प्रिया,
ये अदा, अचम्भित होने की छोड़ना भी मत….. मैं जो कुछ भी हूँ तुम्हारे ही बूते हूँ…. तुममें ज़रा सा भी बदलाव निश्चित ही मुझमें भी परिवर्तन लायेगा….. तुम अचम्भित होती रहना, मैं अचम्भित करता रहूंगा.
ये तो मैं भी कहता हूँ कि तुमने बहुत पुण्य किए होगे और कर रही हो… एक मामूली व्यक्ति को महत्वपूर्ण बना देना कम पुण्य का काम है? एक मुरदे को ज़िंदा कर देना क्या पुण्य नहीं?
सृष्टि के नियमानुसार निश्चित ही इन पुण्यों का परिणाम भी प्राप्त होगा…. पर हम कब परिणामों को लक्ष्य बना कर कर्म करते थे या हैं? बल्कि हम कर्म करते ही कब हैं, नियति हमे स्वयं ही लिए जा रही है परिणाम तक……. यही नहीं है क्या निष्काम कर्म…… जो हम कर सकते हैं, किया…. कर रहे हैं…. करते रहेंगे…. परिणाम जो हों सो हों, उस पर हमारा क्या ज़ोर?
किसने किसे ढूंढा…. किसे कौन मिला….. ये महत्वपूर्ण नहीं….. बस ढूंढ लिया, मिल गये, पा लिया………… हममें से ही कोई ढूंढने वाला होता तो क्या इतने बरस लगते? पहले क्यों नहीं खोज निकाला? न, कोई और है जिसने ये काम किया, वरना क्या औरो को कभी प्यार नहीं हुआ? फिर हमारा प्यार दुनिया से इतना भिन्न क्यों….. कैसे…. कि इस दुनिया का ही न लगे?
ये दो भौतिक शरीरों का प्यार नहीं, हो भी कैसे सकता है, जब आज तक हमने एक दूसरे को देखा ही नहीं, छुआ ही नहीं, मिले ही नहीं……. ये प्यार है शुद्ध ऊर्जा का मिलन…. सोचो न, आज तक हमारा संपर्क हुआ भी तो कैसे….. मात्र विचारो द्वारा…… लिख कर या कह कर….. सुने होंगे ये शब्द – विचार ‘शक्ति’, लेखन ‘शक्ति’, वाक ‘शक्ति’…….. क्या है ये शक्ति……. पता नहीं लोग कहाँ कहाँ भगवान को ढूंढते हैं…… इसी शक्ति की तो सब माया है….. यही शक्ति तो विभिन्न रूपो में लीला कर रही है.
शक्ति की उपासना की जाती है नवरात्रि में…. ज़रा सोचो कितने साधकों को ये अर्थ पता हैं……. बस लकीर पीटी जा रही है……… ये ही है हमारे पुण्यों का प्रताप कि हम इतना जानते, समझते और अनुभव करते हैं …… भाग्यशाली हो तुम, मैं …… इसलिए कैसे संशय, कैसी शिकायतें……. और किससे? उन लकीर पीटने वालो से? न, वे तो हमारी करुणा और सहानुभूति के पात्र है…….. तो फिर किससे? उससे जो इस शक्ति की….. इस शक्ति के कणो की लीला रच रहा है??
नहीं….. कहीं कोई स्थान नहीं, संशयो और शिकायतों के लिये…… हम सृष्टि के उन चुनिंदा लोगो में से हैं, जो निष्काम कर्म में लीन हैं और निष्काम का अर्थ ही होता है… कामनारहित…. कोई आकांक्षा नही, कोई अपेक्षा नहीं, कोई शिकायत नहीं.
पत्र की शुरुआत तुमने की थी एक प्रश्न से कि कौन हो तुम? एक दिन सब, हम दोनों से इकट्ठे पूछेंगे कि कौन हों तुम?
Introducing Nayika : प्रिया
Introducing Nayika : सूत्रधार
(नोट : ये संवाद काल्पनिक नहीं वास्तविक नायक और नायिका के बीच उनके मिलने से पहले हुए ई-मेल का आदान प्रदान है, जिसे बिना किसी संपादन के ज्यों का त्यों रखा गया है)