वासुदेव बलवन्त फड़के जन्म स्मरण : अंग्रेजों के विरुद्ध शस्त्र उठानेवाला पहला क्रांतिकारी

भारत के प्रथम क्रान्तिकारी फड़के का जन्म महाराष्ट्र में 04 नवम्बर 1845 को हुआ था. उन्होने मुम्बई जी.आर.पी. में बीस रुपए मासिक की नौकरी करते हुए अपनी पढ़ाई जारी रखी.

शिक्षा पूरी करके फड़के ने ‘ग्रेट इंडियन पेनिंसुला रेलवे’ और ‘मिलिट्री फ़ाइनेंस डिपार्टमेंट’, पूना में नौकरी की.

घने जंगलों के बीच उनकी एक व्यायामशाला थी, जहाँ ज्योतिबा फुले और अन्य कई देशभक्त उनके साथी थे. यहाँ लोगों को शस्त्र चलाने का भी अभ्यास कराया जाता था. लोकमान्य तिलक ने भी वहाँ शस्त्र चलाना सीखा था.

रानाडे के प्रभाव मे वे नौकरी करते हुए भी छुट्टी के दिनों में गांव-गांव घूमकर लोगों में अंग्रेज़ो द्वारा की जा रही आर्थिक लूट के विरोध में प्रचार करते रहे.
जब उनकी माताजी की बीमारी में उनके अंग्रेज़ अधिकारी ने उन्हे अवकाश नहीं दिया तब फ़ड़के ने नौकरी छोड़ दी और विदेशियों के विरुद्ध क्रान्ति की तैयारी करने लगे.

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भारत को अंग्रेजों से मुक्त करने के लिये उन्होंने महाराष्ट्र की कोली, भील तथा धांगड रामोशी जातियों को एकत्र कर एक क्रान्तिकारी संगठन खड़ा किया.

इस मुक्ति संग्राम के लिए धन एकत्र करने के लिए उन्होनें अंग्रेज साहूकारों को लूटा. फड़के को विशेष प्रसिद्धि तब मिली जब 1875 में उन्होनें पुणे नगर को कुछ दिनों के लिए अपने नियंत्रण में ले लिया.

महाराष्ट्र के सात ज़िलों में वासुदेव फड़के की सेना का ज़बर्दस्त प्रभाव था, अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें ज़िन्दा या मुर्दा पकड़ने पर पचास हज़ार रुपए का इनाम घोषित किया हुआ था.

20 जुलाई 1879 को जब वे बीमारी की हालत में एक मन्दिर में विश्राम कर रहे थे, तभी अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ़्तार कर लिया, राजद्रोह का मुकदमा चला और फड़के को आजन्म कालापानी की सज़ा देकर ‘अदन’ भेज दिया गया.

वहाँ उन्हें क्षय रोग हो गया और 17 फ़रवरी, 1883 को अदन की जेल के अन्दर ही उन्होने प्राण त्याग दिए.

बंकिमचन्द्र के ‘आनंदमठ’ में फड़के के कार्यों की विशद स्तुति है!

इस आदि-क्रांतिकारी के जन्मदिन पर हृदय से नमन एवं श्रद्धांजलि!

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