अपनों की रक्षा के लिए मंज़ूर है अपना ख़ून बहाना

ये घटना पिछली होली से तीन दिन पहले की है, मैं उन दिनों छुट्टियों पर ग्वालियर में था.

मैं अपने दोस्त के साथ किसी काम से लश्कर जा रहा था जैसे ही मैं गोला के मंदिर चौराहा पर पहुँचा तो देखा कि कुछ लोग किसी पण्डाल के नीचे खड़े हुए हैं. वहाँ कोई छोटा सा सेमीनार चल रहा है और कुछ बुद्धिजीवी “पानी बचाओ” अभियान पर लेक्चर दे रहे हैं.

चूँकि मुझे लेक्चर सुनने और लेक्चर देने का बचपन से ही बहुत शौक रहा है सो मैने अपने दोस्त को कहा कि ‘भाई मै तो अब लेक्चर सुनके ही जाऊँगा’.

अब हम दोनोँ भी पण्डाल में पहुँच चुके थे, पण्डाल में कुछ अच्छे अच्छे बैनर लगे हुए थे और लिखा हुआ था “save water for next generation and save water for farmers” और कहीं फूलों, पक्षियों को फ़ोटो लगे हुए थे और लिखा हुआ था कि “save water for natural beauty and make your environment healthy”

अब मैं समझ चुका था कि ये सारा प्रपंच ” होली” को रोकने के लिए है और लोगों को इमोशनली ब्लैकमेल किया जा रहा है कहीं बच्चों के नाम पर तो कहीँ किसानों के नाम पर, तो कहीं फूलों पक्षियों के नाम पर.

अभी उस प्रोग्राम को स्टार्ट हुए मात्र 15 मिनट ही हुए थे, अब किसी NGO की महिला बुद्धिजीवी ने लेक्चर देना शुरू किया और वो PETA से भी सम्बंधित थी और बोली “क्या आप लोगों को पता है भारत में पानी की कमी की वजह से कितने किसान आत्महत्या कर रहे हैं.

पानी की कमी की वजह से कितने पशु पक्षी मर रहे हैं, आज भारत में कई ऐसे भी हिस्से हैं जहाँ पीने के लिए भी पानी नही है. तो आप लोग बताइये कि हमें पानी बर्बाद करना चाहिए, मेरा आपसे अनुरोध है कि हम सब पानी की सुरक्षा करें और अपनी आने वाली जनरेशन को भी पानी उपलब्ध करा सकें.

आप सभी मेरे साथ प्रण लो कि हम “होली” पर एक बूँद भी पानी बर्बाद नहीं करेंगे और केवल सूखी होली खेलेंगे.

अब कुछ समय बाद दूसरे बुद्धिजीवी ने प्रवचन देना शुरू किया और बोला ” क्या आप लोग जानते हो कि होली पर जो रँग गुलाल अबीर यूज़ किये जाते हैं वो हमारी स्किन के लिए कितने हार्मफुल हैं, उन रंगो से कई स्किन डिसीज़ हो जाती हैं और “स्किन कैंसर” भी हो जाता है.

इसलिए मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि जितना हो सके इन रँगो गुलालों से दूर ही रहे और अपने बच्चों को भी इन रँगो से दूर ही रखें.

अब एक एक करके उन सारे बुद्धिजीवियों ने अपने अपने मत रखे, उन सभी का इनडायरेक्टली यही कहना था कि “होली ना मनायें”

अब जब सबके लेक्चर ख़त्म हो गए तो सेमीनार होस्ट ने माइक पर कहा कि “आप में से अगर कोई अपने विचार रखना चाहता हो तो प्लीज स्टेज पर आकर अपने विचार रखें.

अब मैंने उससे कहा कि “सर मुझे भी कुछ कहना है, अब मुझे स्टेज पर बुलाया गया”.

अब मैंने अपनी बात शुरू करने से पहले सभी लोगों को नमस्कार करते हुए कहा कि “मैं बात शुरू करने से पहले एक प्रैक्टिकल दिखाना चाहता हूँ, अब मैंने वहाँ रखे पेपर कटर से अपनी “हथेली” काट दी.

अब मैंने कहा कि कृपया सभी लोग शाँत रहें, मैं आपको कुछ दिखाना चाहता हूँ. सभी लोग मुझे गौर से देख रहे थे कुछ मुझे पागल समझ रहे थे क्योंकि मेरे हाथ से ख़ून निकल रहा था जो मैंने ही काटा था.

