तीन पुरुष होते हैं –
उत्तम – अहं – मैं
आवाम् – हम (दो)
वयम् – हम (सब)
मध्यम – त्वं – तू
युवाम् – तुम (दोनों)
यूयम् – तुम (सब).
प्रथम – पुल्लिंग – सः – वह
तौ – वे (दो)
ते – वे (सब)
स्त्रीलिंग – सा – वह
ते – वे (दो)
ता: – वे सब
इस से ध्यान आयेगा कि, उत्तम और मध्यम पुरुष में ‘लिंगभेद’ नहीं है . केवल प्रथम पुरुष में लिंगभेद और तदनुसार क्रियापद का रूप भिन्न होता है .
आज का महत्वपूर्ण विषय –
मध्यम पुरुष के लिए सारे क्रियापदों के रूप स्मरण रखने पडते हैं . वैसे ही ‘त्वं’ यह सम्बोधन ‘तू या तुम’ इस अर्थ में होने से सम्भाषण में सम्मानजनक नहीं है .
जैसे हम हिन्दी में ‘आप’ कहते हैं, उसके लिए ‘भवान्’ (पुल्लिंग) या ‘भवती’ (स्त्रीलिंग) का प्रयोग अधिक उचित है. पर इससे मध्यमपुरुष प्रथमपुरुष बन जाता है और मध्यमपुरुष में प्रयुक्त क्रियापदों की आवश्यकता नहीं रहती . उदाहरणार्थ –
मध्यम पुरुष —–के स्थान पर —- प्रथम पुरुष
त्वं कुत्र गच्छसि — भवान् कुत्र गच्छति.
त्वं पुस्तकं पठसि — (स्त्री) भवती पुस्तकं पठति.
त्वं पश्यसि — भवान्/भवती पश्यति .
ऐसे अनेक वाक्य बन सकते हैं . कृपया त्वं के स्थान पर ‘भवान्/भवती’ का प्रयोग करें जिससे भाषा सरल और शिष्टाचारयुक्त होगी .
संस्कृत की एक और विशेषता – द्विवचन –
कल के वाक्यों को द्विवचन में लिखेंगे तो क्रियापद का रूप बदलता है .
एक – बालः पठति.
दो – बालौ पठतः .
किन्तु संज्ञा का और क्रियापद का रूप अलग से स्मरण रखना पड़ता है. अतः सरल करने हेतु ये वाक्य एकवचन में ही निम्नानुसार कह सकते हैं –
बालः पठति – बालद्वयं पठति.
शिष्यः नमति – शिष्यद्वयं नमति .
अग्रजः वदति – अग्रजद्वयं वदति.
पितृव्यः पृच्छति – पितृव्यद्वयं पृच्छति.
पुत्रः गच्छति – पुत्रद्वयं गच्छति.
‘द्वयं’ लगाने से मूल पुल्लिंगी शब्द नपुंसक लिंगी हो जाता है .
– मुकुन्द हम्बर्डे
पहले की कक्षा के पाठ –
संस्कृत कक्षा -1 : शुरू करो संस्कृताक्षड़ी लेके प्रभु का नाम
संस्कृत कक्षा-2 : वर्तमान काल में एकवचन और बहुवचन का प्रयोग