अंग्रेजी प्लेन में देसी मैम

भारतीय समतापमंडल में टरबाइन फ्लूड के सहारे तैरता हुआ एक एरोप्लेन और उसमें इकॉनमी क्लास की सीट 7B पर ऊंघता हुआ मेरा थका मांदा लेडीज शरीर… अगल-बगल के दोनों सहयात्री अपने अपने कानों मे एयर फ़ोन ठूंसे हुए सफर का आनंद लेते हुए.

ऐसा लगता था जैसे दोनों संगीत के नशेड़ी थे क्योंकि फूल वॉल्यूम में उनके द्वारा बजाए गए अलग अलग बेहतरीन गानों की श्रव्य तरंगें उनके इयरफोन से रिसते हुए मेरे कानों में घुसकर मुझे कंफ्यूज कर रही थी और कभी इधर तो कभी उधर के गाने को सुनते हुए मेरा मन शोले फिल्म के उस जेलर की मानसिकता को महसूस कर रहा था जिसमें वो कहता है कि -“आधे इधर जाओ, आधे उधर जाओ, बाकी मेरे पीछे आओ.”

“यात्री गण अब अपने अपने सीट बेल्ट खोल सकते हैं”. सहसा परिचारिका की आवाज ने मेरी तन्द्रा भंग की.

मुझे भी इसी समय का इंतज़ार था. काफी देर से चाय पीने का मन हो रहा था. अतः हाथ ऊपर कर मैंने कॉल बटन को दबा दिया.

थोड़ी देर बाद वो मेरे चाय के आर्डर के साथ मेरी सीट के बगल ट्रॉली के साथ खड़ी थी.

“…सो यू नीड अ कप ऑफ़ टी..”. उसने अंग्रेजी में एक एक शब्द को चबाते हुए अच्छे से पूछा.

“हाँ..”

एक्चुअली अंग्रेजी के उस फायर ने मुझे पूरा जगा दिया था. तिस पर हिंदी में मेरे सहज प्रत्युत्तर पर उसका मुस्कुरा देना मुझे असहज कर गया.

वैसे भी अंग्रेजी का दनदनाता हुआ फायरबर्स्ट अच्छे अच्छे भारतीय को कोमा से भी जगा देता है. यहाँ तो मुझे बेज्जती सी फील हो रही थी. लिहाजा अब मेरे अंदर की रही सही अंग्रेजी ने भी मुझे तीन तलाक बोल दिया.

मेरे मुंह से सिर्फ “हाँ” निकला वो भी बड़ी मुश्किल से जैसे जबान ने धक्के मारकर बाहर किया हो बेचारे को.

उसने थर्मोफॉर्मड पेपर के एक सफ़ेद कप में गरम पानी उड़ेलते हुए मेरे हाथ में पकड़ाया.. और एक लिफाफे को मेरे दूसरे हाथ में दे दिया जिसमें कुछ छोटे छोटे पैकेट थे.. जब तक मेरी समझ में कुछ आता तब एक और अंग्रेजी में फायर आया –

” मैंम ! हंड्रेड इन्डियन रूपीज ओनली. वुड यू लाइक टू हैव समथिंग एल्स “?
मैंने चुपचाप अपना सर ना में हिलाते हुए उसे सौ रूपये का एक नोट पकड़ा दिया. मुंह खोलने की गुंजाइश ही नही थी. अंग्रेजी का यॉर्कर तो मलिंगा को भी मात दे देता है, मैं तो हांड मांस की बनी पैतीस चालीस किलो की एक धरती का बोझ हूँ. मेरी क्या मजाल.

“वाटर इज सफीसियंट हॉट मैम! प्लीज़ हैंडल इट केयरफुली”. थैंक यू.” …और वो चली गयी सौ रूपये का गरम पानी पकड़ा के ..ऊपर से थैंक यू भी बोल गयी वो भी फिर से अंग्रेजी में. हाय दय्या …

मेरी समस्या अब शुरू हुई थी …हम असमिया लोग आमतौर पर दूध वाली चाय नहीं पिया करते. हमारी चाय में चीनी और चायपत्ती जैसी महिलाओं की मौजूदगी में बड़ी मुश्किल से सिर्फ अदरक भाई साहब को ही एंट्री करने की इज़ाज़त है.

खैर आदत के अनुसार मैंने उस रेड चटक लिपस्टिक को किसी बनारसी पान की तरह खाई हुई कन्या के द्वारा दिए गए गर्म पानी में चाय और शुगर के पैकेट को उड़ेल दिया …और मिक्स करके सफ़ेद कप को होठों से लगाते हुए सुड़क सुड़क कर पीने लगी.

चाय के उस सफ़ेद कप पर उस कंपनी का नाम लिखा हुआ था जिसकी मिनी स्कर्ट वाली परिचारिका ने मुझसे गर्म पानी के सौ रूपये वसूले थे.

खैर सौ रूपये के अफ़सोस के साथ अंग्रेजी की जहालत ने मुझे चाय के कड़वेपन का अहसास न होने दिया. मिनटों के भीतर ही मैंने चाय का एक एक बूँद सुड़क डाला था.

लेकिन…. चाय का कप रखते ही मुझे सामने रखा दूध के छोटा सा पाउच नजर आया ..

“अफ़सोस ! इसको तो मैंने डाला ही नहीं.”

एक तो सौ की चाय ऊपर से अपने इस कमजोर इकोनॉमिक मैनेजमेंट पर मुझे गुस्सा आने लगा था. मुझे अपने सौ रुपए गंवाने में दूध के इस छोटे पाउच का भी हाथ नजर आ रहा था जिस पर अमूल लिखा था.

मैंने अंततः एक निर्णय लिया.. फिर से एयरहोस्टेस को बुलाया और उससे एक ग्लास पानी देने की गुंजारिश की.

जब तक वो पानी लेकर आती मैं अमूल दूध के उस छोटे से पाउच में भरा पूरा दूध निगल चुकी थी.

अपने गंवारपन का आनंद लेते हुए मैं इतना व्यस्त थी कि मुझे ये ध्यान ही नहीं आया कि मेरे दोनों सहयात्री अपने गाने को सुनने जैसा अतिमहत्वपूर्ण कार्य छोड़कर आँखे फाड़कर मेरी हरकते देखे जा रहे थे.

फिर से बेज्जती हे भगवान… कोई बात नही ..मैंने अपने पैसे पूरे वसूल लिए थे इस बात का फक्र था मुझे. बस यही सोचकर मैंने आँखों पर गॉगल्स डाले और और सीट को डाउन कर दिया.

प्लेन अब भी वैसे ही समताप मंडल में ही तैर रही थी लेकिन अब मुझे नींद नहीं आ रही थी ..मुझे टेंशन इस बात की थी कि डोमेस्टिक फ्लाइट में भी हिंदुस्तानियों से अंग्रेजी बोलना, सौ रूपये का गर्म पानी बेचना कितना जायज़ है?

एक तरफ फ्लाइट तैर रही थी, दूसरी तरफ सवाल. एक आसमान में था दूसरा मेंरे मन में ..दोनों में समानता ये थी कि दोनों अभी मंजिल तक नहीं पंहुच सके थे.

– गीताली सैकिया

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