सुबीर, यार तुम्हारी तनख्वाह कितनी है?

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स्कूल में हमारे साथ पढ़ता था सुबीर मल्लिक. उनके पिता मध्यम स्तर के सरकारी कर्मचारी थे.

उन दिनों इंजीनियरिंग में एडमिशन मिलना बड़ा कठिन होता था. एक जिले से 5-10 लड़के ही प्रति वर्ष इंजीनियरिंग में जा पाते थे.

हम पढाई में ठीक थे सो इंजीनियरिंग में आ गए. सुबीर को बीएससी में भी एडमिशन न मिला, तो घर वालों ने सुबीर को उसके मामा जी के पास कोलकता भेज दिया.

मामा जी टीचर थे और कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ता भी. सो उन्होंने सुबीर को विक्टोरिया इंस्टिट्यूट कोलकाता में सिफारिश की दम पर बीए में एडमिशन करवा दिया.

हम लोग फर्स्ट इयर की दिवाली छुट्टियों में मिले.

सुबीर ने गर्व से बताया – अंग्रेजों के ज़माने का है मेरा कॉलेज 1932 का. बहुत नाम है पूरे बंगाल में. सीपीयम के बड़े-बड़े मंत्री यही से पढ़े थे.

उसने बताया कि धर्म अफीम की गोली होता है, ये भगवान-अल्लाह-गॉड कुछ नहीं होता, ये सब इंसान के बनाये हुए धंधे हैं.

इसके बाद उसने मेरी शिखा (चोटी) और जनेऊ पर व्यंग मारा.

सेकंड इयर की छुट्टी में जब वह मिला तो उसने मार्क्स के बारे में, दास कैपिटल के बारे में बताया.

उसने बताया कि टाटा-बिरला-सिंघानिया देश के असली दुश्मन है. ये लोग मजदूर और किसान से पैसा छीन कर अमीर होते जा रहें है.

उसने कहा, एक दिन मजदूर और किसान मिलकर खूनी क्रांति करेंगे जैसा रूस-चीन में हुआ, इस आन्दोलन में सभी पूंजीपति और व्यापारी मार डाले जायेगे और फिर देश में मजदूरों और किसानों का राज होगा.

मैं उसकी बातें सुन कर डर गया था.

थर्ड इयर की छुट्टियों में जब हम मिले तो उसने बताया कि कोई राष्ट्रवादी संगठन उसके कॉलेज का नाम बदलवाना चाहता है.

उसने कहा कि हम लोग कॉलेज का नाम बदलने नहीं देगा. क्वीन विक्टोरिया हमारे देश का रानी था. उसके नाम पर कॉलेज का नाम रखा गया था. हम इंडियन लोगों को क्वीन विक्टोरिया ही सिविलाइज्ड बनाया.

उसने कहा, ये आरएसएस का लोग मुंबई में विक्टोरिया इंजीनियरिंग कालेज और विक्टोरिया टरमिनस का नाम बदलवाया है. मगर हम लोग कोलकाता में ये सब होने नहीं देगा.

फिर जब हम फोर्थ और फिफ्थ इयर की छुट्टियों में घर आये तब वो नहीं आया था.

उसके पापा बड़े निराश थे, बोले कि सुबीर कोई जॉब नहीं करना चाहता. कहता है कि देश सेवा करेगा. उन्होंने कहा कि वो किसी मानव अधिकार वाले NGO में काम करने लगा है.

कई वर्षों तक सुबीर का कोई पता नहीं चला. सन 2010 में एक मित्र के द्वारा पता चला कि वह भोपाल में है. मेरा भोपाल जाना हुआ तो उसका घर दूंढ़ लिया.

घर क्या था, बाग़ मुग़लिया में डबल स्टोरी बड़ा बंगला. लॉन गार्डन गैराज, नौकर चाकर. घर में सब ऊंची कीमतों का वैभवी सामान. हौंडा सिटी कार, ड्राईवर आदि.

