मानव का एक स्वभाव होता है.
आप एक नए शहर में गए और आपने किसी दुकान से कुछ सामान खरीदा. अगर आपका वो अनुभव सुखद रहा तो फिर आप हमेशा उसी दुकान पर जाते हैं.
मुझे याद है कि जून 1988 में मैं NIS में एडमिशन लेने गया.
NIS के विशाल डाइनिंग हॉल में, जिसमे एक साथ लगभग 500 लोग खाना खाते थे, मैंने पहली बार जिस टेबल पर बैठ के खाना खाया, फिर साल भर उसी टेबल पर ही खाया. मैंने गौर किया कि बाकी सब स्टूडेंट्स भी एक तयशुदा जगह पर ही बैठते थे.
मानव स्वभाव शायद हर स्थान पर एक सुरक्षित-सुविधापूर्ण-आश्वासक क्षेत्र (comfort zone) खोज लेता है. वहाँ बैठ कर सुविधा अनुभव करता है. मनुष्य भरसक यथास्थिति (status quo) बरकरार रखने की कोशिश करता है.
राजनैतिक विचारधारा में भी कमोबेश यही होता है. कोई प्रबुद्ध नागरिक, जिस विचार से एक बार प्रतिबद्ध हो जाता है, फिर उसे जल्दी नहीं छोड़ता. बहुत विशेष परिस्थिति में ही वो कुछ नया आज़माता है.
2014 में लोकसभा चुनाव में पहली बार, यादव मतदाता ने मोदी और उनके विकास के एजेंडा से प्रभावित हो के भाजपा को वोट दिया.
समाजवादी पार्टी के लिए खतरे की घंटी तभी बज गयी थी. गाँव गिरांव में कहावत है, ‘बुढ़िया के मरने का गम नहीं, यमराज के परचने का डर है’.
दुकानदार कभी ये नहीं चाहता कि उसका ग्राहक कभी भूले से भी दूसरी दुकान पर जाए. एक बार गया तो कहीं परच न जाए….
माना कि लोकसभा और विधानसभा के मुद्दे अलग होते हैं…. फिर भी यूपी में विकास का एजेंडा आज भी जीवित है और मोदी आज भी उतने ही लोकप्रिय हैं जितने 2014 में थे.
यूपी की जनता आज भी 18 घंटे की बिजली कटौती झेल रही है…. यूपी में आज भी सड़कों के नाम पे सिर्फ गड्ढे हैं….
सड़क और बिजली आज भी बहुत बड़ा मुद्दा है उत्तरप्रदेश में…. इस मुद्दे पर यादव एक बार भाजपा को वोट दे चुका है.
वो जानता है कि भाजपा शासित प्रदेश विकास में कहीं आगे हैं…. यूपी के यादवों के पास पर्याप्त कारण है भाजपा को वोट देने के. बाकी कारण समाजवादी कलह ने दे दिया है.