नायिका Episode – 13 : पहले आप… कहा ना पहले आप!… नहीं पहले आप…..

नायिका-

हाँ, ब्लॉग पढ़ा था अगले दिन ……. अचम्भित रही दो दिन तक …… अब भी हूँ….. कोई ऐसा भी होता है!!! इस उम्र तक अपना बचपन बचाकर रख सकता है? आज मैं पूछती हूँ….. WHO ARE YOU? किसी समन्दर को चंचल सरिता की तरह बहते पहली बार देख रही हूँ….

नायक, विनायक, मोटू ………………. क्या कहूँ तुम्हें…..

मेरी कोई बात बुरी लगी हो तो बुरा मान लेना…. माफ़ी नहीं माँगूगी…. चाहो तो रूठ जाना, कोशिश करूँगी मना सकूँ…..

हाँ मोटू तो फिर भी कहूँगी आपको…. क्यों?…. मेरी मर्ज़ी…..

पिछले जन्म वाली बात बिल्कुल सही कही, वो सपने शायद पिछले जन्म की यादों के धागे है जिसको पकड़कर एक दिन पिछले जन्म में पहुँच ही जाऊँगी…..

विनायक-

………….अचम्भित रही दो दिन तक …… अब भी हूँ….. कोई ऐसा भी होता है!!! इस उम्र तक अपना बचपन बचाकर रख सकता है? आज मैं पूछती हूँ….. WHO ARE YOU? किसी समन्दर को चंचल सरिता की तरह बहते पहली बार देख रही हूँ….
ये क्या कह रही हैं, मेरी समझ के बाहर है, ज़रा पता तो चले कि किस बारे मे बात हो रही है.

नायक, विनायक, मोटू ………………. क्या कहूँ तुम्हें…..

नायक तो कोई मुझे बुलाता नहीं, विनायक किसी को पता ही नहीं और बाकी सारे नाम आपके हैं सो जो जी चाहे पुकार लीजिये, जवाब तो मैं ही दूंगा.

मेरी कोई बात बुरी लगी हो तो बुरा मान लेना…. माफ़ी नहीं माँगूगी…. चाहो तो रूठ जाना, कोशिश करूँगी मना सकूँ…..
फिर बात मग़रूरी सी लगेगी हालांकि है नहीं कि मुझे बुरा नहीं लगता, हाँ कभी खेल खेल में रूठ ज़रूर जाऊँगा तो मना लेना, बहुत भोला है आसानी से बहल जाता है.
नायिका-

………….अचम्भित रही दो दिन तक ……

मतलब आपकी तारीफ़ ही कर रही हूँ…. आपके लेखन के बारे में ही लिखा था….

जितना गहरा उतना ही चंचल…. इसे भी तारीफ़ ही कहते हैं

कोई नायक क्यों नहीं कहता? मैं तो मोटू ही कहूँगी……………

मैं तो बुरा मान लेती हूँ ये बात अलग है कि ज़्यादा देर तक रूठकर नहीं रह पाती……..

विनायक-

आपके लेखन के बारे में ही लिखा था….जितना गहरा उतना ही चंचल…. इसे भी तारीफ़ ही कहते हैं

जी, यह तो समझ गया पर……..

कोई ऐसा भी होता है!!! इस उम्र तक अपना बचपन बचाकर रख सकता है ? आज मैं पूछती हूँ….. WHO ARE YOU? किसी समन्दर को चंचल सरिता की तरह बहते पहली बार देख रही हूँ….
इसका क्या मतलब हुआ?
कोई नायक क्यों नहीं कहता? मैं तो मोटू ही कहूँगी……………

ये समझना शायद मुश्किल हो क्योंकि शक्ल देखने की इच्छा नहीं ऐसा कहा जा चुका है. आप ही की तर्ज़ पर घूरती हुई आँखें ब्लॉग पर चिपकाई हैं, कहाँ उनमें विनम्रता या विनय झलकती है?

किन नामों से पुकारा जाता हूँ आपके किसी ब्लॉग की प्रतिक्रिया में लिख चुका हूँ। फिर कुछ छवि भी यूँ बन गई है कि कोई नाम से नहीं पुकारता, इसी से जुड़ी एक बात कह दूँ कि कोई उस ढंग से बात भी नहीं करता जैसे आप. या शायद किसी और को बात करने का मौका ही नहीं देता…. मज़ाक है, बहुत उम्दा श्रोता हूँ, कभी आज़माइयेगा!

