क्या हमें हक़ है देश को महान कह कर उस पर गर्व करने का?

हम बचपन से सुनते आ रहे हैं कि हमारा देश महान है और हमें अपने देश पर गर्व है. क्या वाकई में आपको लगता है कि आप खुद पर और अपने देश पर गर्व करने के काबिल हैं?

क्या आपने कुछ भी ऐसा किया है जिस से आप ये कहने के लायक हो सके हों कि आपका देश महान है. या फिर आप भी बस देश के इतिहास को देख कर और कहानियाँ सुन कर ही देश को महान मान चुके हैं?

आपको आपकी देशभक्ति का तमगा मैं या कोई और नहीं देगा आप खुद ये तय करेंगे कि आप सही हैं या गलत, आपने देश को महान बनाने के लिए कुछ किया भी है या फिर बस यूँ ही झूठी शान में जी रहे हैं.

हो सकता है मेरी बातें आपको थोड़ी खटक जाएँ मगर मेरी बातों पर अपनी राय बनाने से पहले ज़रा नीचे देख लीजिए और फिर अपनी राय बनाइए.

कुछ वक़्त से लगातार एक के बाद एक मुद्दा सामने आ जाता है जिस से अखंड भारत खंड खंड होता हुआ नज़र आने लगता है. फिर सोशल मिडिया हो या सड़कों पर दिए जा रहे धरने हर जगह भारत, इंडिया, और हिंदुस्तान बंटे हुए दिखाई देते हैं.

और ये अब की बात नहीं ये बात हमेशा से ऐसी ही रही है. सरकारें आईं और गयीं मगर लोग एक मत कभी नहीं हो पाए. होना भी नहीं चाहिए, भाई क्यों हों एक मत? सबकी अपनी ज़रूरते हैं जिसकी ज़रुरत पूरी नहीं होगी वो तो अपनी शिकायत करेगा ही मगर शिकायत का तरीका सही होना चाहिए. कहीं शिकायत करते करते हम खुद को ही न बाँट लें.

26 मई 2014 से पहले भी शोर मचता था, लोग तब भी सरकार से ना खुश थे. जिनको ये दिक्कत है कि मौजूदा प्रधानमंत्री जी बहुत बोलते हैं तब उनकी समस्या थी की प्रधानमंत्री जी बोलते ही नहीं.

देश कोई भी हो ये तो तय है कि अपनी सरकार से सभी देशवासी संतुष्ट नहीं होते. सोचने वाली बात है घर का मुखिया एक परिवार के सभी सदस्यों को खुश नहीं रख पाता तो भला पूरे देश को एक इन्सान कैसे खुश रख पायेगा.

मगर नाखुश होने का ये मतलब नहीं है कि आप मुखिया को गलियाँ दें. इस से मुखिया का कुछ नहीं जायेगा बिगड़ेगा आपका और आपके देश का.

हम भले ही यूपी, बिहार, बंगाल, केरला, पंजाब, महाराष्ट्र, इत्यादि किसी प्रदेश के किसी जिले के किसी कस्बे या गाँव में पैदा हुए हों मगर हमारे राशनकार्ड से अधारकार्ड और पासपोर्ट तक एक ही चीज़ सबसे ज्यादा मायने रखती और वो ये कि हम एक “भारतीय” हैं.

हम में से कई लोग विदेशों का दौरा कर आये हैं और सबको वहाँ एक भारतीय के रूप में ही पहचान मिली, किसी से ये नहीं पूछा गया कि आप कौन से प्रांत या कौन से जिले से हैं.

पहले हमारे देश के बारे में पूछा जाता है उसके बाद ही हमारा नाम और उपनाम पूछा जाता है. हमारा भारतीय होना ही हमारी पहचान है. स्वतंत्र भारतीय कहलवाने के लिए ही न जाने कितने बिहारियों, पंजाबियों, यूपी वालों, मराठियों ने अपनी जानें कुर्बान कर दीं. और आज हम क्या कर रहे हैं इसी पहचान के टुकड़े टुकड़े कर रहे हैं.