ड्राइंगरूम में आलीशान बार. टेबल पर कुछ फोल्डर रखे थे जिन्हें मैं देखने लगा. ये फोल्डर थे-

Pakistan – India People’s Forum for Peace and Democracy

समाजवादी जन परिषद्

People’s Union for Civil Liberties (PUCL)

आदिवासी रक्षा कमेटी

मैंने पूछा, यार कहाँ जॉब करते हो, बड़े ठाठ हैं तुम्हारे.

उसने बताया कि वो एक पर्यावरण संरक्षण वाले NGO का काम देखता है. हमारा उद्देश्य है कि पर्यावरण को हर कीमत पर बचाना. सरकार पर्यावरण को नष्ट कर रही है.

उसने कहा, पॉवर हाउस बनाने से, सिंचाई के लिए बाँध और नहरें बनाने से, सड़क रेलवे लाइन बनाने और कारखाने लगाने से पर्यावरण नष्ट होता है. किसानों और आदिवासियों की जमीन और जंगल सरकार छीन लेती है. हम ये होने नहीं देते.

हमने पूछा, आप ये कैसे नहीं होने देते?

वो बोले – हमको जनता को ताकत देना है. असली शक्ति जनता के पास होना चाहिए.

हमने पूछा – ये ताकत कैसे आएगी?

वो बोले – आन्दोलन करने से आएगा, जनता जब लड़ेगी तभी उसको शक्ति मिलेगा.

हमने कहा – ऐसे तो देश का विकास रुक जाएगा.

वो बोले कि ऐसे विकास की जरूरत नहीं जिसमें पर्यावरण को नुकसान हो और लोगों को विस्थापित किया जाए.

उसने बताया – हम स्टेट लेवल का कोऑर्डिनेटर है. जिस गाँव में सरकार पर्यावरण नष्ट करती या लोगों को विस्थापित करती है, वहां जा कर हम लोग गाँव वालों को समझाता है. उन्हें वालंटियर बनाता है.

उसने कहा – हम लोग दिल्ली-बम्बई जाता है प्लेन से. वहां 5 स्टार होटल में हमारा कांफ्रेंस होता है. उसमे बड़ा-बड़ा देश सुधारक लोग आता है जैसे – डॉ बिनायक सेन, हिमांशु कुमार, मेघा पाटकर, स्वामी अग्निवेश आदि.

उसने बताया – ये लोग अलग से मीटिंग में हम स्टेट कोऑर्डिनेटर को बताता कि हम लोग अब क्या एक्शन करेगा?

फिर बताया – किसान मजदूर संघर्ष मोर्चा मध्यप्रदेश का अध्यक्ष हूँ और अभी हमने सिवनी में युवा क्रांति दल बनाया है.

उसने कहा – अभी दक्षिण राजस्थान से आया हूँ वहां पर ‘जन जंगल जमीन आन्दोलन’ चल रहा हैं. अगले हफ्ते हम उड़ीसा जाएगा.

वहां हम लोग जन आन्दोलन शुरू कराएगा. उड़ीसा में हम लोग सहारा का और स्टर्लिंग का पावर प्लांट लगने नहीं देगा. मेघा पाटकर हमारी नेता हैं.

उनके ठाट बाट देख कर घर से विदा लेते समय हमने फिर पूछा – सुबीर यार तुम्हारी तनख्वाह कितनी है?

उसने मुस्कुराकर हमें देखा और चुप्पी मार ली.

इसके दो साल बाद 2012 में सुबीर जी मिले. हम होटल पलाश में रुके थे, सो वे मिलने आ गए.

बड़े खुश थे, बताया कि अमेरिका, कनाडा, फ़्रांस, इंग्लॅण्ड घूम आये हैं. लौरंस रॉकफेलर, वूडी हेरेल्सन, मार्गरेट एटवुड, अलिसिया सिल्वरस्टोन के कांफ्रेंस अटेंड किये.

