भंडपीर इंदौरी : दुल्हिन

मुराई मोहल्लेवाली पूरी मिसरी की पुतली थी
नमक के पानी चढ़ी
पंचसहेली रा दूहा की पोथी से
जैसे आ ठाढ़ी हुई हो नौलखे के बन में
जब मैं ग़ैबीपीर का दिया मंतर फूंकता था

दीन हमारा कहता था कि न देख
चाँदी के टूमछल्लों से सरापा जगमग
घूँघर ऐसे स्याह जैसे वस्मे से
रंगे हो किसी पेंटर ने बुरूश से, शंगरफ़ी दहन,
शकरतरी बातें, शमामा पैरहन, शऊर ऐसे कि
शक होता कोई तस्वीर थी
सराप की वजह मारी मारी फिरती है

जब पायचां जो ज़रा ऊँचा किया
तो महावर से रचे थे पाँव, पायजेब, छड़, मछलियों से
धज ऐसी सूझती थी जैसे शगूनिए की
पुतलियों पर भरे घड़े की छाँह
और इतना और अर्ज़ कर दूँ कि पाँव उलटे थे

जो उल्टी धार डोंगी खेती है, जिनकी चाल
ज़माने से जुदा होती है, जिनका जी नहीं घबराता
ऊँचानीचा पग धरते

ऐसी मिसरी की पुतलियां डायन नहीं
शकरपारे तलनेवाली, शदीद इश्क़ फ़रमाने वाली
शजरदार दुल्हनें होती है, उसी टेम मेरा जी
हुआ कि बिन अबेर किये उससे निकाह पढ़ लूँ.

– भंडपीर इंदौरी

(भंडपीर इंदौरी की यह नज़्म उनके ऐसी औरत से इश्क़ का बयान करती है जिसे हम लोग अपनी बेइल्मी में डायन कहते है.
इसे हल्दी लगने के बाद बन्नेबन्नी को लोहे के ताबीज़ में रखकर बांधा जाता है.)

*पंचसहेली रा दूहा – प्रसिद्ध राजस्थानी शृंगार की कविता.
*नौलखा- इंदौर का वह इलाक़ा जहाँ पहले नौ लाख पेड़ थे.
*दीन- धर्म.
*वस्मा- नील के पत्ते जिससे ख़िज़ाब बनता है.
*शंगरफ़ी- लाल.
*शकरतरी- चीनी, मीठी.
*शमामा- ख़ुशबूदार.
*पैरहन- लिबास.
*मछलिया- पैरों के बिछवे जो मछलियों के आकार के होते है.
*शगूनिए- जो शगुन विचारता हो.
*पुतलियों पर भरे घड़े की छाँह- भरे घड़े को शुभ शगुन बताया जाता है.
*शदीद- तीव्र.
*शजरदार- जिसकी बहुत शाखें हो. यहाँ उर्वर के अर्थ में प्रयुक्त.

चित्र साभार जयेश शेठ

  • साभार अम्बर पाण्डेय

Comments

comments

LEAVE A REPLY