एक बार की बात है एक आदमी कंटीली झाड़ियों की जड़ में मट्ठा डाल रहा था. जो भी पास से गुजरता वो उसकी बेवकूफी पर हंस देता. एक आदमी से रहा नहीं गया उसने पूछ लिया, भाई ये क्या कर रहे हो? क्यों कर रहे हो?
मट्ठा डालने वाले ने जवाब दिया, इस पेड़ के काँटों ने कल मुझे छलनी किया था, आज मैं इनकी जड़ में मट्ठा डाल रहा हूँ. थोड़ी देर में ये सूखेगा, फिर चींटियाँ इसे खाने आएँगी. इस से चींटियाँ इसकी जड़ को खा जाएँगी और ये झाड़ियाँ जड़ से ख़त्म हो जाएँगी !!
ये किस्सा पुराना है और महान अर्थशास्त्री चाणक्य का है. उन पर हंसने वाले आज हमें मूर्ख लगते हैं, ऐसे में एक और अर्थशास्त्री का नाम याद आया हमें.
इन पर लोग पिछले 10 साल से हंस रहे हैं, ये पलटकर जवाब भी नहीं देते! लेकिन धीरे धीरे कांग्रेस ख़त्म हो गई है, पहले केंद्र से अब राज्यों से!
और इस बार बड़े पेड़ के गिरने पर धरती भी नहीं हिली! कांग्रेस के नाश की सरदार मौन को बधाई!
पूरा देश आपको याद करेगा, और आपके इस योगदान को भी याद रखेगा! 84 का सुन्दर प्रतिशोध लिया आपने!