नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली… यही ख़याल आ रहा है ना मन में… आना स्वाभाविक भी है. मानव स्वभाव है, यही कह रहा होगा मन.. हुंह हम दिन रात पूजा पाठ करने वाले, शिवलिंग कौन सी दिशा में होना चाहिए, शिवलिंग की पूजा कौन से मंत्र से की जाती है, कौन से पत्र और फूल चढ़ाने से शिव खुश होंगे ये हम जानते हैं और बरसों से करते आये है.
हमको कभी वो “चुम्बकीय” प्रभाव अनुभव नहीं हुआ और ये देह की नुमाइश करने वाली, केवल देह तक सीमित सोच वाली लड़की कहती है, मैंने आज शिव को जन्म दिया… मेरा सर जैसे शिव लिंग से उठ ही नहीं पा रहा था… मेरी आत्मा उन तरंगों पर सवार थी जिसके अनुभव मात्र से ही मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे गर्भ में ईश्वर ने प्रवेश कर लिया है.
सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने यह तक कह दिया कि ईसाई तो उसकी बात मानेंगे नहीं, लेकिन हिन्दू ज़रूर उसे पगली माता के रूप में पूजने लगेंगे.
हाँ पगली ही तो है यह लड़की जिसका नाम है सोफ़िया हयात, कहने को नन बनी है, मन बुद्ध में रम गया है और आत्मा उसकी ईश्वर की खोज में हिन्दू मंदिरों तक खींच कर ले जाती है.
जो भी अनुभव होते हैं वो लोगों से बांटती है. क्यों क्योंकि चिंगारी तो फूटी है लेकिन उसका सदुपयोग कैसे करना है, कौन सी राह से आगे बढ़ना है वो नहीं जानती. उसे एक गुरु की दरकार है. मिल जाएगा गुरु भी यदि शिष्य होने की पात्रता अर्जित कर लेगी.
तब तक तो पगली ही कहलाएगी. कहलाना भी चाहिए, ये राह ही ऐसी है जिसमें दीवानगी और पागलपन की हद तक समर्पण न हो तब तक चिंगारी नहीं फूटती. मैं नहीं जानती इस हयात (जिसका अर्थ जीवन भी होता है) का सच क्या है झूठ क्या है, लेकिन उसे देखकर मुझे अपना वो जीवन याद आता है जब मैं भी उतनी ही देह थी, नुमाइश भले नहीं करती थी लेकिन शारीरिक सुन्दरता, मेकअप, भूख, चाहे पेट की हो या देह की, सिनेमा की चकाचौंध, रैंप वाक, क्या-क्या नहीं किया इस देह के पीछे और कहाँ-कहाँ नहीं खोजा उसे जिसे मैं कस्तूरी मृग की तरह नाभि में छुपाये बैठी थी.
मैं खुश किस्मत हूँ मैंने स्वामी ध्यान विनय के रूप में गुरु को पाया, अपनी सुगंध को पहचाना और ये भी जाना कि खुशबू देह से नहीं आत्मा से आ रही थी… तन जब धूप बत्ती की तरह धीरे धीरे जला और आज भी जल रहा है तो उसकी सुगंध औरों तक भी पहुँची.
कुछ हैं ऐसे भी, जो मेरे पिछले जीवन को जानते हैं, खुद मेरे परिवार वाले मुझे पागल समझते हैं… कुछ दोस्तों के मन में आज भी नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली वाला भाव भी कायम है.
लेकिन उन सब कारणों से मेरी यात्रा में कोई अड़चन नहीं आती. मैं नहीं जानती मेरी यात्रा इस जन्म में मुझे कहाँ तक ले जाएगी, लेकिन जानती हूँ चिंगारी तो फूट चुकी है दो भौंहों के बीच. बहुत पुरानी बात नहीं है. पिछले आठ साल से ध्यान विनय से जो कुछ भी सीखा वो केवल तैयारी ही तो थी.
पहली बार माथे पर तीसरे नेत्र के स्थान पर तड़कन अनुभव किया जैसे किसी ने मेरे माथे पर चाकू की नोंक रख दी हो… फिर चारों ओर रोशनी के बादल मंडराने लगे… उन्हीं बादलों से एक रास्ता निकला रोशनी से भरा हुआ…
मैं कृतज्ञ थी पिछले हफ्ते की यात्रा के अनुभव के बाद जो कुछ भी पाया उसके प्रति. वो यात्रा नहीं हुई होती तो कदाचित ये सुखद घटना भी मेरे जीवन में नहीं हुई होती और मैं केवल शब्दों पर सवार होकर लोगों को हिचकोले खिलाती रहती. आज मेरी बातों को संबल मिला है. एक ज़मीन मिली है जिस पर अध्यात्म के फूल खिल रहे हैं और सोशल मीडिया के माध्यम से ही लोगों तक उसकी सुगंध पहुँच रही है.
