परमादरणीय श्री ट्रम्प सिंह ‘बघेल’ की जीत समस्त हिन्दू राष्ट्रवादियों, संघियों, बाभन-ठाकुर मनुवादी सवर्णों की जीत है.
श्रीमती हिल्लेलाही ‘टनाटन’ की हार के साथ ही ‘यू एस ऑफ ए’ को अल-अमरीका बनाने के षड्यंत्रों पर भी विराम लग गया.
यह फेमिनात्जियों और तुष्टिकरण की खाजनीति करने वालों की भी हार है.
ट्रम्प सिंह बघेल की जीत को अमरीकी मूलनिवासियों की जीत के तौर पर भी देखा जा रहा है जो अब धरती के मूल यानि पत्थरों पर जीवाश्म के रूप में ही दीख पड़ते हैं.
चूंकि बकौल तारेक फतह श्री ट्रम्प सिंह बघेल यू एस ऑफ ए के मोदी हैं इसलिए यह कहना जायज़ ही है कि ट्रम्प सिंह को भी ‘खून से रंगे हाथ’ जैसे जुमलों से सुशोभित किया गया था.
अब देखना यह है कि बिल-मेलिंडा, फोर्ड-फंडा और बिल-हिलेली वगैरह की ग़ैर-सरकारी ट्रैक2 वाली रेलगाड़ियां भारत में कितने दिन चलती हैं.
वैसे दूरगामी बाइलेटरल राजनयिक सम्बंधो में भी बहार के आसार हैं.
मैं तो कहता हूँ कि कुछ साल बाद जम्मू कश्मीर राज्य में होने वाले चुनाव में श्री अनुपम ढेर जी को मुख्यमंत्री पद का प्रबल दावेदार होना चाहिए तथा श्री ट्रम्प सिंह बघेल को अटलांटिक पार से उनका मनभर समर्थन करना चाहिये.
इसके साथ ही निवासी भारतीयों को बाकायदा यू एस ऑफ ए के प्रेसिडेंशियल चुनाव में वोट डालने के अधिकार से अब और महरूम न रखा जाए इंडिया बहादुर सरकार से हमारी यह भी दरख़्वास्त है.
डिप्लोमेसी का तकाज़ा तो यह भी है कि श्रीमती क़िर्रोन ढेर हिलेली को साड़ी गहने पहनना सिखाएं. सर्वहारा, पिछड़ों और महिलाओं को समानता के अवसर की किरांति वहां भी ज़ुरूरी है कि नहीं?