अब तक भारतीय राजनीति के केंद्र में मुस्लिम वोट बैंक था जो अब अपना विस्तार कर के अपने अंदर किसानों, सैनिकों और नौजवानों को समाहित कर रहा है.
लगातार चलने वाले चुनावी परिदृश्यों, मीडिया की वृहत्तर भागीदारी और स्वार्थ, व्यावसायिक चुनाव प्रबंधकों के होने से सामाजिक विभाजन की जो शुरुआत हुई है उसका चरम अभी आना बाकी है.
बीजेपी से सबसे बड़ी खुन्नस और परेशानी उसकी संगठन की मजबूती, पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की सक्रियता, बीजेपी के सहयोगी संगठन और सबसे ऊपर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की काबिलियत और उनकी कर्मठता….
राहुल गांधी, सोनिया गांधी, अरविन्द केजरीवाल, नितीश कुमार, शरद यादव, मुलायम, लालू, ममता, जयललिता, शरद पवार, अजित सिंह, चौटाला, नवीन पटनायक और वामदल सभी सिर्फ मोदी विरोध की संजीवनी को आधार बना कर मुस्लिम वोट बैंक और समाज के विभिन्न वर्गों को भ्रमित करके, ज़हर बो के ही अपने आप को स्थापित करने की भरसक कोशिश कर रहे हैं.
लेकिन धूमकेतु की तरह चमक रहे प्रधानमंत्री मोदी एक विशिष्ट एवं अटल एकाग्रता से अपनी सारी ऊर्जा सिर्फ देश हित और विकास में खर्च कर रहे हैं…. उनकी पूरी केबिनेट तेजी से कार्यों का संपादन और क्रियान्वयन में जुटी हुई है…!
शायद गीता सार सिर्फ मोदी और उनकी टीम को ही याद है….
“कर्म करो, फल की इच्छा मत करो…. क्या लाये थे जो साथ ले जाओगे….”