हमारे देश की राजधानी दिल्ली का प्रदूषण स्तर राष्ट्रीय मानक से दोगुने से अधिक पिछले 17 वर्षों से है. अभी फिर दीवाली के नाम पर आतिशबाजी पर रोक लगाने के कई दावे और अनुरोध प्रस्तुत किये जायेंगे.
विश्व में PM10 का स्वीकार किया गया मानक है 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर. भारत जैसे विकासशील देश के लिए इसके मानक को बदल कर 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर कर दिया गया है.
जब भारत विश्व मानक को मानता था और इसकी मात्र 60 से अधिक अस्वीकार्यमानी जाती थी तब भी भारत में दिल्ली शहर में इसकी मात्र 2001 में 125 से कम नही थी जो 2010 तक आते आते 270 से 275 हो गयी.
अब आई और अधिक तथाकथित औद्योगिक क्रान्ति और यह औसतन 375 के आंकड़े को पार कर गयी सन 2011 में . तब यह न्यूनतम 250 और अधिकतम 700 तक होती थी. और आज भी दिल्ली में इसकी मात्र 375 से 500 के बीच में है.
जिसके कारण दिल्ली सरकार ने ODD EVEN जैसे असफल प्रयोग किये और हमारे प्रदूषण से परेशान होने वालों ने इसकी दुहाई दी. वही लोग इस बार फिर से इसकी दुहाई देकर आतिशबाजी को बंद करने की मांग कर रहे हैं.
यहाँ एक बात गौर करने के लायक साल भर आप 450-500 की प्रदूषण मात्रा में रह कर जीवन यापन कर रहे हैं और एक दिवाली के नाम पर जिसके अगले दिन प्रदूषण का आंकड़ा शायद 1000 को पार कर लेगा पर हाय तौबा शुरू हो जाएगी.
दिनोंदिन बढ़ते प्रदूषण का असली कारण अब और समझ लीजिये. हमारे यहाँ पर दो प्रकार के मानकों से प्रदूषण को नापा जाता है एक है PM10 और दूसरा है PM2.5 PM10 में 10 माइक्रोग्राम से कम वाले कणों को नापा जाता है और PM2.5 में 2.5 माइक्रोग्राम से कम वाले कणों को नापा जाता है.
सरकारी और गैरसरकारी आंकड़े बताते हैं कि 10 माइक्रोग्राम से कम वाले कणों में 56% योगदान सड़क की मिटटी के कणों के कारण है जो कि सड़क बनाने के समय या सड़क के आसपास कच्ची मिटटी के कारण होता है.
यहीं पर मकान पुल इत्यादि बनाते समय उड़ती धूल भी इसमें योगदान देती है. उद्योग के कारण 10% और सीमेंट की मिक्सिंग के उपकरणों के कारण 10%. उसके बाद 9% गाड़ियों से होता है जिसके कारण ODD EVEN का बवाल मचाया गया.
इसी प्रकार 2.5 माइक्रोग्राम से कम वाले प्रदूषण का भी सबसे बड़ा कारण 38% धूल मिटटी और फिर 20% वाहनों से है. उसके उपरान्त 12% घरेलू कूड़ा करकट जलाने से है.
और गहराई में जा कर यदि आप समझें तो यही समझ आता है कि जो शहर की तरफ पलायन हो रहा है उसी के कारण आपको और अधिक वहां सड़कें तथा पुल चाहिए और यही आपके प्रदूषणों में बढ़ोत्तरी कर रहे हैं.
मेरा शुरू से यही मानना है जब तक गाँव गाँव में रोज़गार उत्पन्न करा कर वहां से शहरी पलायन को रोका नहीं जायेगा शहर में किये सभी प्रयास विफल होते रहेंगे क्योंकि हम बीमारी की जड़ नही पकड़ रहे हैं.