DAY 1 :- दीवाली की रात बगल वाली दोस्त ने दरवाजा खटखटाया और बोली जल्दी खोलो. हमने खोला तो पाया पूरी गैलरी धुएं से भरी है. हमने जल्दी ही दरवाजा बंद किया. फिर हमने मिलकर थोड़ी देर पटाखे जलने वालों को कोसा. उस रात सोफोगेशन अपनी चरम पर था. एयरकंडिशनर चला कर और एग्जॉस्ट चला कर हम सो सके. साँस लेने में भी तकलीफ थी.
DAY 2 – सुबह- सुबह अखबार की आदत में बाहर आये जबकि अखबार आया नहीं था. नजर उठा के देखा तो चारो ओर कोहरा था. हमने ज्यादा ध्यान नहीं दिया. सोचा कल इतने पटाखे फूटे हैं, हवा में बारूद तो होगा ही.
DAY 3- उस रोज मेरा बाहर निकलना नहीं हुआ. पर बालकनी पर आने पर कुछ समस्या तो समझ आती ही रही.
DAY 4:- दोपहर में छत पर कपडे फ़ैलाने गए तो दूर-दूर तक कोहरे की स्थिति थी. पर ठण्ड का नामोनिशान नहीं था.
DAY 5:- शाम को टहलने के लिए अपनी रूटीन के तहत जूते पहनकर रूम से बाहर निकले. निकलते ही कुछ सफोकेशन फील हुआ पर हमने अवॉयड किया. चहलकदमी करते हुए गार्डन पहुँचे.
एक चक्कर, दो चक्कर, तीन चक्कर… ये क्या 10 चक्कर गिन के लगाने वाले हमको कुछ चक्कर सा फील होने लगा, सांसे भी बढ़ गयीं थी कुछ, लगा डीप ब्रीथ की जरुरत है, गले में कुछ खराश सी आ गयी. हम समझ गए ये इस एनवायरनमेंट का प्रोब्लम है. बहरहाल, रूम की ओर वापस लौट आये.
Day 6- सुबह अख़बार उठाते ही दिल्ली सरकार, केंद्र सरकार, एनवायरमेंट के तमाम वैज्ञानिको की चिंता, ग्रीन ट्रिब्यूनल का फरमान, ‘एयर क्वालिटी इंडेक्स’ के दिल्ली के आकड़ों को जरुरी न्यूज़ समझ के निपटाया.
फिर शाम को बाहर निकलने पर वही समस्या थी. हालाँकि दिल्लीवासी बच्चे अपने आउटडोर गेम में शिद्दत से मशगूल थे. उन्हें दौड़ कर डीप ब्रीथ लेने में कोई परहेज नहीं था. न उनके माता-पिता को ये चिंता थी शायद. यह उनका भी बोया हुआ चरस था सो इस PM2.5 के सुट्टे से उनको कोई परहेज नहीं था. खैर!
DAY 7 – हम अपने रूम में बंद थे. जो दोस्त बाहर होकर लौटे थे उनकी आँखें लाल थी. वो जरूरत से ज्यादा थके हुए थे. उनका गला चोक हो रहा था. जल्द ही चाय पी कर गले को आराम पहुँचाया गया. इंडोर रहने की सलाह को पहली बार गंभीरता से महसूस किया हम सभी ने.
Day 8- किसी काम से करोल बाग़ जाना हुआ. हम अपनी मित्र के साथ निकले. मेट्रो तक पहुँचते-पहुँचते ही दोनों को ये भान हो गया था कि मास्क या स्कार्फ की महती जरुरत हैं.
5 मिनट के सफर में गले में इर्रिटेशन और आँखों में जलन महसूस होने लगी थी. हम पॉल्युशन के इस एनवायरनमेंट में अडॉप्ट नहीं हो सके थे शायद इसलिए ज्यादा दिक्कत महसूस हो रही थी.
मेट्रो के अंडरग्राउंड प्लेटफार्म में पहुचते ही मुझे आँखों में जोरदार जलन महसूस हुई. अवॉयड करते रहने के अलावा कोई चारा नहीं था. जैसे तैसे करोल बाग पहुंचे. अमूमन पैदल चल पाने की क्षमताओं के बावजूद मुझे थकान होने लगी थी.
बाहर खुले एनवायरनमेंट मे खड़े रहने और बात करने में थोड़ी दिक्कत हो रही थी. हर तरफ कोहरा/धुएं सा माहौल था. साँस लेने में दिक्कत के कारण अब तत्काल मास्क का जुगाड़ किया गया.
रूम पर लौटी तो सर भारी महसूस हो रहा था, आँखें चढ़ी हुयी- सी और लाल थी. ऐसा लग रहा था गले में कुछ फंस गया है. सामान्य से दिन गुजारने पर भी मुझे इतनी थकान थी कि मैं शाम में ही 3 घंटे तक सोई रही.
DAY 9:- हम तो आज फाइनली दिल्ली से भाग लिए. हालाँकि आज आबो-हवा कुछ ठीक है. हवा चली तो PM2.5 भी उड़ान पर है शायद और धूप निकली तो कुहरे ने हवा में पार्टिकल को नहीं चिपकाया.
……. आज मास्क पहन के भाग लिए दिल्ली से ऐसा नहीं है. वो तो मुझे जाना था किसी काम से.
पर सोचिये … हम खुद को और भविष्य को क्या दे रहे हैं. सरकार का कहना है ये पंजाब हरियाणा और राजस्थान में फसले जलाने का धुँआ हैं. ‘ग्रीन ट्रिब्यूनल’ का कहना है हवा चल ही नहीं रही तो धुंआ आयेगा कैसे यहाँ तक, ये कुछ और है.
दिल्ली ने उस रात ऐसे पटाखे और रॉकेट फूंके थे कि शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता. उस रात हम लोग साँस नहीं ले पा रहे थे यह उतना ही सत्य है जितना कि आज दिल्ली मास्क में साँस लेने को मजबूर है.
असलियत ये है कि यह सब पटाखों, फसल जलाने, हाइड्रोकार्बन जलने, फ्लाई ऐश उड़ने, निर्माण कार्य इत्यादि और दिल्ली की पहले से ही प्रदूषित आबोहवा का नतीजा हैं. पर है तो खामियाजा हमारी ही करनी का. आज दिल्ली में है कल सारे विश्व में होगा.
PM10 और PM2.5 पृथ्वी की ओजोन, ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन इत्यादि जैसी भारी भरकम शब्दों तक नहीं है. वो सीधे आपके लंग्स, ब्लड से होते हुए हार्ट, ब्रेन, लीवर को नुकसान पंहुचा रहा हैं. इसलिए….
अब भी वक़्त है ‘होमोसेपीएन्स’ प्लीज़ ‘अनमास्क योर फ्यूचर’..
– शालिनी सोमचन्द्र