नायिका-

बस अपनी ही कहने में लगे रहते हो… कौन कहता है अच्छे श्रोता हो? अपने मुँह मियां मिट्ठू………………. सच बताओ मोटू, मेरी कोई बात बुरी तो नहीं लगी?

विनायक –

ऐसी कोई बात कही थी!! पता नहीं क्या हो गया है मेरी याददाश्त को? मुझे तो याद नहीं?

नायिका-

चलो ठीक मान लिया नहीं लगा बुरा…

विनायक-

Good. समझदार सी लग रही हो अब…

नायिका-

मैं समझदार होती तो तुमसे बात नहीं कर रही होती … ब्लॉग पर तुम्हारी आँखें देखी…. एक बात बताओ तुम्हारी मूँछें भी है?

विनायक-

अब समझदार होती जा रही हैं, बात को यूँ कहिए…..

और बातों और लोगों को समग्रता में क्यों नहीं स्वीकार कर लेती? क्यों मेरे चेहरे का पोस्ट-मॉर्टम करना? किसने कहा था वो सब लिखने को वर्ना पूरा फोटो डाला होता…. वैसे इस बात का छोटा-सा जवाब है… नहीं, मूँछें नहीं है, जब रखता हूँ दाढ़ी के साथ ही रखता हूँ वर्ना क्लीन शेव्ड।

नायिका-

हाँ दाढ़ी वाले बाबा जैसे होगे ये तो सोचा ही था … सपने में तुमको बिना बालों के देखा था … मतलब थोड़े से टकलू …. अब भी कोई शौक नहीं तुम्हारी शक्ल देखने का… पहले अक्ल तो परख लूँ….

विनायक-

लोग कहते हैं कि मेरी उम्र बीस पर जो रुकी तो बस रुक ही गई, शक्ल भी और अक्ल भी…

नायिका-

मैं घर जाऊँ अब या यूँ ही वार्तालाप का आलाप गाते रहोगे?

विनायक-

तो किसने कहा था इतनी देर से मेल लिखो पहले ही लिख देती… और घर जाकर क्या खाना बनाना है?

नायिका-

मुझे क्या सपना आ रहा था कि गणेशजी आज घर पर ही विराजमान है ….. चलो कभी मन हुआ तो आपका मोबाइल नंबर मांगूँगी…. माँगू नहीं तब तक देना मत…  और खाना मैं नहीं बनाती … घर पर खाना बनाने के लिए कुक है…

विनायक-

जो आज्ञा…. और कोई आदेश?

यानि जब अपने हिस्से की 8 रोटी माँगने आऊँगा तो वो भी आपके हाथ की नहीं मिलेगी!!!!

वैसे वो सवाल तो वहीं रह गया…. क्या बचपना नज़र आ गया?

नायिका-

यही तो… बस एक सवाल के पीछे पल्लू पकड़ कर, पीछे-पीछे दौड़ते रहना बताओ ना बताओ ना …. इसे ही बचपना कहते हैं…

और ये 8 रोटी वाली बात समझ नहीं आई…. समझा कर रखना कल आकर पढ़ूँगी… Good Night

विनायक-

Good Night … And only SD (Sweet Dreams)… No HD (HORROR DREAMS)

नायिका-

बाप रे भूत………. भागो………………

विनायक-

जाइए आप कहाँ जाएँगे ……………

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सूत्रधार-

अब मैं भी बोलूँ कुछ????

ये जो आप मुग्ध हो रहे हैं ना दोनों की बातों पर … ये बाते नहीं है…. फिर?? अरे ये तो मोती है मोती … जी हाँ, उसी माला के जिसमें एक-एक मोती दोनों डाल चुके हैं … और ये जो बातें हो रही हैं, ये बातें नहीं ये दूसरे मोती के लिए पहले आप… पहले आप… चल रहा है… अरे भई चलो मैं ही दोनों के हाथ से मोती लेकर माला में पिरो देता हूँ… हाँ नहीं तो….

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