विज्ञान बलात्कार है, प्रार्थना प्रेम, इसे पकड़ कर इस पर बहुत वाद विवाद किए जा सकते हैं, लेकिन बात फिर वही होगी जो बब्बा आगे कह रहे हैं… पहले उसे पढ़ो फिर भी लगे कि शब्दों को पकड़ कर बहस करना है तो वो भी कर लेंगे, लेकिन फिर बब्बा ने ही कहा है-
सूत्र लंबा नहीं घना होता है… जैसे बीज में छुपा होता है वृक्ष. वृक्ष को पाना है तो बीज को बोना होगा हृदय की ज़मीन पर.
जीवन—सत्य की खोज दो मार्गों से हो सकती है. एक पुरुष का मार्ग है—आक्रमण का, हिंसा का, छीन—झपट का. एक स्त्री का मार्ग है— समर्पण का, प्रतिक्रमण का. विज्ञान पुरुष का मार्ग है; विज्ञान आक्रमण है. धर्म स्त्री का मार्ग है; धर्म नमन है.
इसे बहुत ठीक से समझ लें.
इसलिए पूर्व के सभी शास्त्र परमात्मा को नमस्कार से शुरू होते है. वह नमस्कार केवल औपचारिक नहीं है. वह केवल एक परंपरा और रीति नहीं है. वह नमस्कार इंगित है कि मार्ग समर्पण का है, और जो विनम्र है, केवल वे ही उपलब्ध हो सकेंगे.
और, जो आक्रमक है, अहंकार से भरे है; जो सत्य को भी छीन—झपटकर पाना चाहते है; जो सत्य के भी मालिक होने की आकांक्षा रखते है; जो परमात्मा के द्वार पर एक सैनिक की भांति पहुंचे हैं—विजय करने, वे हार जायेंगे.
वे इसको भले छीन—झपट लें, विराट उनका न हो सकेगा. वे व्यर्थ को भला लूटकर घर ले आयें; लेकिन जो सार्थक है, वह उनकी लूट का हिस्सा न बनेगा.
इसलिए विज्ञान व्यर्थ को खोज लेता है; सार्थक चूक जाता है. मिट्टी, पत्थर, पदार्थ के संबंध में जानकारी मिल जाती है, लेकिन आत्मा और परमात्मा की जानकारी छूट जाती है.
ऐसे ही जैसे तुम राह चलते एक स्त्री पर हमला कर दो, बलात्कार हो जाएगा, स्त्री का शरीर भी तुम कब्जा कर लोगे, लेकिन उसकी आत्मा तुम्हें नहीं मिल सकेगी. उसका प्रेम तुम न पा सकोगे.
तो जो लोग आक्रमण की तरह जाते है परमात्मा की तरफ, वे बलात्कारी है. वे परमात्मा के शरीर पर भला कब्जा कर लें— इस प्रकृति पर, जो दिखाई पड़ती है, जो दृश्य है— उसकी चीर—फाड़ कर, विश्लेषण करके, उसके कुछ राज खोज लें, लेकिन उनकी खोज वैसी ही क्षुद्र होगी, जैसे किसी पुरुष ने किसी स्त्री पर हमला किया हो, बलात्कार किया हो.
स्त्री का शरीर तो उपलब्ध हो जायेगा, लेकिन वह उपलब्धि दो कौड़ी की है; क्योंकि उसकी आत्मा को तुम छू भी न पाओगे. और अगर उसकी आत्मा को न छुआ, तो उसके भीतर प्रेम की जो संभावना थी— वह जो छिपा था बीज प्रेम का— वह कभी अकुंरित न होगा. उसकी प्रेम की वर्षा तुम्हें न मिल सकेगी.
विज्ञान बलात्कार है. वह प्रकृति पर हमला है; जैसे कि प्रकृति कोई शत्रु हो; जैसे कि उसे जीतना है, पराजित करना है. इसलिए विज्ञान तोड़—फोड़ में भरोसा करता है— विश्लेषण तोड़—फोड़ है; काट—पीट में भरोसा करता है.
अगर वैज्ञानिक से पूछो कि फूल सुंदर है, तो तोड़ेगा फूल को, काटेगा, जांच—पड़ताल करेगा; लेकिन उसे पता नहीं है, कि तोड़ने में ही सौंदर्य खो जाता है. सौंदर्य तो पूरे में था. खंड—खंड में सौंदर्य न मिलेगा.
हां, रासायनिक तत्व मिल जायेंगे. किन चीजों से फूल बना है, किन पदार्थों से बना है, किन खनिज और द्रव्यों से बना है— वह सब मिल जायेगा. तुम बोतलों में अलग—अलग फूल के खंडों को इकट्ठा करके लेबल लगा दोगे.
तुम कहोगे— ये केमिकल्स है, ये पदार्थ है; इनसे मिलकर फूल बना था. लेकिन तुम एक भी ऐसी बोतल न भर पाओगे, जिसमें तुम कह सको कि यह सौंदर्य है, जो फूल में भरा था. सौदर्य तिरोहित हो जायेगा. अगर तुमने फूल पर आक्रमण किया तो फूल की आत्मा तुम्हें न मिलेगी, शरीर ही मिलेगा.
विज्ञान इसीलिए आत्मा में भरोसा नहीं करता. भरोसा करे भी कैसे? इतनी चेष्टा के बाद भी आत्मा की कोई झलक नहीं मिलती. झलक मिलेगी ही नहीं. इसलिए नहीं कि आत्मा नहीं है; बल्कि तुमने जो ढंग चुना है, वह आत्मा को पाने का ढंग नहीं है. तुम जिस द्वार से प्रवेश किये हो, वह क्षुद्र को पाने का ढंग है. आक्रमण से, जो बहुमूल्य है, वह नहीं मिल सकता.
जीवन का रहस्य तुम्हें मिल सकेगा, अगर नमन के द्वार से तुम गये. अगर तुम झुके, तुमने प्रार्थना की, तो तुम प्रेम के केंद्र तक पहुंच पाओगे. परमात्मा को रिझाना करीब—करीब एक स्त्री को रिझाने जैसा है. उसके पास अति प्रेमपूर्ण, अति विनम्र, प्रार्थना से भरा हृदय चाहिए. और जल्दी वहां नहीं है. तुमने जल्दी की, कि तुम चूके.
वहां बड़ा धैर्य चाहिए. तुम्हारी जल्दी और उसका हृदय बंद हो जायेगा. क्योंकि जल्दी भी आक्रमण की खबर है. इसलिए जो परमात्मा को खोजने चलते है, उनके जीवन का ढंग दो शब्दों में समाया हुआ है— प्रार्थना और प्रतीक्षा. प्रार्थना से शास्त्र शुरू होते है और प्रतीक्षा पर पूरे होते है.
– बब्बा (OSHO)
बहुत खूब…