प्रधानमंत्री बनने के बाद संसद में अपने पहले भाषण में नरेंद्र मोदी ने कहा, “हम सब मिलके काम करेंगे, आपकी आलोचना का स्वागत रहेगा, सबका साथ सबका विकास हमारा सूत्र होगा. चार साल मिल के काम किया जाए, एक साल राजनीति की जायेगी, राजनीति के लिए एक साल बहुत होता है.”
ये बात आप लोगों को याद दिलाने के पीछे आज की बनी स्थितियां हैं. भारत के सभी विरोधी दल 24×7×365 केवल चुनाव और घटिया राजनीति के मोड में रहते हैं.
मोदी सरकार के विरोध के नाम पर हर सप्ताह एक नए नियोजित मुद्दे के साथ केवल घटिया राजनीति हुई. एक चुनी हुई संवैधानिक सरकार को अपमानित किया गया.
साथ ही मोदी विरोधियों ने जिस तरह संविधान का अपमान किया और कर रहे हैं वो विस्मित करने वाला है.
अब चूंकि बीजेपी भी एक राजनीतिक दल है तो राजनीति करने का हक़ तो उसे भी है ही.
अभी सरकार के तीन साल भी पूरे नहीं हुए हैं और विरोधियों की वैधता पर सवाल उठने लगे हैं.
विरोधियों के अंतिम समुराई रविश तो विक्षिप्त की सी अवस्था में आ गए हैं. ज़ाहिर है इसका इलज़ाम भी मोदी पर ही होगा.
पर लोकतंत्र और संविधान का संदर्भ और उल्लेख करने वाले लोग आम भारतीय के नज़रिये को मोदी की पक्षधरता के रूप में क्यों कर देख रहे है?
आतंकवाद पर हम सख्त रुख चाहते हैं. मोदी सरकार ने सख्ती दिखायी. इसका समर्थन कैसे मोदी को समर्थन हो गया?
हम तो आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई का समर्थन कर रहे हैं. आप इस लड़ाई में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं तो हम आपके विरोध में अपना मत व्यक्त कर रहे हैं. इसमें किसकी भक्ति है?
इसे आपातकाल कहते है?
संविधान में आपातकाल का प्रावधान है तो उसका प्रयोग तो किया ही जा सकता है. आप अपनी सत्ता की सुरक्षा के लिए आपातकाल ले आये, हम भारत की सुरक्षा के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं.
हमे योग और आयुर्वेद में यकीन है. इन्हें हम जीवन केंद्रित और जीवन को पोषित करने वाला मानते हैं, इसलिये इसका समर्थन करते हैं, इसमें मोदी को समर्थन कहां है?
इससे संविधान के किस प्रावधान का किस उदेश्य का अतिक्रमण होता है?
आपने 70 साल में कश्मीर को नासूर बना दिया. हम अब महबूबा मुफ्ती के भाषणों को सुनके बदलाव की उम्मीद करते इसलिए समर्थन कर रहे हैं.
इसमें आपका कौन सा संविधान अतिक्रमित हो रहा है?
दिन-रात केवल मोदी का विरोध करते आप थकते नहीं, पर आपको लगता है आपको बोलने ही नहीं दिया जा रहा. आपके सुर हाफिज़ सईद से मिलते हैं.
यदि हम आपके उस बोल का विरोध कर देते हैं तो कौन सा आपातकाल आ जाता है?
मतलब संविधान केवल पत्रकार, विरोधियों और अपराधियों के अधिकारों के बारे में है. क्या हम आम भारतीयों के लिए संविधान कोई सुरक्षा नहीं देता?
खैर! आप लोगो के कारनामे यदि गिनाने लगूं तो बहुत वक़्त लग जायेगा. बस इतना बताना देना चाहता हूँ कि अभी तो उस शख्स ने राजनीति शुरू नहीं की है.
जब वो करेगा तो हम भी उसकी राजनीति में राजनीति करेंगे. फ़िलहाल तो हम अपने संवैधानिक अधिकारों के तहत ही आपकी नग्नता को उजगार कर रहे हैं.
तो सेक्युलर विरोधियों, अभी संभालो खुद को. अभी तो तीन साल भी नहीं हुए और तुम विक्षिप्त से होने लगे.
आओ संविधान-संविधान खेलें.