सुबह-सुबह ऑफिस पहुंचाते ही चाय का गिलास देते हुए परदेशीलाल बता रहा था कि उसके लड़के की किसी सरकारी विभाग में चपरासी के पद पर नौकरी लगनी है, बाबू लोग तीस हजार मांग रहे हैं.
मुझसे पूछ रहा था, भैया कुछ मदद करोगे क्या?
मैंने कहा – मदद तो मैं कर दूंगा पर ये बता तेरा लड़का तो अच्छा पढ़ा लिखा है, किसी प्राइवेट नौकरी में बारह-पंद्रह हजार तनख्वाह पा रहा है, फिर उसको चपरासी बनाने का क्या मतलब?
कहने लगा – भैया सरकारी नौकरी तो सरकारी नौकरी है, अभी सरकारी नौकरी में होता तो अच्छे-अच्छे घर के रिश्ते आ गए होते और बढ़िया दान दहेज़ के साथ उसका ब्याह हो गया होता पर लड़की वाले प्राइवेट नौकरी देख कर बिदक जाते है…
दिमाग को थोड़ा शांत करते हुए मैंने डांटा – काहे बे, लड़की वालों को तेरे लड़के के साथ जीवन बिताने के लिए ब्याह करना है या तेरे लड़के के मरने के बाद उसकी पेंशन और प्रोविडेंट फंड खाने के लिए?
परदेशी लाल सहमते हुए बोला – अब भैया प्राइवेट नौकरी तो प्राइवेट है न, अब देखो इतनी बड़ी टाटा कंपनी और इतना बड़ा चेयरमैन का पद, पर मालिक रतन टाटा ने बिना नोटिस दिए मिस्त्री बाबा को नौकरी से बाहर कर दिया न?
अब आप ही सोचो भैया, दिवाली ठीक सर पर और नौकरी चली जाए तो उनके और उनके परिवार पर क्या बीत रही होगी, सामने इतना खर्चा और हाथ में नौकरी भी नहीं.
परदेशी लाल ने इमोशनल ही कर दिया आज तो मुझे.
– शैलेश गुप्ता