नायिका Episode-21 : ध्यान जन्मोत्सव

तमन्ना और हासिल……….. मैं तुम्हारा “हासिल” हूँ इसलिए तुम्हारी सारी “तमन्नाओं” को पूरा करना अपने जीवन का उद्देश्य समझता हूँ… क्योंकि मेरी जीवन शक्ति हो तुम. जितने जादू घटित होने का श्रेय जो तुम मुझे देती हो उसकी वास्तविक ऊर्जा का स्त्रोत तो तुम ही हो और इस बात को कई कई बार दोहराने के बाद भी तुम्हें खुद की शक्ति पर यकीन नहीं आता…

लेकिन मेरे लिए तुम मेरा “हासिल” हो और सोचता हूँ कि जिसे “तुम-सा” “हासिल” हो उसे क्या कुछ और पाने की “तमन्ना” बाकी रह सकती है?

ध्यान की कही गयी इस बात पर मैं कई कई बार विचार करती हूँ और हर बार मज़ाक में टाल जाती हूँ, क्योंकि मैं जानती हूँ वो सीरियस बात भी इतनी आसानी से कह जाते हैं कि मैं कई बार उलझन में पड़ जाती हूँ .. और कई बार उनकी मज़ाक में की गयी बात को भी इतना सीरियसली ले लेती हूँ कि अक्सर उनसे उलझ पड़ती हूँ… क्यों लड़ते हो मुझसे इतना?

और वो हर बार हंस कर कहते हैं लड़ाई? किससे तुमसे? मैं आज तक नहीं लड़ा तुमसे? हाँ ज़िंदगी में एक बार सच में लडूंगा तुमसे वो जीवन की पहली और आख़िरी लड़ाई होगी……

और मेरी हर तथाकथित लड़ाई के बाद में पूछती हूँ… ये जो कुछ हुआ उसे उस प्रयोग का ही हिस्सा समझूं ना जिसे तुम ध्यान की प्रक्रिया कहते हो?

जब इतने ही साक्षी भाव से लड़ती हो तो खुद कब निष्कर्ष पर पहुँचोगी कि जो कुछ घटित हुआ वो सच में हुआ है या ऐसा हुआ प्रतीत हुआ है?
और फिर मेरा चेहरा अपने हाथों में लेकर कहते हैं- क्या तुम थक गयी हो? सहन शक्ति के बाहर हो गया है या अब इन प्रयोगों की ज़रूरत नहीं रही?

अब मेरे लिए जवाब देना और मुश्किल हो जाता है क्योंकि मैं जानती हूँ मेरा ना कहना भी मुझे एक नए प्रयोग में डाल देगा जो मुझे और अधिक प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करेगा.

वास्तव में स्वामी ध्यान विनय के साथ होना ही अपने आप में ध्यान की प्रक्रियाओं से गुज़रना होता है, जिसके लिए आपको आँखें बंद करके किसी ईष्ट की आराधना में लीन नहीं होना पड़ता … और ध्यान के बिना होना कभी अनुभव ही नहीं किया… वो तो हर बार कहते हैं …

इस कदर लिपटा हूँ, इस कदर छाया हूँ, ऐसे घेरे हूँ, इतना घुल गया हूँ साँसों में, कि बस किसी ने छेड़ा और मैं तुम में प्रकट……………..

– माँ जीवन शैफाली को स्वामी ध्यान विनय का जन्मदिन मुबारक रहे…..

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