों की नोट जमा करने और वापसी लेने की लाइनों से…. टाटा, अंबानी, बिरला जैसे पूंजीपति और नौकरशाह, नेता गायब हैं, फरार हैं.
ज़िंदगी हम फकीरों से क्या ले गयी,
तन से चादर, बदन से कबा* ले गयी.
*कबा- अंगरखा, कमीज