ग़रीबों के लिए दीवाली मुश्किल तो नहीं कर रहा बहिष्कार?

electric-decoration-poor-childrren

अगर वाकई हमें चीन के सामान को हमारे बाजार से बाहर करना है, तो वो ऐसे नहीं होगा. झालर, लड़ियाँ आदि दीपावली उत्सव से सम्बंधित चीन के उत्पाद का विरोध करने से असफलता ही हाथ लगेगी.

वो इसलिए क्योंकि ये सब तो चीन के लिए कचरा है, वो इन्हें टनों से बनाकर वजन के हिसाब से बेचता होगा न कि नग से. अधिकाँश ऐसे उत्पाद, रिसाइकिल और वेस्ट मटेरियल से बनते होंगे जिसे निकालने-खपाने को उनके पास कई तरीके हैं.

हमारे ही देश के लोग उनके सामान को पैकिंग और नाम बदलकर बेचने लगेंगे, फिर क्या होगा? और अगर चीन भी जियो सिम की तरह चियो सिम का फ्री ऑफर हमारे लिए लाए तो क्या होगा? फिर किरकिरी ही होना है. इसलिए जोश में होश नहीं खोना चाहिए.

चीन के खिलौना प्रोडक्ट्स से अमेरिकी बाजार हिल गया था तो हम क्या चीज हैं. हम तो वैसे ही मुनाफाखोरों के स्वर्ग में रहते हैं. यहां ज्यादा लाभ की चीज ही बाजार में चलती है.

हमारे देश में घटिया माल, ‘एक के साथ एक फ्री’ स्कीम लगाकर बेच दिया जाता है. क्यों भाई… फ्री का लालच किस खुशी में? इसकी जगह कीमत कम कीजिए न, ताकि जनता को लाभ हो, पर नहीं ऐसा नहीं कर सकते.

चीन के छोटे-छोटे प्रोडक्ट्स इतने कम कीमत पर उपलब्ध हैं कि हमारा बाजार उनसे टक्कर ही नहीं ले सकता. उनसे टक्कर लेने के लिए कड़े दिल वाले व्यापारियों की जरूरत है, जो देशहित में बहुत मामूली लाभ पर उत्पाद उपलब्ध करा सके.

उदाहरण स्वरूप बच्चों के छोटे-छोटे खिलौने, टॉर्च आदि पांच-दस रुपए में उपलब्ध है, जो हमारे पचास रुपए वाले देशी खिलौने से कई गुना अधिक आकर्षक और मजबूत है.

खासकर इनमें लगने वाले बटन के आकार के सेल की कीमत ही हमारे यहां पांच-दस रुपए से अधिक आंकी जाती है पर चाइना आइटम में तीन-चार ऐसे सेल मुफ़्त में लगे मिलते है और कीमत वही दस के आस-पास.

उनकी एक पांच रुपए वाली छोटी रेसिंग कार इतनी फास्ट और कॉम्पेक्ट है कि बिजली सी-भागती है और मजबूत इतनी कि लगता है हाथी बिठा दीजिए, कुछ नही होगा. जबकि इसी कीमत के हमारे देशी खिलौने चार दिन भी चल जाएं तो किस्मत!

और पटाखों की माया के क्या कहने, उन पर डली प्रिंट रेट मायापति की भी सांस फुला दे. देशी पटाखे यदि प्रिंट रेट से बिकने लगे तो देश में शायद अम्बानी नुमा परिवार ही दीपावली मना पाएंगे.

देखा जाए तो चीन के सामानों का विरोध करने का यह सही समय प्रतीत नहीं होता. खासकर त्यौहार के समय में सस्ते चाइना आइटम के विरोध से इसका सीधा असर आमजन की जेबों पर गिरेगा.

इसकी जगह फिलवक्त मंहगे चाइना आइटम का विरोध होना चाहिए, वो भी उन आइटम का जिनके खरीददारों पर कीमत का कोई ख़ास असर नहीं होता.

त्यौहार, गरीबों का उत्सव होता है. अमीर तो इसे दिखावे की तरह मनाता है, जबकि आम इंसान इसमें ख़ुशी तलाशता है.

गरीबों के लिए त्यौहार एक अवसर होता है जब वो अपने वजूद को भूलकर स्वप्नों की दुनिया में सैर करता हुआ उन्हें साकार होने जैसा अनुभव करता है.

बच्चे पूरे साल त्यौहार की बाट जोहते रहते हैं यदि सस्ते प्रोडक्ट्स न होंगे तो बच्चों का भी त्यौहार फीका हो जाएगा.

एक बात ध्यान दीजिए कि चाइना आइटम ने गरीबों को अमीरी शौक पूरे करने का अवसर भी दिया है जो हमारे बाजार ने उसके लिए दिवास्वप्न बना रखा था.

चाहे लाख बुराई हो पर पेप्सी, कोला से भी बराबरी का अहसास होता है. चाइना आइटम भी बराबरी पैदा कर रहे हैं. गरीब भी वो शौक पूरे कर रहा है जो वह पहले सिनेमा के पर्दे पर देखा करता था.

एक माया को साकार होने की तरह चाइना बाजार हमारे समाज में घुसा है, उसको निकालना इतना आसान नहीं है, जितना कि समझा जा रहा है.

इसके लिए पहले कई स्तरों पर कार्य करने की जरूरत है. सिर्फ उपभोक्ता से अपील करने से हल नहीं होगा.

हमारे प्रोडक्ट्स निर्माता और व्यापारियों को भी आगे बढ़कर मुनाफे का मोह छोड़ना पड़ेगा तभी हम यह लड़ाई जीत सकते हैं.

इसके लिए पहले मुनाफाखोरी और सूदखोरी के जाल को भी उखाड़ना होगा, जिसमें उलझकर मध्यम और गरीब वर्ग कोल्हू के बैल का जीवन जी-रहे है.

खासकर ब्याज के धंधे को भी तोड़ना होगा. ब्याज का धंधा याने ऐसी छुरी से गला रेतना है जिससे न खून निकलता है न जान, बस इंसान की आत्मा रिस-रिस कर निकलती है.

ग्रामीण इलाकों में तो सूदखोरी महामारी की तरह व्याप्त है. न खाता न बही, सूदखोर कहे जो सही.

बिना लाइसेंस के ब्याज का धंधा करने वालों ने गरीबों और मुसीबत में फंसे लोगों का जीवन नर्क कर दिया है.

अदालतें यदि सख्ती दिखाए तभी ये आधुनिक ब्याज-खोर रुक पाएंगे. नहीं तो, इनके जाल में फंसने के बाद दो-तीन पीढ़ी कर्ज उतारने लगे तब भी न उतरे, ऐसा ब्याज दर भी चल रहा है. परिणामस्वरूप पेड़ पर लटकना या मकान-जमीन खोना तय जानिए.

अंदर-बाहर के हाल और पैसे के आगे हारता प्यार यही कहता है कि ड्रेगन को ऑउट करने के लिए ऑलराउंडर प्रयास चाहिए और हम सिर्फ फील्डर के बूते उसे मैदान से बाहर करने के ख़्वाब देख रहे हैं.

ख़्वाब देखना अनुचित भी नहीं है पर इसके लिए तैयारी भी चाहिए, नहीं तो पता चला कि ख्वाब शुरू हुआ ही था कि टपकती छत ने हकीकत से रूबरू कर रुला भी दिया!

Comments

comments

LEAVE A REPLY