कहते हैं मिलन का सबसे सुन्दर और भीना गीत वही लिख सकता है जिसने विरह की सबसे तपती भूमि पर नंगे पैर चलने का अनुभव प्राप्त किया हो. लेकिन कुछ गीत ऐसे भी होते हैं, जो विरह से मिलन तक नहीं पहुँच पाते, पूरे नहीं हो पाते. रेखा विरह का वही अधूरा लेकिन सबसे सुन्दर गीत है.
रेखा वह औरत है, जिसके हाथों में मेहंदी तो लगी, लेकिन कभी मेहंदी का रंग नहीं चढ़ा, फिर भी उसके हाथों से उसकी खुशबू ताउम्र आती रही.
रेखा जिसकी किस्मत में विवाह की वेदी तो थी, लेकिन उसमें कभी अग्नि प्रज्ज्वलित नहीं हो सकी, फिर भी उस हवन-कुण्ड से उठते पवित्र धुंए की खुशबू ताउम्र उसके इर्द-गिर्द बनी रही….
रेखा जिसके गले में जब भी मंगलसूत्र पड़ा, सदा ही अमंगल रहा…
मेरी नज़र में रेखा एक ऐसी औरत है जो न पूरी तरह विवाहित है, न पूरी कुंवारी, लेकिन उसके माथे पर वैधव्य भी हमेशा श्रृंगारित रहा, इसलिए वो आज भी मांग में सिन्दूर भरती है…
रेखा जिसकी एक आँख में मुझे विरह की आग दिखाई देती है, तो दूजी में प्रेम की बहती नदी. रेखा के जीवन में ये प्रेम कई रूपों में आया, कुछ हमउम्र थे, कुछ उम्र में छोटे लोगों के साथ भी नाम जुड़ा.
लेकिन एक नाम होठों पर लगे उस काले तिल की ही तरह रेखा ने अपने हाथ से लगाया, जो वास्तव में जन्मजात नहीं है बल्कि अलग से काजल से लगाया हुआ होता है. लेकिन उस काले तिल की वजह से ही उसके उस प्यार को कभी किसी की बुरी नज़र नहीं लगी और वो नाम न लेते हुए भी रेखा के नाम के साथ अनुगूंज की तरह सदा सबको सुनाई देता है.
हर औरत के जीवन में प्रेम इसी तरह कई रूपों में आता है, लेकिन किसी एक के नाम को वो प्रेम का जीवन गीत बना लेती है. उनमें से जब किसी खुशकिस्मत औरत को अपने गीत लिखने के लिए इमरोज़-सी पीठ मिल जाती है… तो वो अमृता प्रीतम बन जाती है. और जब किसी औरत के जीवन से बहुत से पुरुष पीठ फेर कर चले जाते हैं और उसका गीत अधूरा रह जाता है, तो वो रेखा बन जाती है.
– माँ जीवन शैफाली