इसलिए जो लोग ये तर्क दे रहे हैं कि यदि सोफिया हयात वास्तव में संन्यासन हो गयी है तो उसे सोशल मीडिया से दूरी बना लेना चाहिए. तो उनसे मैं यही कहूंगी कि हर युग की भौतिकता उसकी आध्यात्मिकता में जुड़ जाती है.
वैसे ही जैसे योगी अपने अनुभव किताबों में दर्ज करते रहे हैं, क्योंकि उस समय केवल वही एक माध्यम उपलब्ध था, जैसे श्री श्री परमहंस योगानंद जी की “एक योगी की आत्मकथा” एक बहुत ही प्रसिद्ध किताब है.
और जैसे इस युग के योगी हैं “श्री एम” जिनकी किताब “एक योगी का आत्मचरित” के साथ वेबसाइट भी है और फेसबुक पर उनके पेज भी, वो भी उनके गुरु के आदेश पर.
लेकिन अब भी यही कहूंगी सोफिया हयात का सच क्या है उसके अलावा कोई नहीं जानता, ठीक गाईड के देवानंद की तरह जिसे संन्यासी होने का “ढोंग” करते हुए पता नहीं था कि इसी “ढोंग” की भावभूमि पर ही संन्यास का बीज अंकुरित होने वाला है. और देवानंद की उस भावभूमि पर ही गाँव के लोगों की बारिश की आस्था जुडी थी. एक व्यक्ति की भावभूमि पर जब सामूहिक ऊर्जा का प्रक्षेपण होता है तो बंजर धरती पर भी बीज अंकुरित हो जाता है.
फिर इसका तो नाम ही हयात है ठीक मेरे नाम के अर्थ वाली जीवन… आप लोगों की सामूहिक ऊर्जा हो सकता है इस हयात के “ढोंग”(यदि सच में ढोंग कर रही है तो) की भावभूमि पर सच में संन्यास का बीज पनप जाए. एक प्रयोग करने में क्या हर्ज़ है, मैं यही तो कहती हूँ सृष्टि की इस प्रयोगशाला में हम मात्र उपकरण है और कुछ नहीं… सफल हुई तो ठीक, ना हुई तो उसके इस जन्म की झलक हो सकता है अगले जन्म की यात्रा को उन्नत कर जाए…
इस बात पर ज़ौक़ साहब की एक ग़ज़ल याद आ रही है-
लाई हयात, आए, क़ज़ा ले चली, चले…
अपनी ख़ुशी न आए, न अपनी ख़ुशी चले…
बेहतर तो है यही कि न दुनिया से दिल लगे…
पर क्या करें, जो काम न बे-दिल-लगी चले…
कम होंगे इस बिसात पे, हम जैसे बद-क़िमार…
जो चाल हम चले, सो निहायत बुरी चले…
हो उम्रे-ख़िज़्र भी, तो कहेंगे ब-वक़्ते-मर्ग…
हम क्या रहे यहां, अभी आए, अभी चले…
दुनिया ने किसका राहे-फ़ना में दिया है साथ…
तुम भी चले चलो, यूं ही जब तक चली चले…
नाज़ां न हो ख़िरद पे, जो होना है वो ही हो…
दानिश तेरी, न कुछ मेरी दानिशवरी चले…
जाते हवाए-शौक़ में हैं, इस चमन से ‘ज़ौक़’…
अपनी बला से बादे-सबा, अब कभी चले…
मुश्किल लफ़्ज़ों के माने…
हयात : ज़िन्दगी
क़ज़ा : मौत
बिसात : जुए के खेल में
बद-क़िमार : कच्चे जुआरी
उम्रे-ख़िज़्र : अमरता
ब-वक़्ते-मर्ग : मौत के वक्त
ख़िरद : बुद्धि
दानिश : समझदारी
हवाए-शौक़ : प्रेम की हवा
बादे-सबा : सुबह की शीतल वायु
विशेष नोट : मोहम्मद इब्राहिम ‘ज़ौक़’ या सिर्फ ‘ज़ौक़’ के नाम से मशहूर इस शायर का असली नाम शेख़ इब्राहिम था, और यह मिर्ज़ा ग़ालिब के समकालीन थे…
pranam maa jeevan shaifaly ji……
me kafi samay se agya chakra par dhyaan kar raha hu.. lekin kuchh samay se mere pure sir me dard ki tej lahar chal rahi hai…. jo agya chakra se suru hoti hai pure sir me fialti jati hai… kuchh der sone ke bad sir ko aram milta hai… lekin mathe par bhari bhari rahta hai…. kuchh samay se dhyan bhi band kiye hu.. to dard to nahi hota lekin kisi bhi vastu ko agar 2 minit dhyan se dekhu to lahar fir chalu ho jati hai… kya me kuchh galat kar raha hu.. ya fir esa hota hi hai…. kripya margdarshan karne ka kast kare….
बिना किसी के मार्गदर्शन के अपने आप कुछ मत कीजिये… बस सुबह सूर्योदय के समय खुले आसमान के नीचे बैठकर ध्यान करें और सूर्य की ऊर्जा को अपने में अनुभव करें, प्रारम्भ से ही तीसरे नेत्र पर ध्यान ना करें