उम्र के उस दौर में मिलना मुझे
वक्त के उस छोर पर मिलना मुझे
जब सुबह से शाम बहुत देर में होती है
जब राते लंबी और बिना नींद के सोती हैं
जब साँस बिना एतबार के चलती है
जब आँखे चहेरे नहीं धुन्धले साये देखती हैं
उम्र के उस दौर में मिलना मुझे
वक्त के उस छोर पर मिलना मुझे
जब जिस्म मिटटी ज्यादा जिस्म कम रह जाता हैं
जब सुबह के इंतज़ार बिना रात को सोया जाता है
जब अपने पैर जिस्म को बोझ समझने लगते हैं
जब हाथ चाय की प्याली लबो तक लाते काँपने लगते हैं
उम्र के उस दौर में मिलना मुझे
वक्त के उस छोर पर मिलना मुझे
जब ज़िन्दगी हमें लगभग जी चुकी होती है
जब जिल्द बचती है कहानी पूरी हो चुकी होती है
जब ज़िन्दगी अपनी रफ़्तार बढ़ाने लगती है
जब मौत देख कर हमें मुस्कुराने लगती है
उम्र के उस दौर में मिलना मुझे
वक्त के उस छोर पर मिलना मुझे
शायद बातचीत का एक खूबसूरत दौर होगा
मेरे पास भी होगा कुछ कहने के लिए
यक़ीनन तुम्हारे पास भी बहुत कुछ होगा
तब शायद एक दूसरे की ज्यादा जरूरत होगी
उम्र के उस दौर में जरूर मिलना मुझे
वक्त के उस छोर पर जरूर मिलना मुझे
- कुलदीप वर्मा