दिल्ली का इतिहास : मुगल सम्राट भी करते थे लक्ष्मी पूजा

आजकल कुछ मुस्लिम दोस्तों को दिवाली का पर्व मनाने पर आपत्ति होती है. मगर इतिहास इस बात का साक्षी है कि मुगलकाल में सम्राट दिवाली का त्योहार पूरी धूमधाम से मनाया करते थे. क्योंकि मुगलों की नजर में दिवाली हिन्दुओं का त्योहार नहीं बल्कि कौमी त्योहार था.

उर्दू के विख्यात् साहित्यकार ख्वाजा हसन निजामी अपनी अमर कृति ‘मुगल दरबार के रोजनामचा से’ में लिखते हैं कि अकबर शाह द्वितीय एवं उनके पुत्र बहादुर शाह जफर दोनों ही दिवाली के पर्व को बड़ी धूमधाम से मनाया करते थे.

दिवाली मनाने की तैयारी दशहरे से ही शुरू हो जाती थी. पूरे लालकिले में सफाई और रंग-रोगन का काम सम्राट के आदेश से प्रारम्भ हो जाता था. जफर के शासनकाल में दिवाली के दिन एक विशेष दरबार का आयोजन किया जाता था. जिसमें जफर दिल्ली के प्रमुख नागरिकों और अधिकारियों को इनाम और इकराम देते थे.

फिरंगियों की ओर से जफर को नजर भी पेश की जाती थी. दिवाली के दिन सम्राट झरोखे में जलवा अफरोज़ होते थे. उनके सामने सजे हुए घोड़े और हाथी पेश किए जाते थे. आतिशबाज भांति-भांति की आतिशबाजी का प्रदर्शन करते थे और इनाम पाते थे.

शाही ज्योतिषी पंडित रामस्वरूप लक्ष्मी पूजा का मुहूर्त निकालकर सम्राट को उसके बारे में सूचना देते थे. निश्चित समय पर पंडित रामस्वरूप लक्ष्मीदेवी की मूर्ति लेकर लालकिले के दीवानखास में आते थे जहां सम्राट लक्ष्मीदेवी की विधिवत पूजा करते थे. इसके बाद उन्हें जफर की ओर से दक्षिणा भी दी जाती थी.

दीवाली की रात को लालकिले और शाही महलों को खूब सजाया जाता था और उन पर दीप-माला की जाती थी. लक्ष्मी पूजा के बाद सम्राट अपने शाही हाथी पर सवार होकर लालकिले से चांदनी चौक, फतेहपुरी और हौज खाजी होते हुए चावड़ी बाजार की ओर मुड़ जाते थे.

रास्ते में सम्राट के शाही हाथी के पीछे चल रहे हाथियों से रुपये लुटाए जाते थे. रास्ते में व्यापारी और शाही दरबारी बादशाह को नजरें पेश करते थे. लालकिला जाकर जफर तुला दान करते थे. एक बार उन्हें सात अनाजों से और दूसरी ओर चांदी के सिक्कों से तोला जाता था जिन्हें बाद में गरीबों में बांट दिया जाता था.

उर्दू के एक अन्य साहित्यकार शाहिद अहमद दहलवी ने भी अपनी पुस्तक ‘मेरी दिल्ली’ में भी बहादुरशाह जफर द्वारा दिवाली का पर्व मनाए जाने का उल्लेख भी इसी तरह किया है. मगर उन्होंने एक अन्य जानकारी यह दी है कि दीवाली की रात जफर अपनी बेगम के साथ परम्परागत रस्म को निभाने के लिए जुआ भी खेला करते थे.

– मनमोहन शर्मा (वरिष्ठ पत्रकार)

Comments

comments

LEAVE A REPLY