हमने स्कूल में राष्ट्रीय गान पर खड़ा होना सीखा, तिरंगे को सलामी देना सीखा, किसी भी खेल में भारतीय खिलाड़ियों की जीत पर हमने जश्न मनाए पटाखे फोड़े.

हमने बचपन से सीखा कि हम भारतीय हैं मगर जैसे जैसे बड़े हुए हमने खुद को सहमति और असहमति के आधार पर, जात के आधार पर, मज़हब के आधार पर, किसी के समर्थन या विरोध के आधार पर बाँट लिया.

कितना दुखद है ये उनके लिए जिन्होंने ने हमें भारतीय कहलाने का हक़ अपनी जान गँवा कर दिलाया था.

आप विरोध करो, अपने हक़ में बोलो, बोलने की आज़ादी का खुल कर उपयोग करो, नारे लगाओ धरने दो, मगर कुछ ऐसा मत करो जिस से हमारे देश असमानता या असहिष्णुता का भाव किसी के मन में आये.

किसी देश का प्रधानमंत्री उस देश की पहचान होता है. वो अगर विदेश में जाता है तो वो अकेला नहीं जाता उस वक़्त वो अकेला इंसान खुद में पूरा देश समेटे हुए होता है. अगर विदेश में उसका सम्मान किया जाता है तो उसका सम्मान नहीं होता बल्कि वो सम्मान देश का हो रहा होता है क्योंकि उस प्रधानमंत्री के प्रधानमंत्री बनाने से पहले उसे किसी भी देश ने बुला कर सम्मानित नहीं किया.

सीधी बात है अगर आप अपने देश के प्रधानमंत्री को सोशल मिडिया या दस बन्दों के सामने गालियां देते हो उन्हें बुरा भला कहते हो तो असल में आप अपने देश को बुरा कह रहे होते हैं.

विरोध अलग बात है और किसी को गलियां देना अलग बात है. आप अपनी बात कहिये अपनी नाराज़गी को सामने रखिये अपने अधिकार का सही उपयोग करिए मगर देश के प्रतिनिधि को गालियाँ मत दीजिये भले ही वो किसी पार्टी का हो.

जब कोई नया मुद्दा उठता है आप तब तब बंट जाते हैं. लाठियां तक चलने लगती हैं, खून खराबा तक हो जाता है. जबकि इन मुद्दों के अलावा भी देश को बहुत से ऐसे मुद्दों में आपकी अगवाई की ज़रूरत है जिनकी वजह से आप चाह कर भी अपने देश पर गर्व महसूस करने से झिझक सकते हैं.

भारत की 37% आबादी गरीबी रेखा के नीचे है,. भ्रूण हत्या के मामले दबने का नाम नहीं ले रहे हैं. महिलाओं की सुरक्षा खतरे में है, आये दिन बलात्कार के घिनौने मामले सामने आ जाते हैं.

ऐसे कई मुद्दे हैं जो हमारा सर शर्म से झुका देते हैं मगर इन मुद्दों पर कोई खास प्रतिक्रिया नहीं दिखती, तब कहीं भी एकजुट भारत नहीं दिखता. हमने आज़ादी पा ली क्योंकि तब देश एकजुट था सब की आँखों में सोते जागते एक ही सपना था और वो था आज़ादी का सपना मगर अब न वो ऑंखें हैं न वो जज़्बा और न उस तरह से सपने देखने का जूनून. है तो बस विद्रोह और एक दूसरे की बात से असहमत हो कर एक दूसरे पर कीचड़ उछालना.

इस तरह से ना आप देशभक्त बन पाएंगे और ना ही हमारा देश महान कहलायेगा. सिर्फ कहने से नहीं बल्कि कुछ कर गुजरने से महान बनेगा हमारा देश.

तो आइये अपने स्तर पर कुछ अच्छा करें जिस से कम से कम हमारे मन को तो संतोष हो ये सोच कर कि हमने देश को महान बनाए रखने के लिए कुछ तो किया.

देश की छोटी से छोटी उपलब्धि पर आलोचना करने से अच्छा है अपना सर गर्व से ऊँचा कीजिए और शान से कहिए “हाँ हम सब भारतीय हैं और हमें इस बात का गर्व है”.

– धीरज झा

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