9/11 वर्ल्ड ट्रेड(World Trade Center) हमले के बाद पूरी दुनिया ने मजहबी उन्माद की भयावहता को देखा. लगभग उसी समय ब्रिटेन समेत यूरोप के कई मुल्कों में अमेरिका की ही तरह कई आतंकी हमले हुए.
ये वही दौर था जब पूरी दुनिया ने आतंकवाद और इस्लाम को एक-दूसरे का पर्याय मानना शुरू कर दिया था. इस खौफ के नतीजे में गैर-मुस्लिमों द्वारा कुरान शरीफ, इस्लाम और मुस्लिम मानसिकता को समझने का दौर शुरू हुआ.
क्रूसेड के समय से आज तक लगातार कोशिश करके इसाईयत ने इस्लाम को ऐसे मजहब के रूप में पेश करने में सफलता पा ली थी जो सिवाय तलवार किसी और रास्ते पर विश्वास ही नहीं रखता और न ही अपने अलावा किसी और मजहब या मत को मानने वाले को बर्दाश्त कर सकता है.
इसाईयत द्वारा स्थापित इस तथ्य को जेहन में लेकर जब वहां का एक इसाई इस्लाम का अध्ययन करने गया तो उस इसाई मानस ने इस्लाम को ठीक वैसा ही पाया जैसा चर्च ने उनको आज तक बताया था.
ऊपर से जाकिर नाइक जैसे उन्मादी मजहबी प्रचारकों ने लगातार पश्चिमी लोगों को धमकाते हुए ये कुरानी भविष्यवाणी सुनाई कि one day islam will dominate the world.
बराक “हुसैन” ओबामा राष्ट्रपति थे , इसलिये अमेरिकी ‘कुछ अच्छा हो सकता है’ की कल्पना भी नहीं कर सके और इस डर और खौफ़ ने अमेरिका और यूरोप में मजहब परिवर्तन कर इसाई से मुस्लिम बनने वालों की बाढ़ ला दी.
रोज़ ये ख़बरें आने लगी कि अमेरिका और यूरोप में इस्लाम सबसे तेज़ी से बढ़ने वाला मजहब है. स्वाभाविक है जिन्होंने मजहब तब्दील की वो इस्लाम की शिक्षा से प्रभावित नहीं थे बल्कि उनमें भी वही डर था जो फतह-मक्का के दिन मक्का के काफिरों के अंदर था.
ये मतांतरित हुए सब लोग इस इंतज़ार में थे कि कोई तो मसीहा आये जो one day islam will dominate the world के भयावह खौफ से उन्हें बाहर निकाले.
पिछले डेढ़-दो दशकों से लगातार हो रहे आव्रजन और फ़्रांस में हुए जेहादी उन्मादी प्रदर्शनों से हतप्रभ अमेरिकियों और यूरोप को धीरे-धीरे ही सही ये डर हो गया था कि कहीं इस्लाम दुबारा जाग न उठे और उनके लिये सियासी खतरा न बन जाये और फिर कहीं यूरोप पर दुबारा हमलावर न हो जाये.
इसलिये पश्चिमी दुनिया ने बड़ी समझदारी से काम लिया और उन्होंने पहला काम ये किया कि इस्लामी दुनिया से कर्नल गद्दाफी, सद्दाम, तालिबान, बिन-लादेन जैसे चेहरों को सामने कर दिया जो बाकी दुनिया तो क्या खुद उनके अपने मुल्कों के लिये नफरत के पर्याय थे.
और सारी दुनिया को बताया कि इस्लाम का असली चेहरा तो यही है जो तुम कर्नल गद्दाफी, सद्दाम, तालिबान, अल-कायदा और बिन-लादेन में देख रहे हो. उनके इस बात पर मुस्लिम विश्व को चाहिये ये था कि वो सामने आकर कहते कि हमारा चेहरा तालिबान, अल-कायदा और बिन-लादेन नहीं है.
पर मुसलमान यहाँ चूक गये और इनके समर्थन में छाती कूट-कूट कर इन्होंने पूरी दुनिया में इस तथ्य को स्थापित करवा दिया कि हमारी पूरी उम्मत ही खबिसों की है और सिवाय वहशत, दरिन्दगी और उन्माद हमें और कुछ आता ही नहीं है.
पश्चिमी विश्व को चाहिए यही था कि मुस्लिम विश्व खुद को तालिबान, अल-कायदा और बिन-लादेन जैसों को साथ खड़ा दिखाये, जब मुस्लिम ये गलती कर बैठे तो उन्होंने मुस्लिमों को उनके घरों में घुस के ठोकना शुरू किया, दुनिया ने उन्हें ठुकता तो देखा तो बजाये विरोध करने के कहा, ठीक करते हो, ये हैं ही खबीस लोग…. और मारो.
अमेरिकी और इसाई चर्च की बरसों की मेहनत और कोशिश पर बराक “हुसैन” ओबामा पानी फेर रहा था और हिलेरी से भी उन्हें वैसी ही आशंका थी इसलिये इस बार अमेरिका ने कोई गलती नहीं की और ट्रम्प को चुन लिया इस उम्मीद में कि ये शख्स उन्हें one day islam will dominate the world के खौफ से उबारेगा.
इस उम्मीद में भी ट्रम्प चुने गये कि राजनैतिक इस्लाम की अगर कब्र खोदनी है तो ट्रम्प चाहिये, अपने ईसा और ईसाईयत के साथ रहना और जीना है तो ट्रम्प चाहिए.
ट्रम्प का आगमन विश्व को बहुत बड़े बदलाव की ओर ले जायेगा, इसाई और इस्लामी विश्व फिर से आमने-सामने होंगी. क्रुसेड फिर होगा.
चार साल बाद अगला कार्यकाल भी चाहिये इसलिये ट्रम्प ‘घर में घुस कर मारो’ की अमेरिकी परंपरा को दुगुनी गति देंगे, इजरायल तो खैर तैयार है ही, सऊदी अरब समझदार है इसलिये वो इस्लाम का मोह छोड़कर अपनी राष्ट्रीयता संभालेगा.
हमारी यानि भारत की भूमिका दर्शक- दीर्घा में बैठकर खुशी का मौन इजहार करने तक सीमित रहेगी, बचे पाकिस्तान जैसे फर्जी इस्लाम वाले तो वो अब बुरी तरह रगड़े जायेंगे.
खैर कहना इतना ही है कि आपने पूरी दुनिया में अपने खिलाफ खुद ही नफरतों की जो फिजा पैदा की है उसके कीचड़ में आपको अब लोटना पड़ेगा.
सद्दामों और बिन-लादेनों के लिये छाती कूटने की सजा तो खैर मिलेगी ही. डोनाल्ड जॉन ट्रम्प आपकी ही पैदाइश है तो अब भुगतना भी आपको ही पड़ेगा.
खुदा खैर करे… शुभकामनाएं