आपत्तियों के जनक की आपत्तिजनक करतूतें

दिल्ली में होने और सुदूर उत्तर पूर्व में होने का फर्क समझना हो तो ख़बरों की तुलना कीजिये. ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल (BARC) के डाटा देखेंगे तो पांच टॉप अंग्रेजी न्यूज चॅनेल्स की टोटल देखने वालों की संख्या नौ लाख के करीब है. भारत के टॉप दो अंग्रेजी अखबार-TOI और HT की कुल पढ़ने वालो की संख्या 1.20 करोङ से कुछ कम है.

सवा सौ करोड़ की आबादी वाले इस देश में सिर्फ नौ लाख लोग इन्हें देखते हैं तो फिर ये मीडिया मुग़ल इतने शक्तिशाली कैसे? नवम्बर 2010, में ओपन मैगज़ीन (OPEN) ने अपनी एक रिपोर्ट में निरा राडिया और पत्रकारों, नेताओं और व्यापारियों के बीच की बात चीत के आधार पर कई खुलासे किये थे.

बाद में सीबीआई ने कहा कि उनके पास राडिया के फोन के 5,851 रिकॉर्डिंग हैं जिसमें वो 2G स्पेक्ट्रम की दलाली करती सुनाई देती हैं. इनमें NDTV की बरखा दत्त भी शामिल थी.

थोड़े समय बाद the sunday guardain ने अपने लेख में NDTV और ICICI बैंक के अधिकारीयों की मिलीभगत से टैक्स में हेरा फेरी पर एक रिपोर्ट छाप दी.

शेयर की कीमतों को गलत बताकर कैसे प्रणय रॉय को बचाया गया इसकी पोल खुली तो NDTV के सीईओ ने सन्डे गार्डियन पर मानहानि का मुकदमा ठोकने की धमकी भी दे डाली.

19 नवम्बर 2015 को ई.डी. ने फेमा एक्ट (FEMA) का उल्लंघन करने के लिए NDTV पर 2,030 करोड़ का जुरमाना भी ठोक दिया. हालाँकि इस मीडिया मुग़ल का दावा है कि ये जुर्माना अवैध है और मुकदमा अभी चल रहा है.

इसके बाद 5 अगस्त 2011 को कैग (CAG) ने अपनी रिपोर्ट में 19 वें कॉमनवेल्थ गेम्स में हुए घोटाले का पर्दाफाश किया. अपनी रिपोर्ट के सेक्शन 14.4.2 में कैग ने अभियोग लगाया कि 37.8 मिलियन रुपये के प्रदर्शन के अधिकारों के टेंडर गलत तरीके से NDTV और CNN-IBN को कॉमनवेल्थ कमिटी ने गलत तरीके से दे डाला है.

इसके अलावा विदेशों में अपनी रेटिंग से छेड़ छाड़ करने के लिए भी मामले इस मीडिया मुग़ल पर चल रहे हैं. जहाँ तक रिपोर्टिंग का सवाल है तो चाहे वो कारगिल युद्ध के समय भारतीय सैनिकों की लोकेशन दिखाने का मामला हो, 2002 के दंगों का भावनात्मक दोहन का मामला हो, या फिर मुंबई हमलों की रिपोर्टिंग हो, पत्रकारिता के नैतिक मूल्यों को ताक पर रखकर काम करने के आरोप इन पर लगते रहे हैं.

ऐसे में ये वाकई आश्चर्यजनक है कि जब दिल्ली के इस मीडिया मुग़ल की ख़बरों को देश में आपातकाल की तरह घोषित किया जाता है तब असम में जहाँ कि आपातकाल (AFSPA) फिर से छह महीने के लिए बढ़ा दिया गया है वहां के एक समाचार चैनल पर ठीक उसी दिन लगाए गए प्रतिबन्ध को राष्ट्रीय अंग्रेजी मीडिया पहले पन्ने की खबर भी नहीं मानती!

– Tejee Isha

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