गोबर और गोमूत्र के गुण

माना जाता है कि गायों का समूह जहां बैठकर आराम से सांस लेता है, उस स्थान की न केवल शोभा बढ़ती है, बल्कि वहां का सारा पाप नष्ट हो जाता है.

तीर्थों में स्नान-दान करने से, ब्राह्मणों को भोजन कराने से, व्रत-उपवास और जप-तप और हवन-यज्ञ करने से जो पुण्य मिलता है, वही पुण्य गौ को चारा या हरी घास खिलाने से प्राप्त हो जाता है.

गौ-सेवा से दुख-दुर्भाग्य दूर होता है और घर में सुख-समृद्धि आती है.
जो मनुष्य गौर की श्रद्धापूर्वक पूजा-सेवा करते हैं, देवता उस पर सदैव प्रसन्न रहते हैं.

जिस घर में भोजन करने से पूर्व गौ-ग्रास निकाला जाता है, उस परिवार में अन्न-धन की कभी कमी नहीं होती है.

गोबर और गोमूत्र के गुण

गाय ही एकमात्र ऐसा प्राणी है, जिसका मल-मूत्र न केवल गुणकारी, बल्कि पवित्र भी माना गया हैं.
गोबर में लक्ष्मी का वास होने से इसे ‘गोवर’ अर्थात गौ का वरदान कहा जाना ज़्यादा उचित होगा.
गोबर से लीपे जाने पर ही भूमि यज्ञ के लिए उपयुक्त होती है.
गोबर से बने उपलों का यज्ञशाला और रसोई घर, दोनों जगह प्रयोग होता है.
गोबर के उपलों से बनी राख खेती के लिए अत्यंत गुणकारी सिद्ध होती है.
गोबर की खाद से फ़सल अच्छी होती है और सब्जी, फल, अनाज के प्राकृतिक तत्वों का संरक्षण भी होता है.
आयुर्वेद के अनुसार, गोबर हैजा और मलेरिया के कीटाणुओं को भी नष्ट करने की क्षमता रखता है.
आयुर्वेद में गौमूत्र अनेक असाध्य रोगों की चिकित्सा में उपयोगी माना गया है.
लिवर की बीमारियों की यह अमोघ औषधि है. पेट की बीमारियों, चर्म रोग, बवासीर, जुकाम, जोड़ों के दर्द, हृदय रोग की चिकित्सा में गोमूत्र ने आश्चर्यजनक लाभ दिया है. इसके विधिवत सेवन से मोटापा और कोलेस्ट्राल भी कम होते देखा गया है.
गाय के दूध, दही, घी, गोबर और गोमूत्र से निर्मित पंचगण्य तन-मन और आत्मा को शुद्ध कर देता है.
तनाव और प्रदूषण से भरे इस वातावरण की शुद्धि में गाय की भूमिका समझ लेने के बाद हमें गो धन की रक्षा में पूरी तत्परता से जुट जाना चाहिए, क्योंकि तभी गोविंद-गोपाल की पूजा सार्थक होगी.
गोपाष्टमी के पर्व का मूल उद्देश्य है गो-संवर्धन की तरफ हमारा ध्यान आकृष्ट करना. अतएव इस त्योहार की प्रासंगिकता आज की युग में और बढ़ी है.

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