विवादों की जो लहर समाजवादी पार्टी के भीतर उमड़ी है वो आज कुछ अधूरे जवाबों की तरह सियासी पन्नों पर बिखरी रह गई है.
पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह की सुलह की कोशिशें फेल हो गईं. इसका नज़ारा मंच पर ही दिख गया जब मुलायम सिंह के आदेश पर गले मिलने के बाद मंच पर अखिलेश और शिवपाल के बीच नोंक-झोंक हो गईं. शिवपाल ने अखिलेश के हाथ से माइक छीन लिया और ‘झूठा’ तक कह दिया.
आज के इस पूरे घटनाक्रम को अगर सर्वांगीण तरीके से देखा जाए तो समाजवादी कुनबे का मसला आसानी से हल होता नहीं दिख रहा. दोनों ओर से एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप के सुर हैं.
हालाँकि मुलायम सिंह के द्वारा मंच से भावपूर्ण बातें कहीं गईं और अखिलेश को समझाने का प्रयास किया गया लेकिन वे अंतिम रूप से सफल नहीं हो पाए.
अब विवाद इस कदर बढ़ गया है कि पुनर्मिलन की आशाएं और पार्टी का स्थायित्व एक चुनौती सा दिख रहा है. मुखिया के सामने अखिलेश और शिवपाल की अनुशासनहीनता ने इसका संकेत भी दे दिया है.
कुल मिला कर उत्तर प्रदेश के लिए समाजवादी पार्टी एक बेहतर और सुरक्षित पार्टी का आधार खो चुकी है.
चुनाव से पूर्व यादव परिवार में मचे इस घमासान ने निश्चित तौर पर अगले चुनाव के लिए इस पार्टी की विश्वसनीयता पर ही प्रश्नचिन्ह खड़े कर दिए हैं.
यह पार्टी अब अपने सदस्यों के अंतर्विरोधों से जूझते दिखेगी. इसमें आरोपों और प्रत्यारोपों की धारा बहते दिखेगी.
पार्टी अत्यन्त मुश्किल दौर में है जिसे उबारने वाले असफल हो गए हैं. इसी आधार पर कह सकता हूँ कि यह पार्टी अब टूटने के कगार पर खड़ी दिख रही है.
उत्तर प्रदेश आंतरिक चुनौतियों से जूझता प्रदेश है. बसपा-सपा के शासनकाल के बाद भी यह प्रदेश आज वहीँ खड़ा है. इसकी समस्याएं जस की तस हैं.
विरोधी दलों को इस घमासान का पूरा फायदा मिलेगा. दलों की प्रतिक्रियाएं भी आनी शुरू हो गईं हैं. यह विवाद उनके चुनावी रणनीति का हिस्सा रहेगा.