Keffiyeh : चीन में बना अरबी गमछा लपेटे आपके घर में घुस आया है इस्लामिक आतंकवाद

एक बड़ी प्रसिद्ध सी अंग्रेजी फ़िल्म थी, Lawrance of Arabia, शायद आपने देखी हो. इस फिल्म में कर्नल टी.इ. लॉरेंस की कहानी दिखाई गई है. उन्हें लॉरेंस ऑफ़ अरबिया भी बुलाया जाता है, उसी से आज जो आप अरबी शेखों वाला हुलिया पहचानते हैं, वो भी प्रचलित हुआ.

बिना कोशिश किये ही वो सर पर बंधा अरबी रुमाल या हमारे इलाके में कहलाने वाला गमछा याद आ गया होगा.

इस गमछे के तीन रूप होते हैं. एक बिलकुल सादा वाला, जो अरब के शेखों पर याद आया आपको, दूसरे दो चेक वाले. एक पर लाल चेक सा बना होता है और दूसरे पर काला.

कभी सोचा है कि ये चेक वाला गमछा है क्या? कैसे प्रसिद्ध हो गया? इसे कुफिय्याह भी कहा जाता है जिसका मतलब है कूफ़ा शहर का.

दुनिया भर में इस ख़ास चेक वाले डिजाईन को प्रचलित करने का श्रेय लीला खालेद को जाता है. उसी ने इस चेक वाले गमछे को आतंकियों की एकता की निशानी के तौर पर प्रसिद्धि दिलाई थी.

आपको अब याद नहीं होगा कि ये लीला खालेद थी कौन? बरसों पहले की बात है पोपुलर फ्रंट फॉर द लिबरेशन ऑफ़ पलेस्टाइन नाम के आतंकी संगठन ने अपनी जंग छेड़ रखी थी.

सन 1970 के आस पास के उस दौर में ये संगठन आतंकी वारदातों और अमानुषिक हिंसा के जरिये अपने लिए भय और आतंक का माहौल बना रहा था. लीला खालेद इसी PFLP की एक कुख्यात सरगना थी. अक्सर भर्ती के लिए, प्रचार के लिए जारी किये PFLP के पोस्टर पर इसका चेहरा होता था.

एक बार जब इस आतंकी को खबर मिली कि एक इजराइली मंत्री एक हवाई जहाज से रोम से निकलेंगे तो इसने अपने साथी सलीम इस्सावी के साथ मिलकर 29 अगस्त, 1969 को TWA फ्लाइट 840 को हाइजैक कर लिया.

किस्मत से मंत्री उस हवाई जहाज में थे ही नहीं. सीरिया में जहाँ आतंकियों ने जहाज उतरा वहां इन्होने विमान के बाकी यात्रियों को छोड़कर छह इजराइली यात्रियों को पकड़ लिया.

करीब दो महीने बाद सभी अपहृत बंधक मुक्त करवाए गए, इजराइल ने इसके लिए कई सीरियाई कैदियों को छोड़ा. दोनों आतंकियों को सीरिया ने बिना कोई मुकदमा चलाये छोड़ दिया था.

इस वारदात से कुख्यात हो चुकी लीला खालेद अब PFLP की पिन अप गर्ल थी. वो पोस्टर में कुफिय्याह और अपने क्लाशनिकोव रायफल के साथ दिखती.

यहीं से सादे के बदले, ये चेक वाला कुफिय्याह प्रसिद्ध होने लगा. अब लीला खालेद की हिम्मत भी बढ़ चुकी थी और उनपर ऐसे कारनामों का दबाव भी बढ़ गया था.

अगले साल ही ब्लैक सितम्बर के नाम से जाने जाने वाले महीने में हुई हाईजैकिंग में से एक में वो भी शामिल थी. लेकिन उन्हें इसराइल के स्काई मार्शलों ने धर दबोचा. लम्बी कैद के बाद वो छूट भी गई, लेकिन तब तक उनके पोस्टर विश्व प्रसिद्ध हो चुके थे.

वो अभी भी इसी ट्रेडमार्क कुफ्फियाह में दिखती हैं. बिना सोचे किसी अनजान इंसान को सिर्फ अपने मजहब के नाम पर क़त्ल कर देने वालों की ये पहचान बन गया.

अगर शिक्षा की कमी से ऐसी बातों को जोड़ रहे हैं तो ये आपकी नासमझी है. इस्लामिक आतंक के इस परचम को फहराने वालों में मुहम्मद अत्ता था जो कि आर्किटेक्चर के अच्छे छात्रों में गिना जाता था.

कम शिक्षित बिन लादेन भी नहीं था, और कम शिक्षित ढाका के नर पिशाच भी नहीं थे. कुफ्फिय्या की प्रसिद्धि को देखते हुए यासिर अराफात ने भी इसी को प्रसिद्ध करना शुरू किया.

उन्हें जब याद कीजियेगा तो वो आपको इसी चेक वाले कुफिय्याह में याद आयेंगे. पहली इन्तिफादा के दौर में ही ये इस्लामिक आतंक की निशानी के तौर पर स्थापित हो चुका था. काले सफ़ेद कुफ्फिय्याह को इस्लामिक आतंक की निशानी के तौर पर राजनैतिक हलकों में अराफात ने जगह दिला दी.

अब आते हैं लाल चेक वाले उस कुफ्फिय्याह पर जिसे आप पहचानते हैं. आतंक की ये निशानी आपको अरबी इस्लाम के इलाकों में दिखेगी. सऊदी अरब में शरिया लागु करने वाले कमिटी फॉर द प्रॉपगेशन ऑफ़ वरच्यु एंड द प्रिवेंशन ऑफ़ वाईस की धार्मिक पुलिस इसे पहनती है.

निज़ाम ए मुस्तफा का सपना देखने वाले सभी आतंकी इसे पहने दिख जायेंगे. इस्लाम के कट्टरपंथी रवैये की वकालत करने वाले हर चेहरे के साथ आपको यही कुफ्फिय्याह दिखेगा. यही अरबी गमछा हर तरफ नज़र आएगा. यही जो इस्लामिक आतंकवाद के अलग अलग चेहरों की पहचान है.

आप किसी एक इरफ़ान खान का लिखा देख रहे हैं. आप किसी एक मलाला का जिक्र करते हैं. आपको एक कहीं कोई कोने में छुपा सेक्युलर मुस्लिम नज़र आता है. उनकी बिना पर आप ये भी दावा ठोकते हैं कि हर मुसलमान आतंकी नहीं होता.

बिलकुल सही बात है, 95% आतंकी हों तो भी 5% तो शांतिप्रिय हैं ही! अब जरा हुज़ूर ये भी बताइये कि आम मुसलमानों में से कितनों को इस्लाम का शांतिप्रिय चेहरा कबूल है?

बच्चों के नाम ओसामा क्यों हैं, याकूब क्यों हैं, अफज़ल क्यों हैं? कलाम क्यों नहीं?

आप हैरी पॉटर की कहानियों के चरित्रों जैसा वोल्डेमॉर्ट का नाम लेने से इनकार करते रहिये. आप इस्लामिक आतंकवाद के लिए कह सकते हैं कि आतंक का कोई मजहब नहीं होता. कहते रहिये!

चेहरे पर कुफ्फिय्याह, या कहिये कि चीन में बना अरबी गमछा लपेटे इस्लामिक आतंकवाद आपके घर में घुस आया है.

 

 

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