उसने बताया कि इन लोगों के बहुत बड़े फाउंडेशन चलते है और ये लोग पूरी दुनिया में पर्यावरण को बचाने के लिए आर्थिक मदद देते हैं. हमारे देश पर ये लोग बड़ा एहसान कर रहे हैं.

उसने न्यू यॉर्क से खरीदा आई फोन दिखाया और उसमें विदेश यात्राओं के फोटो दिखाए. एक फोटो में वो किसी साड़ी पहनी प्रौढ़ विदेशी महिला के साथ थे.

मैंने पूछा – ये कौन है?

उसने कहा – इनको नहीं जानते, ये Gail Omvedt है. अमेरिकन हैं मगर हमारे देश में आकर दलितों के अधिकारों लड़ाई लड़ रहीं हैं. ये दलितों को ब्राह्मणों के चंगुल से मुक्त कराने के लिए अमेरिका से आई है. इनको राजीव गाँधी ने भारतीय नागरिकता दी थी.

सुबीर जी आगे बोले कि अगले माह आदिवासी संगठन बनाने धरमपुर गुजरात जाना है, वहां से सरदार सरोवर जहां प्रिया पिल्लई, अरुंधति राय आदि आएँगी, जोरदार आन्दोलन होगा.

सुबीर ने बताया कि उनका बेटा अमेरिका की यूनिवर्सिटी में पढ़ रहा है और बेटी ऑस्ट्रेलिया में कोई कोर्स कर रही है.

हमने फिर पूछ लिया – सुबीर यार तुम्हारी तनख्वाह कितनी है?

उसने मुस्कुराकर हमें देखा और चुप्पी मार ली.

अभी दो सप्ताह पहले 2016 में मेरा किसी काम से भोपाल जाना हुआ. काम से फुर्सत हो कर उनको फोन किया कि घर आ जाऊं. वो बोले कि अब मै वहां नहीं रहता, मंडीदीप आ जाओ मिलने.

मैं उनके बताये पते पर मंडीदीप के आगे एक निर्माणाधीन इलाके में पंहुचा. अब वे दो BHK फ्लैट में रहते हैं. स्कूटर पर चलते हैं. मैंने जब उनकी यह हालत देखी तो पूछा ये सब क्या हो गया?

उन्होंने पहले तो आधे घंटे तक प्रधानमंत्री और गृह राज्य मंत्री किरण रिजीजू को भद्दी भद्दी गालियां बकी.

फिर बोले कि सत्यानाश हो इनका. ये लोग हमारा NGO बंद करा दिया और अमेरिका फाउंडेशनों से जो देश सेवा के लिए आर्थिक मदद मिलता था उसे भी FCRA कानून में बंद करवा दिया.

उन्होंने कहा, हम लोग कोई क्रिमिनल है क्या? हम लोग शांति, न्याय और जनतंत्र के लिए कार्यरत है. इनको हम लोग छोड़ेगा नहीं.

उन्होंने बताया कि अभी 14 हज़ार NGO मिल कर National Alliance of People’s Movements बना रहा है. ये सरकार फासिस्ट है, पर्यावरण विरोधी है.

उन्होंने कहा, विदेश से मिलने वाली हमारी मदद रुकवा दिया. हमको दो साल से मदद नहीं मिला. हमारा आर्थिक हालत ख़राब हो गया.

उनका दर्द छलका, हमारा लड़का का अमेरिका यूनिवर्सिटी में आखिरी साल था तो हम बाग़ मुगलिया का घर बेच कर उसकी फीस भरा और ये फ्लैट में शिफ्ट किया.

उन्होंने बताया कि लड़की को पढाई छोड़ कर ऑस्ट्रेलिया से वापस बुलवा लिया और भोपाल में सरकारी कालेज में एडमिशन करवाया है. हम 14000 NGO मोदी की सरकार को गिरा देगा.

वे बड़े दुखी और खिसियाये हुए लग रहे थे.

हमने विदा लेते समय फिर पूछ लिया – सुबीर यार तुम्हारी तनख्वाह कितनी है?

उसने मुंह लटकाकर हमें देखा और चुप्पी मार ली.

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