अब मैंने फ़र्श को हटाते हुए रोड पर दो फ़ीट तक लंबी ख़ून की लाइन बना दी. अब मैं बोलना शुरू हुआ कि “क्या आप लोग जानते हो PETA क्या है, अगर कोई मालिक अपने कुत्ते को डंडा मारता है तो PETA वाले उस आदमी को हवालात में बन्द करा सकते हैं” फिर मैंने मैडम से पूछा की क्या मैं सही हूँ, और वो मैडम भी हँसते हुए बोल गयी कि यू आर राईट.

तब तक मैंने अपने दोस्त से एक बाल्टी पानी मंगाया. अब उस खून को साफ़ करने में लगभग 10 लीटर पानी बर्बाद हुआ.

अब मैंने स्टेज पर बोलना शुरू किया कि “क्या आप लोग जानते हो की भारत में बकर ईद के दिन 5 लाख से 10 लाख तक जानवर काटे जाते हैं जो बकरी गायें भैंस और ऊँट होते हैं. अब इन जानवरों के ब्लड का औसत निकाला जाये तो प्रत्येक का 20 लीटर ख़ून निकलता है. मतलब ईद के दिन लगभग 1 या 2 करोड़ लीटर खून निकलता है जो सिर्फ़ नालियों में बहा दिया जाता है.

अभी 10 मिनट पहले मैंने अपनी हथेली काट कर खून निकाला था जो मात्र 20 ML या 30 ML होगा जिसे साफ़ करने में 10 से 15 लीटर पानी बर्बाद हुआ तो बंधुओ अगर एक लीटर ख़ून को साफ़ करने में 15 लीटर पानी लगता है तो 2 करोड़ लीटर ख़ून को साफ़ करने में 30 करोड़ लीटर पानी बर्बाद होता है जो होली में बर्बाद होने वाले पानी से बहुत ज्यादा है.

लेकिन हमारे देश में किसी को भी उस दिन पानी की चिंता नही सताती और ना ही PETA वालों को मासूम जानवरों की चिंता सताती है. उस दिन मारे जाने वाले जानवरों में आधे से ज्यादा दुधारू होते हैं जो शिवरात्रि में शिव जी पर चढ़ाये जाने वाले दूध से कई गुना ज्यादा दूध दे सकते हैं.

ऐसे ही कई लोगों को दीवाली पर चलाये जाने वाले पटाखों से प्रॉब्लम होती है लेकिन उन्हें न्यू इयर वाले दिन चलाये गए पटाखे दिखायी नहीं देते.

और कुछ लोगों को नवरात्रि में चलने वाले माइक से होने वाले नॉइज़ पॉल्युशन से प्रॉब्लम है लेकिन उन्हें न्यू ईयर के दिन DJ सुनाई नहीं देते.

अब मैं पूरी लय में था मैंने कहा – “दोस्तों आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत में कई लोगों को समस्या “होली दीवाली शिवरात्रि या नवरात्रि” से नहीं है, उन्हें समस्या हमारी संस्कृति से है, हमारे धर्म से है, हमारे त्योहारों से है.

वो लोग चाहते हैं कि हम अपने धर्म से घृणा करने लगें, अपने त्यौहारों से घृणा करने लगें, अपने रीती रिवाजों से घृणा करने लगें, जिससे वो हमें भारत में ही धर्म परिवर्तन करा के मुस्लिम या ईसाई बना सकें.

अब मैंने सभी से कहा कि मेरा आप सभी से अनुरोध है कि आप इन NGO वालों और PETA वालों से पूछिये कि क्या ईद के दिन पानी बर्बाद नहीं होता, क्या ईद के दिन मासूम जानवरों की गर्दन नहीं काटी जाती.

क्या न्यू ईयर के दिन एयर और नॉइज़ पॉल्युशन नहीं होता, अभी भी समय रहते समझ जाओ की ये कुछ नहीं  मात्र हमारी संस्कृति को निगलने के लिए अपनाये जाने वाले हथकण्डे हैं.

अब मेरी बात ख़त्म हो गयी और मैं जा रहा हूँ…

फिर मैं अपने दोस्त के साथ बहार आ गया और क्लिनिक पर जाकर हथेली पर स्टिच कराया.
अब मेरा दोस्त मुझसे पूछ रहा था कि तुझे अपनी हथेली काटने की क्या जरूरत थी और मैंने भी हँसते हुए उसे ज़वाब दिया – “ये सभी लोग मेरे अपने थे, और अपनों की रक्षा के लिए मुझे अपना ख़ून बहाना मंज़ूर है”.

– अशोक शर्मा

Comments

comments

LEAVE A REPLY