कहीं सुनी-सी नहीं लग रही ये कहानी!

हर कहानी की तरह इस कहानी में भी एक राजा था एक रानी थी. रानी महात्वकांक्षी थी और ऊपर से तो वो अपने राजा से प्यार का दिखावा करती रही पर अंदर ही अंदर उसे खोखला करती रही और राजा के साथी सहयोगियों को अपने तरफ करती गयी.

और एक दिन राजा को मार दिया गया. कुछ लोग कहते थे सत्ता के लिये रानी ने खुद राजा को मरवा दिया और अपने पहले आशिक़ से हुये बच्चे को युवराज बना कर खुद शासन करने लगी.

वो युवराज कभी शासन या राजनीति में नही आना चाहता था वो गाता बजाना चाहता था घूमना चाहता था प्यार करना चाहता था पर अपनी माँ के दबाव में उसको अपने सपने मारने पड़े अपना प्यार भुलाना पड़ा बेमन से वो सिंहासन में बैठने को राजी हो गया पर उसका मन कभी नहीं लगा मन ना लगने का कारण ये भी था कि उसे पता चला वो तो बस नाम का युवराज है सत्ता तो उसकी माँ ही चलाना चाहती है.

इसी बीच युवराज को एक राजनैतिक गुरु मिला जो एक जमाने में उस राजा को दोस्त रहा चुका था जिसे रानी ने मरवा दिया और वो खुद रानी को बर्बाद करना चाह रहा था.

इस गुरु का युवराज से भी कोई प्यार ना था वो युवराज को अजीबो गरीब मशवरे देता जैसे युद्ध के बजाय बांसुरी बजा कर दुश्मन को मनाना जिससे समय समय पर युवराज की पूरे राज्य में बेइज्जती होती रही और उसे लोग एक सनकी इंसान समझने लगे.

साथ ही वो युवराज को उसके सपने, उसका प्यार और वो जिंदगी भी याद दिलाता रहा जिसे उसकी माँ ने छीन ली. वो उसे बताता कैसे उसकी माँ ने सत्ता के लिये तुम्हारे बाप का क़त्ल करवा दिया.

युवराज ने कसम खा ली कि वो उस सत्ता की ही चूलें हिला देगा जिसके लिये उसके बाप का क़त्ल हुआ और उसकी जंदगी की आज़ादी उससे छीनी गयी.

और उसने कभी युद्ध में गायकों और नचनियों की फ़ौज भेज कर कभी जनता के सामने राजकीय आदेशों को फाड़ कर अपनी ही सत्ता का नाश करता रहा. और जब ये सब कुछ हद से ज्यादा बढ़ गया माँ ने युवराज को हटाने का सोंचा पर नफ़रतें इस कदर बढ़ गयी थीं इस युवराज ने अपनी माँ का क़त्ल करवा दिया. और कुछ ही दिनों में साम्राज्य से इस परिवार का नाम ख़त्म हो गया.

ये कहानी रोम के सम्राट नीरो और उसकी माँ इग्रिप्पीना और नीरो के राजनितिक सलाहकार सेंसे की है. हाँ अगर आपको ये कहानी देश की किसी राजघराने मिलती हुई लगती है तो ये आपकी समझ है.

– अवनीश बाजपेयी

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